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सरकार लगातार बढ़ते प्रदुषण को ध्यान में रखते हुए लोगों को इलेक्ट्रिक व्हीकल खरीदने के लिए प्रेरित कर रही है.
सरकार लगातार बढ़ते प्रदुषण को ध्यान में रखते हुए लोगों को इलेक्ट्रिक व्हीकल खरीदने के लिए प्रेरित कर रही है. पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमत के चलते भी लोगों का रूझान इलेक्ट्रिक व्हीकल की ओर बढ़ा है. हालांकि, गाड़ियों का इलेक्ट्रिक वेरिएंट, पेट्रोल-डीजल वेरिएंट के मुकाबले काफी महंगा पड़ता है. अगर रनिंग कॉस्ट के हिसाब से तुलना की जाए तो इलेक्ट्रिक व्हीकल, पेट्रोल-डीजल वाली गाड़ियों के मुकाबले काफी सस्ता है. अब सवाल यह है, अगर आप महंगी इलेक्ट्रिक कार खरीदने के बारे में सोच रहे हैं, तो यह आपके लिए कितना व्यवहारिक है और ई-कार पर खर्च हुई अतिरिक्त रकम को आप कितने दिनों में वसूल पाएंगे? यहां हमने कारों के पेट्रोल-डीजल वेरिएंट और इलेक्ट्रिक वेरिएंट की आपस में तुलना की है. इसकी मदद से आपको यह समझने में आसानी होगी.
कार की कीमतों की तुलना
- कारों की कीमतों की तुलना के लिए यहां हमने टाटा नेक्सॉन और टाटा टाइगॉर के बेस मॉडल को चुना है. टाटा नेक्सॉन (बेस मॉडल) की बात करें तो इसके पेट्रोल वेरिएंट की कीमत 7.29 लाख रुपये और डीजल वेरिएंट की कीमत 8.60 लाख रुपये है. वहीं इसके इलेक्ट्रिक वेरिएंट की कीमत 14.24 लाख रुपये से शुरू होती है. इस तरह देखा जाए तो इलेक्ट्रिक वेरिएंट की कीमत, पेट्रोल-डीजल वेरिएंट के मुकाबले लगभग दोगुनी है. टाटा नेक्सॉन के ऑटोमेटिक वेरिएंट की बात करें तो इसकी कीमत 8.94 लाख रुपये से शुरू होती है.
- टाटा टाइगॉर (बेस मॉडल) की बात करें तो इसके पेट्रोल/डीजल वेरिएंट की कीमत 5.67 लाख रुपये से शुरू होती है. वहीं, इसके इलेक्ट्रिक वेरिएंट की कीमत 11.99 लाख रुपये है. इसके अलावा, टाटा टाइगॉर के ऑटोमेटिक वेरिएंट की कीमत 6.82 लाख रुपये है.
रनिंग कॉस्ट की तुलना
मान लीजिए कि पेट्रोल की कीमत 100 रुपये प्रति लीटर है और आपकी कार 15 किमी/लीटर का माइलेज देती है. इसका मतलब है कि एक किलोमीटर की दूरी तय करने में आपको 6.6 रुपये का खर्च आएगा. अगर आपके इलेक्ट्रिक व्हीकल की बैटरी को पूरी तरह से चार्ज करने में लगभग 80 यूनिट बिजली की खपत होती है और आप प्रति यूनिट लगभग 5 रुपये का भुगतान करते हैं, तो एक बार चार्ज करने में लगभग 400 रुपये का खर्च आएगा. मान लीजिए कि आपकी गाड़ी एक बार पूरी तरह चार्ज होने के बाद 450 किमी की दूरी तय कर सकती है, तो इस हिसाब से आपको एक किलोमीटर की दूरी तय करने में एक रुपये से भी कम लागत आएगी. इस तरह देखा जाए तो यह पेट्रोल के मुकाबले काफी सस्ता है. अगर आप रेगुलर अपने इलेक्ट्रिक व्हीकल का इस्तेमाल करते हैं तो ऐसे में ई-कार पर खर्च हुई अतिरिक्त रकम को वसूला जा सकता है. हालांकि यह आप पर निर्भर करता है कि आप अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इलेक्ट्रिक व्हीकल का कितना इस्तेमाल करते हैं और कितनी जल्दी यह रकम वसूलते हैं.
चार्ज करने में होगा इतना खर्च
इलेक्ट्रिक व्हीकल चार्ज की लागत में अलग-अलग राज्यों में अंतर है. मुंबई में इलेक्ट्रिक कार चार्ज करने का खर्च प्रति यूनिट 15 रुपये है. वहीं दिल्ली में यह और भी कम है. दिल्ली में लो टेंशन व्हीकल को चार्ज करने के लिए प्रति यूनिट 4.5 रुपये और हाई टेंशन व्हीकल को चार्ज करने का खर्च 5 रुपये प्रति यूनिट है. इलेक्ट्रिक कार को फ़ुल चार्ज करने में एक बार में क़रीब 30 से 40 यूनिट बिजली खर्च होती है. ऐसे में दिल्ली में एक बार बैटरी चार्ज करने में क़रीब 200 रुपये का खर्च आएगा, वहीं मुंबई में इसमें 600 रुपये तक का खर्च आएगा.
चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर
भारत में वर्तमान में लगभग 4,500 ईवी पब्लिक चार्जिंग स्टेशन हैं, इसमें सरकारी, निजी व इनका कंबाइंड इनिशिएटिव शामिल है. अगर साल 2026 तक सड़कों पर 20 लाख इलेक्ट्रिक व्हीकल का लक्ष्य हो तो इस हिसाब से चार्जिंग स्टेशनों का होना जरूरी है. इस हिसाब से देखा जाए तो हमें लगभग 100 गुना ज्यादा, यानी कम से कम 4 लाख चार्जिंग स्टेशनों की जरूरत होगी. ऐसे में फिलहाल दिक्कत यह है कि अगर आप इस गाड़ी से कहीं लंबी दूरी की यात्रा पर जाते हैं तो आपको इसे चार्ज करने की दिक्कत आ सकती है, क्योंकि चार्जिंग स्टेशन हर जगह उपलब्ध नहीं हैं.
चार्ज होने में कितना समय लगता है?
इलेक्ट्रिक व्हीकल को दो तरह से चार्ज किया जा सकता है. इलेक्ट्रिक व्हीकल में दी जाने वाली फ़ास्ट चार्जिंग के ज़रिए कार की बैटरी को एक से दो घंटे में फ़ुल चार्ज किया जा सकता है. इसके साथ ही स्लो चार्जिंग के ज़रिए कार की बैटरी फ़ुल चार्ज होने में छह से सात घंटे का समय लेती है. इस तरह, पेट्रोल-डीजल की तुलना में यह काफी ज्यादा समय लेता है.
क्या आपको इलेक्ट्रिक व्हीकल खरीदना चाहिए?
अगर आप पर्यावरण को लेकर सजग हैं तो इलेक्ट्रिक व्हीकल का विकल्प चुन सकते हैं. आप कुछ सालों में ही ई-कार पर खर्च हुई अतिरिक्त रकम को वसूल सकते हैं. हालांकि, इसके लिए 2-3 साल तक इंतजार करना भी समझदारी होगी ताकि आपके पास कारों का ज्यादा विकल्प और बेहतर चार्जिंग स्टेशन नेटवर्क हो.