Government Securities (G-Sec): पिछले दो दशकों में म्युचुअल फंड में रिटेल निवेशकों की भागीदारी कई गुना बढ़ गई है. इस दौरान मुख्य रूप से इक्विटी स्कीमों को निवेशकों ने पसंद किया है. जनवरी 2023 तक एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (एएमएफआई) के आंकड़ों के अनुसार, इनडिविजुअल म्यूचुअल फंड निवेशकों के पास उनके कुल म्यूचुअल फंड एलोकेशन का 80 फीसदी इक्विटी योजनाएं थीं, जबकि सिर्फ 14 फीसदी एलोकेशन ही डेट-ओरिएंटेड योजनाओं में था.
डेट एसेट क्लास को लेकर जागरूकता बढ़ी
अब तक का ट्रेंड देखें तो , बहुत से लोग पारंपरिक गारंटीड फिक्स्ड इनकम प्रोडक्ट्स पर सुरक्षा के लिहाज से भरोसा करते थे क्यों कि उनमें एक तय रिटर्न हासिल होता है. हालांकि इसमें असल रिटर्न कितना है, वे इस बात की भी परवाह नहीं करते थे. दूसरी ओर, एक्टिव मैनेजमेंट के माध्यम से एक डेट एसेट क्लास में हाई रिटर्न अर्जित करने की क्षमता (चाहे अपेक्षाकृत कम क्रेडिट रेटिंग के जरिए या सक्रिय ब्याज दर प्रबंधन के माध्यम से) को बहुत से रिटेल निवेशक इसकी जटिलता के कारण समझ नहीं पाए. यानी अबतक उन्होंने इस खास एसेट क्लास में किसी सार्थक तरीके से हिस्सा नहीं लिया है. हालांकि, डेट एसेट क्लास को लेकर जागरूकता धीरे-धीरे बढ़ रही है.
सबसे पहले, निवेशक इनफ्लेशन एडजस्टेड रिटर्न के माध्यम से अपने पारंपरिक डेट निवेश का मूल्यांकन करना सीख रहे हैं. दूसरे, वे कर-पश्चात रिटर्न पर विचार कर रहे हैं. इन दोनों मामलों में, ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट के विकल्प डिलीवर नहीं कर सकते हैं, लेकिन फिक्स्ड रिटर्न विजिबिलिटी के चलते अभी भी बहुत से निवेशक इन विकल्पों में सहज महसूस करते हैं.
टारगेट मैच्योरिटी फंड: एक दिलचस्प प्रोडक्ट
हाल के कुछ साल में पैसिव डेट म्युचुअल फंड के रूप में एक दिलचस्प डेवलपमेंट देखने को मिला है, जिसे टारगेट मैच्योरिटी फंड (TMF) के रूप में जाना जाता है. TMF ने इस अंतर को पाटने की कोशिश की है और सभी स्टेकहोल्डर्स के लिए विन-विन सिचुएशन पैदा किया है. पिछले साल तक, टारगेट मैच्योरिटी फंड कैटेगरी और यहां तक कि ट्रेडिशनल डेट प्रोडक्ट भी निवेशकों के लिए बहुत आकर्षक नहीं थे, क्योंकि अर्थव्यवस्था में ब्याज दरें कम थीं. हालांकि, विश्व स्तर पर और भारत में भी, केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है और ऐसे प्रोडक्ट पर निरपेक्ष आधार पर यील्ड अब आकर्षक हुआ है. इस पृष्ठभूमि में, G-Sec यानी गवर्नमेंट सिक्योरिटीज पोर्टफोलियो वाला एक TMF मुश्किल परिस्थितियों में भी कारगर साबित हो सकता है.
