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वारेन बफेट की 'सर्कल ऑफ कॉम्पिटेंस' थ्योरी बताती है कि निवेश उन्हीं फील्ड में करें जिन्हें आप गहराई से समझते हैं. यह समझदारी से निवेश करने का मूल मंत्र है.
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बफेट ने बीमा और कंज्यूमर प्रोडक्ट्स जैसी कंपनियों में निवेश किया, जो उनकी समझ के दायरे में थे, और टेक कंपनियों से दूरी बनाए रखी, क्योंकि वे उनकी समझ से बाहर थीं.
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भारत में स्टार्टअप्स का दौर जोर पकड़ रहा है, लेकिन बफेट की सलाह है कि अगर किसी कंपनी का बिजनेस मॉडल समझ नहीं आता, तो उसमें निवेश करना जुआ हो सकता है.
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युवा निवेशकों को सलाह दी जाती है कि वे अपने 'सर्कल ऑफ कॉम्पिटेंस' की पहचान करें और वहीं निवेश करें जहां उनकी समझ साफ हो.
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स्टार्टअप्स की चमक-धमक में निवेशकों को यह समझना जरूरी है कि कई कंपनियां अभी तक मुनाफा नहीं कमा रही हैं और उनके बिजनेस मॉडल को समझना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.
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बफेट की थ्योरी नुकसान से बचने के लिए भी कारगर है. क्रिप्टो और एडटेक कंपनियों में बिना समझे निवेश करने से कई निवेशकों को नुकसान हुआ.
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निवेश में समझदारी का मतलब है कि आप जानते हों कहां निवेश नहीं करना है. हर चमकती चीज के पीछे भागना सही नहीं है.
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अपने 'सर्कल ऑफ कॉम्पिटेंस' को बढ़ाने के लिए पढ़ाई और जानकारी जुटाना जरूरी है. बफेट खुद भी रोजाना घंटों पढ़ाई करते हैं.
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बफेट की सलाह है कि आप हर चीज में माहिर बनने की कोशिश न करें, बल्कि अपनी समझ की सीमाओं को पहचानें और उन्हीं फील्ड में निवेश करें जहां आपकी पकड़ मजबूत है.
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अंत में, बफेट की एक महत्वपूर्ण सलाह है कि अगर आप किसी गड्ढे में फंसे हैं, तो खुदाई बंद कर दीजिए. यह निवेश के साथ-साथ जीवन में भी लागू होती है.
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