Rahul Gandhi Jail Term : Congress raises big questions over Surat court’s Order : कांग्रेस पार्टी ने मानहानि के मामले में राहुल गांधी को दो साल की जेल की सजा सुनाने वाले मजिस्ट्रेट के फैसले में कई बड़ी कानूनी खामियां गिनाई हैं. इसके साथ ही पार्टी ने इस फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देने का एलान भी किया है. राहुल गांधी के खिलाफ यह फैसला गुजरात के सूरत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने सुनाया है. मजिस्ट्रेट एच एच वर्मा ने राहुल को यह सजा 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक की एक चुनावी रैली में दिए गए भाषण के मामले में सुनाई है. कांग्रेस ने उम्मीद जाहिर की है कि गुजरात की निचली अदालत का यह फैसला ऊपरी अदालत में टिक नहीं पाएगा.
देश के मुद्दों पर बोलते रहेंगे राहुल गांधी : सिंघवी
अभिषेक मनु सिंघवी ने सूरत की अदालत के फैसले पर कानूनी नजरिये से सवाल उठाने के साथ ही साथ यह भी कहा कि सरकार झूठे केस फाइल करके हमें डराने-धमकाने की चाहे जितनी कोशिश कर ले, उससे हमारी आवाज दबने वाली नहीं है. राहुल गांधी देश के ज्वलंत सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक मुद्दों के बारे में बोलते रहेंगे, लोगों के हक में आवाज उठाते रहेंगे.
अभिषेक मनु सिंघवी के 6 बड़े सवाल
कांग्रेस प्रवक्ता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सूरत की अदालत के फैसले पर न सिर्फ कांग्रेस का पक्ष रखा, बल्कि इस दौरान उन्होंने मुकदमे की प्रक्रिया पर अपना कानूनी नजरिया रखते हुए कई गंभीर सवाल भी उठाए.
- कानूनी प्रावधान यह है कि शिकायत वही कर सकता है, जिसकी मानहानि हुई हो. उसे यह भी बताना होता है कि आरोपी व्यक्ति की टिप्पणी से उनकी मानहानि किस तरह से हुई है. लेकिन सूरत में जिस व्यक्ति (बीजेपी विधायक पूर्णेश मोदी) की शिकायत पर मुकदमा चला, उनके बारे में राहुल गांधी ने कोई टिप्पणी नहीं की थी. जबकि जिन व्यक्तियों (नरेंद्र मोदी, नीरव मोदी, ललित मोदी) के नाम राहुल गांधी ने लिये थे, उन्होंने कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई.
- मानहानि के मामले में किसी खास व्यक्ति के सम्मान को ठेस पहुंचाने का आरोप स्पष्ट होना चाहिए. किसी आमतौर पर की गई टिप्पणी या बड़े दायरे को समेटने वाली टिप्पणी को इसमें शामिल नहीं किया जा सकता. अगर किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ टिप्पणी नहीं है और आरोप स्पष्ट नहीं हैं या उनके दायरे में बहुत बड़ी संख्या आ जाती है, तो उसे मानहानि नहीं कहा जा सकता.
- मानहानि के मामले में फौजदारी का मुकदमा चलाने के लिए, जैसा कि इस केस में हुआ है, बदनीयती और द्वेष की भावना सिद्ध करना जरूरी है. लेकिन राहुल गांधी का कर्नाटक के कोलार में दिया भाषण जनहित के बारे में था, राजनीति के बारे में था, महंगाई-बेरोजगारी के बारे में था. लिहाजा, इस भाषण के किसी वाक्य को अगर आपत्तिजनक माना गया है, (जिसे हम ऊपरी अदालत में चुनौती देंगे) तो भी ये नहीं कह सकते कि उसके पीछे कोई द्वेष की भावना या बदनीयती (malafide intent or malice) शामिल है. लिहाजा, ये फौजदारी का मामला नहीं बन सकता.
- अभी तक जो तथ्य सामने आए हैं, उनके अनुसार ये केस शुरुआत में काफी अरसे तक मजिस्ट्रेट ‘मिस्टर एक्स’ के पास था. लेकिन उस वक्त खुद शिकायतकर्ता ने ऊपरी अदालत में जाकर पूरी प्रक्रिया को रुकवा दिया, जो काफी हैरान करने वाली बात है. कई महीने बाद जब उन मजिस्ट्रेट का तबादला हो गया, तो शिकायतकर्ता ने ऊपरी अदालत में डाली गई अपनी अर्जी को वापस ले लिया और केस फिर से निचली अदालत में आ गया. लेकिन इस बार एक अलग मजिस्ट्रेट की कोर्ट में केस चला, जहां अभी फैसला आया है. देखना होगा कि इस दौरान न्यायिक प्रक्रिया का सही ढंग से पालन हुआ है या नहीं.
- कानून में एक प्रावधान है जिसे 202 कहते हैं. (Section 202 (1) of CrPC) यह प्रावधान विशेष रूप से इसलिए बनाया गया है, ताकि एक जगह हुई वारदात के लिए कोई बहुत दूर के इलाके में शिकायत दर्ज कराए, तो मजिस्ट्रेट को न्यायिक प्रक्रिया शुरू करने से पहले यह जांच करनी होगी कि यह केस उसके भौगोलिक अधिकार-क्षेत्र में आता भी है या नहीं? हमें लगता है कि मौजूदा मामले में इस प्रावधान की अनदेखी हुई है.
- दोषी करार दिए जाने के बाद सजा का फैसला करने के लिए अलग से सुनवाई करनी होती है. इस मामले में अलग से सुनवाई हुई तो जरूर लेकिन 15-20 मिनट की सुनवाई के बाद इस मामले में जो अधिकतम मुमकिन सजा थी, वह सुना दी गई. यह प्रक्रिया किस हद तक सही है या गलत है, यह भी देखना होगा.
ऊपरी अदालत में फैसले पर रोक लगने की उम्मीद : सिंघवी
अभिषेक मनु सिंघवी ने मजिस्ट्रेट के फैसले पर ये सवाल उठाने के बाद कहा कि यह फैसला मजिस्ट्रेट द्वारा यानी ज्युडिशियल सिस्टम में सबसे निचले स्तर की अदालत में लिया गया है. हम इसे सेशन्स कोर्ट ले जाएंगे. उसके ऊपर भी कई अदालतें हैं. यह एक गलत निर्णय है. कानून में इसका समर्थन नहीं किया जा सकता. हमें भरोसा है कि ऊपरी अदालत में इस पर रोक लगाई जाएगी और जल्द से जल्द हमें सकारात्मक आदेश मिलेगा.
बीजेपी के आपत्तिजनक बयानों पर कार्रवाई नहीं होती : सिंघवी
अभिषेक मनु सिंघवी ने इन कानूनी तर्कों को पेश करने के साथ ही मोदी सरकार पर निशाना भी साधा. उन्होंने कहा कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता और मंत्री हर रोज बेहद आपत्तिजनक बयान देते रहते हैं. लेकिन उन्हें अनदेखा-अनसुना कर दिया जाता है. जबकि विपक्ष की आवाज को रोकने और सवाल पूछने वालों को डराने-धमकाने के लिए गलत मुकदमे थोपने समेत अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन अगर उन्हें लगता है कि इन कोशिशों की वजह से कांग्रेस या राहुल गांधी जनहित के मुद्दों को उठाने में हिचकने लगेंगे, तो उनकी ये धारणा गलत है.