किस तरह के निवेशकों के लिए बेहतर है G-Sec
प्रचलित यील्ड माइनस एक्सपेंस वह होता है जो निवेशक सामान्य परिस्थितियों में, टेन्योर के अंत में हासिल करने की उम्मीद कर सकता है. हालांकि, अगर योजना के किसी भी पेपर में कोई डाउनग्रेड या डिफॉल्ट हो तो यह रिटर्न कम हो सकता है. ऐसे में एक G-Sec पोर्टफोलियो भारत में निवेशकों उन निवेशकों के लिए बेहतर साबित हो सकता है जो डेट निवेश की बात आने पर बाजार का जोखिम नहीं लेना चाहते हैं. ट्रेडिशनल डेट विकल्पों के उलट, इंडेक्सेशन लाभ के कारण 3 साल से अधिक के निवेश हॉरिजन के लिए एक TMF टैक्स एफिसिएंट भी है. कैपिटल गेंस का कैलकुलेशन करते समय निवेशक महंगाई (सीआईआई इंडेक्स) के साथ अधिग्रहण की लागत को समायोजित कर सकते हैं. तीसरा, अगर निवेशक मैच्योरिटी तक TMF को होल्ड कर सकते हैं, तो ब्याज दर में उतार-चढ़ाव के मामले में कोई अंतरिम अस्थिरता मायने नहीं रखेगी. उदाहरण के लिए, अगर ब्याज दर बढ़ना शुरू हो जाता है, तो एक एक्टिव डेट म्यूचुअल फंड योजना में एक निवेशक को कैपिटल लॉस का सामना करना पड़ सकता है.
15-20 साल मैच्योरिटी वाले भी प्रोडक्ट
इसी तरह, टारगेट मैच्योरिटी फंड का NAV भी प्रभावित हो सकता है. हालांकि, जैसे-जैसे टारगेट मैच्योरिटी फंड अपनी मैच्योरिटी के करीब पहुंचता है, NAV धीरे-धीरे एक समान मूल्य को रिफलेक्ट करने की उम्मीद करता है. इसे आमतौर पर सुरक्षा के रोल-डाउन के रूप में जाना जाता है. एक और महत्वपूर्ण बात जो अधिकांश सलाहकारों और निवेशकों द्वारा नहीं देखा गया है वह है टेन्योर. TMF आजकल अलग अलग मैच्योरिटी के लिए मसलन 15-20 साल और उससे अधिक समय के लिए उपलब्ध हैं. यह रीइन्वेस्टमेंट के जोखिम को भी समाप्त कर सकता है. दूसरी ओर, ट्रेडिशनल डेट विकल्प शायद ही कभी इतनी लंबी अवधि के लिए ब्याज दरों में लॉकिंग-इन प्रदान करते हैं. परिणामस्वरूप, रोल ओवर के समय निवेशकों को यील्ड का समान लेवल मिल भी सकता है और नहीं भी.
सेफ्टी-फर्स्ट जैसे वरीयता का ध्यान
इस प्रकार, G-Sec के लिए प्रमुख एलोकेशन के साथ TMF भारत में निवेशकों के सेफ्टी-फर्स्ट जैसे वरीयता का ख्याल रखता है. इस तरह के डेट प्रोडक्ट में न्यूनतम क्रेडिट रिस्क होता है, क्योंकि यह गवर्नमेंट सिक्योरिटीज द्वारा समर्थित होता है और इसकी सॉवरेन रेटिंग होती है. सिंगल प्वॉइंट पोर्टफोलियो फोकस के चलते यह निवेशकों को एक सरल विकल्प के रूप में मदद करता है. इसमें सलाहकार या निवेशक को बहुत सी चीजों को ट्रैक करने की आवश्यकता नहीं होती है. दूसरे, एक G-Sec प्रोडक्ट, टैक्सेशन और रिटर्न दोनों पहलुओं से एक स्मार्ट विकल्प है. अंत में, यह लंबी अवधि के लिए एसेट एलोकेशन प्लानिंग प्रदान करता है, वह भी अपेक्षाकृत कम खर्च पर.
(लेखक: अजीत मेनन, सीईओ , PGIM इंडिया म्यूचुअल फंड)