SEBI proposal of uniform TER across MFs: How this benefit investors : सभी म्यूचुअल फंड्स में यूनीफॉर्म यानी एक बराबर टोटल एक्सपेंश रेशियो (TER) लागू करने का सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) का सुझाव आम निवेशकों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकता है. मार्केट रेगुलेटर ने यह सुझाव एक कंसलटेशन पेपर के रूप में जारी किया गया है, जिस पर लोगों से अपनी राय देने को कहा गया है. सेबी का मानना है कि मौजूदा व्यवस्था में म्यूचुअल फंड में निवेश से जुड़े खर्चों में पारदर्शिता की कमी है. जिससे छोटे निवेशकों को नुकसान होता है. सेबी ने इन हालात को बदलने के लिए ही नया प्रस्ताव पेश किया है. सेबी ने इस पेशकश पर सभी लोगों से 1 जून तक अपनी राय देने को कहा है. नए प्रस्ताव से आम निवेशकों को होने वाले फायदों को समझने से पहले जान लेते हैं कि म्यूचुअल फंड्स को मैनेज करने वाली एसेट मैनेजमेंट कंपनियों को अभी किस तरह से चार्ज वसूलने की छूट मिली हुई है.
अब तक क्या होता रहा है?
अभी जो व्यवस्था चल रही है उसमें एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (AMC) को म्यूचुअल फंड के ग्राहकों से टोटल एक्सपेंस रेशियो (TER) के अलावा भी कई तरह के खर्च वसूल करने की छूट मिली हुई है. ये खर्च हैं :
- ब्रोकरेज और ट्रांजैक्शन की लागत
- B-30 शहरों यानी तुलनात्मक रूप से छोटे शहरों से होने वाले निवेश पर डिस्ट्रीब्यूशन कमीशन
- गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स यानी GST
- स्कीम छोड़ने वाले निवेशकों से वसूला जाने वाला एग्जिट लोड
अब जानते हैं कि सेबी का नया प्रस्ताव लागू होने पर आम निवेशकों को क्या फायदा हो सकता है.
निवेशकों को मिलेगी पूरी और सही जानकारी
सेबी के प्रस्ताव में साफ-साफ कहा गया है कि किसी भी म्यूचुअल फंड स्कीम में निवेश करने वालों से एसेट मैनजमेंट कंपनी (AMC) अपने मैनेजमेंट फीस समेत जो भी चार्ज वसूल करती है, उसे टोटल एक्सपेंश रेशियो (TER) में ही शामिल करना होगा. यहां तक की जीएसटी या अन्य टैक्स भी इसी में शामिल होंगे. इससे चार्जेज के मामले में पारदर्शिता (Transparency) आएगी और निवेशकों को पूरी और सही-सही जानकारी मिल सकेगी. इससे निवेशकों को यह समझने में आसानी होगी कि म्यूचुअल फंड में निवेश की सही लागत कितनी है. इससे उन्हें निवेश के बारे में सटीक फैसले करने में मदद मिलेगी.
मिस-सेलिंग पर कसेगा शिकंजा
SEBI के नए प्रस्ताव का एक मकसद म्यूचुअल फंड स्कीम्स की मिस-सेलिंग (mis-selling) यानी ग्राहकों को स्कीम के चुनाव के दौरान गुमराह किए जाने पर रोक लगाना भी है. अभी ऐसा देखने में आया है कि म्यूचुअल फंड कंपनियों के कर्मचारी या स्कीम बेचने वाले एजेंट ग्राहकों को सलाह देते वक्त उनके लाभ से ज्यादा इस बात पर फोकस करते हैं कि उन्हें ज्यादा कमीशन या चार्जेज कैसे मिलेंगे. मिसाल के तौर पर SEBI ने ऐसा पाया है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान इक्विटी फंड के नए ऑफर्स (NFOs) में निवेश की गई रकम का बड़ा हिस्सा निवेशकों ने मौजूदा स्कीमों से निकालकर लगाया गया था. सेबी को लगता है कि बहुत से म्यूचुअल फंड ब्रोकर और डिस्ट्रीब्यूटर ज्यादा कमीशन के चक्कर में निवेशकों को मौजूदा फंड से पैसे निकालकर नई स्कीम में निवेश करने के लिए उकसाते हैं या कई बार बेवजह उन्हें बहुत सारी स्कीमों में निवेश के लिए प्रेरित करते हैं. भले ही ऐसा करना आम निवेशकों के हित में न हो. सेबी का मानना है कि सभी इक्विटी स्कीमों पर एक बराबर एक्सपेंस रेशियो वसूले जाने और सारे खर्चों को TER में शामिल करने से इस पर रोक लगेगी.
दोहरे चार्जेज से छुटकारा मिलेगा
सेबी ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि फिलहाल कई AMC निवेशकों से पहले तो स्कीम को मैनेज करने के नाम पर मैनेजमेंट और एडवाइजरी फीस लेते हैं और उसके बाद रिसर्च, ब्रोकरेज और ट्रांजैक्शन कॉस्ट के नाम पर भी मोटी रकम वसूलते हैं. सेबी ने कहना है कि कायदे से सही एसेट्स/सिक्योरिटीज के सेलेक्शन के लिए जरूरी रिसर्च का खर्च भी स्कीम मैनेजमेंट और एडवाइजरी फीस में ही शामिल होना चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं किया जाता. एक्सपर्ट्स से बेहतर सलाह लेने के नाम पर अलग से पैसे वसूले जाते हैं, जो कहीं से भी जायज नहीं है. सेबी ने इसे यूनिट होल्डर्स से दोहरी वसूली (double charging) बताते हुए इस पर रोक लगाने की मंशा जाहिर की है. जाहिर है कि अगर नए प्रस्ताव लागू पर यह डबल चार्जिंग रुक जाती है, तो इसका लाभ भी निवेशकों को मिलेगा.