RBI may pause interest rate hike in April policy: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की अप्रैल में होने वाली मॉनेटरी पॉलिसी की समीक्षा बैठक में ब्याज दरें बढ़ाने का सिलसिला रुक सकता है. यह अनुमान स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की रिसर्च टीम (SBI Research) ने अर्थव्यवस्था के आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर लगाया है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की अगली बैठक 3, 5 और 6 अप्रैल को होनी है. आरबीआई की एमपीसी की पिछली बैठक फरवरी में हुई थी, जिसमें रेपो रेट को 6.25 फीसदी से बढ़ाकर 6.5 फीसदी किया गया था. आरबीआई ने उस वक्त कहा था कि खुदरा महंगाई दर को काबू में रखना और लगातार ऊंचे स्तर पर बरकरार कोर इंफ्लेशन को कम करना ही 25 बेसिस प्वाइंट्स की इस बढ़ोतरी का मुख्य मकसद है.
फिलहाल ‘पीक’ पर है रेपो रेट : SBI Research
एसबीआई रिसर्च के मुताबिक भारत की खुदरा और कोर महंगाई दरों से लेकर यूएस फेड की ब्याज दरों तक तमाम महत्वपूर्ण आंकड़े इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि 6.5 फीसदी का मौजूदा रेपो रेट (Repo Rate) ही उसका पीक यानी सबसे ऊंचा स्तर है. लिहाजा, अब इसमें और बढ़ोतरी किए जाने की संभावना नहीं लग रही है. एसबीआई रिसर्च ने ये बातें अपनी ताजा रिपोर्ट (SBI Ecowrap) में कही हैं. रेपो रेट ब्याज की वो दर है, जो रिजर्व बैंक कॉमर्शियल बैंकों को लोन देने के लिए वसूल करता है. आम तौर पर बाजार में आम लोगों से वसूली जाने वाली ब्याज दरों पर इसका सीधा असर पड़ता है.
कोर इंफ्लेशन 5.5% से नीचे जाने के आसार नहीं
एसबीआई के ग्रुप चीफ इकनॉमिक एडवाइजर सौम्य कांति घोष ने इस रिपोर्ट में तमाम आंकड़ों की मदद से बताया है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास अब इस बात के पर्याप्त कारण मौजूद हैं कि वो अप्रैल की समीक्षा में रेपो रेट में कोई इजाफा न करे. उनका कहना है कि जहां तक जिद्दी कोर इंफ्लेशन के नहीं घटने का सवाल है, जनवरी 2012 से अब तक औसत कोर इंफ्लेशन (average core CPI) 5.84 फीसदी है, जबकि इसका पीक 6 से 6.5 फीसदी के बीच घूमता रहा है. इस बात की बहुत कम संभावना है कि यह आने वाले दिनों भी 5.5 फीसदी या उससे नीचे जाएगा.
वाजिब से ज्यादा है मौजूदा रेपो रेट : SBI Research
एसबीआई रिसर्च का कहना है कि कोर इंफ्लेशन के इस जिद्दी बर्ताव के लिए पेट्रोल-डीज़ल की ऊंची कीमतों के कारण ट्रांसपोर्ट कॉस्ट का ऊंचे स्तर पर बने रहना और कोरोना महामारी के बाद स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च में बढ़ोतरी जैसे कारण जिम्मेदार हैं. रिपोर्ट के मुताबिक अगर आरबीआई ने कोर इंफ्लेशन को ही मुख्य फोकस में रखा, तब तो ब्याज दरों में अभी और कई बार बढ़ोतरी करनी पड़ सकती है. लेकिन घरेलू खुदरा महंगाई दर, कोर इंफ्लेशन और फेड रेट – तीनों पहलुओं को ध्यान में रखकर अनुमान लगाएं तो ऑप्टिमम यानी वाजिब या तर्कसंगत रेपो रेट 6.2 से 6.32 फीसदी के बीच होना चाहिए. आरबीआई का मौजूदा रेपो रेट (6.5 फीसदी) पहले ही इससे अधिक है. एसबीआई रिसर्च ने उम्मीद जाहिर की है कि इन हालात में आरबीआई की एमपीसी की अगली बैठक में ब्याज दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं की जाएगी.