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23 फसलों के लिए एमएसपी निर्धारित होती है.
Farmers' Protest and MSP: राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा किसान संगठनों का विरोध मुख्य रूप से केंद्र सरकार की ओर से हाल ही में पारित तीन कृषि बिल और इलेक्ट्रिसिटी एमेंडमेंट बिल 2020 को लेकर है. किसान संगठन इसे वापस लेने की मांग कर रहे हैं. सरकार की तरफ से बातचीत की कोशिशें हो रही हैं. इन सबके बीच एक प्रमुख बात यह है कि दोनों पक्षों के बीच बातचीत में सबसे बड़ा मुद्दा फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) है. किसानों को इस बात की आशंका है कि नए कृषि कानूनों से एमएसपी की व्यवस्था धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी. इसलिए किसान संगठनों के नेता सरकार से एमएसपी की लिखित गारंटी चाहते हैं कि इसे समाप्त नहीं किया जाएगा. वहीं, सरकार यह स्पष्ट कर चुकी है कि एमएसपी की व्यवस्था बनी रहेगी. ​इसमें एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि एमएसपी को लेकर देश में कोई कानून नहीं है. यह एक प्रशासनिक व्यवस्था है, जो सालों से बनी हुई है.
एमएसपी के मसले पर किसानों और सरकार के बीच चल रहे मौजूदा गतिरोध के बीच हमारे लिए यह समझना जरूरी है कि एमएसपी कैसे तय किया जाता है. एमएसपी को उत्पादन लागत का डेढ़ गुना रखने का फॉर्मूला कहां से आया. दरअसल, एमएसपी के जरिए किसानों को अपनी फसल के लिए एक निश्चित न्यूनतम मूल्य सुनिश्चित होता है. केंद्रीय बजट 2018-19 में यह सुनिश्चित किया गया था कि एमएसपी को उत्पादन लागत के डेढ़ गुने पर रखा जाएगा. इस साल मार्च में सरकार ने कृषि वर्ष 2018-19 और 2019-20 की खरीफ, रबी और अन्य व्यावसायिक फसलों के लिए लागत से डेढ़ गुने अधिक पर एमएसपी निर्धारित किया था.
23 फसलों के लिए है MSP की व्यवस्था
कृषि मंत्रालय की कमीशन फॉर एग्रीकल्चरल कॉस्ट्स एंड प्राइसेस (CACP) 23 फसलों के लिए एमएसपी की सिफारिश करती है. इसमें 14 खरीफ फसलें और छह रबी फसलें होती हैं. इसके अलावा सीएसीपी गन्ना, जूट और गरी (Copra) के लिए भी एमएसपी की सिफारिश करती है. खेती की लागत के अलावा कई दूसरे फैक्टर्स के आधार पर सीएसीपी फसलों के लिए एमएसपी का निर्धारण करती है.
सीएसीपी किसी फसल की लागत के अलावा उसकी मांग व आपूर्ति की परिस्थिति, मार्केट प्राइस ट्रेंड्स (घरेलू और वैश्विक) और अन्य फसलों से तुलना पर भी विचार करती है. सीएसीपी एमएसपी तय करते समय उपभोक्ताओं पर एमएसपी के कारण महंगाई और पर्यावरण पर मिट्टी और पानी के प्रयोग पर प्रभाव के अलावा कृषि और गैर-कृषि क्षेत्र के उत्पादों के बीच के कारोबारी शर्तों पर भी विचार करती है.
तीन प्रकार की उत्पादन लागत होती है शामिल
CACP प्रोडक्शन कॉस्ट के लिए कृषि मंत्रालय के तहत आने वाले डायरेक्टरोट ऑफ इकोनॉमिक्स एंड स्टैटिस्टिक्स द्वारा राज्यवार किए गए क्रॉप स्पेशिफिक प्रोडक्शन कॉस्ट से आंकड़े लेती है. हालांकि ये आंकड़े भी तीन साल पुराने हैं. सीएसीपी किसी फसल के लिए केंद्र और राज्य स्तर पर तीन प्रकार के प्रोडक्शन कॉस्ट को प्रोजेक्ट करती है. नीचे एक टेबल दिया हुआ है.
सीएसीपी 23 फसलों के लिए एमएसपी निर्धारित करती है.- इसमें A2 में उन सभी खर्चों को शामिल किया गया है जो सीधे किसान वहन करते हैं; जैसेकि बीज, खाद, कीटनाशक, मजदूर, ईंधन और सिंचाई इत्यादि.
- ‘A2+FL’ में ए2 के तहत आने वाले सभी खर्चों के अलावा परिवार के उन सदस्यों के लिए भी मेहनताना का आकलन किया जाता है, जिन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती है.
- प्रोडक्शन कॉस्ट तय करने के लिए C2 व्यापक तरीका है. इसमें खुद की जमीन और फिक्स्ड कैपिटल एसेट्स पर किराए और ब्याज की राशि का आकलन किया जाता है.
बजट भाषण में नहीं तय हुआ था आधार
- 2018 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में इसका उल्लेख नहीं किया था कि किस कॉस्ट के डेढ़ गुने को एमएसपी निर्धारित किया जाएगा. सीएसीपी की 'खरीफ फसलों के लिए मूल्य नीति: विपणन सत्र 2018-19' रिपोर्ट के मुताबिक एमएसपी को ‘A2+FL’के डेढ़ गुने पर निर्धारित किया जा रहा है.
- 2018-19 के बजट में घोषणा की गई थी कि एमएसपी को पूर्व-निर्धारित नियमों के आधार पर लागत से डेढ़ गुना अधिक पर निर्धारित किया जाएगा. सीएसीपी लागत का आकलन कर उसके 1.5 गुने अधिक पर एमएसपी को रिकमंड करती है.
- हालांकि फॉर्म एक्टिविस्ट्स का कहना था कि बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के घोषणा पत्र में जो वादा किया था और कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में नेशनल कमीशन फॉर फॉर्मर्स ने 1.5 गुना एमएसपी फॉर्मूले का जो प्रस्ताव दिया था, वह C2 लागत के आधार पर निर्धारित होनी चाहिए.
दोनों लागत के आधार पर तय होती है एमएसपी
एमएसपी निर्धारित करने के लिए सीएसपी A2+FL और C2 दोनों लागतों पर विचार करती है लेकिन अंत में वह इसे A2+FLके आधार पर निर्धारित करती है. हालांकि सीएसीपी C2 कॉस्ट्स को बेंचमार्क रिफरेंस कॉस्ट्स (अपॉर्च्यूनिटी कॉस्ट्स) के तौर पर प्रयोग करती है कि वह जो एमएसपी प्रस्तावित कर रही है, वह प्रमुख उत्पादक राज्यों में कम से कम इस लागत को कवर कर सके.
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