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आइए आसान भाषा में ऑफ बजट बोरोइंग का मतलब जानते हैं.
Union Budget 2021-22: वित्त वर्ष 2021-22 का बजट 1 फरवरी को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) पेश करेंगी. यह मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का तीसरा बजट होगा. कोरोना महामारी और उसके बाद आर्थिक संकट के कारण यह बजट बहुत महत्वपूर्ण हो गया है. बजट में अगले वित्त वर्ष में सरकार द्वारा किए जाने वाले खर्च के साथ अर्थव्यवस्था को मजबूती देने वाली घोषणाएं और प्रावधान भी किए जाएंगे. बजट से पहले उसके कुछ शब्दों के मतलब को जान लेना बहुत जरूरी है. ऐसा ही एक शब्द है- ऑफ बजट बाॅरोइंग. अधिकतर लोगों को इसका अर्थ नहीं पता है. आइए आसान भाषा में ऑफ बजट बोरोइंग का मतलब जानते हैं.
ऑफ बजट बाॅरोइंग का मतलब
ऑफ बजट बोरोइंग का संबंध राजकोषीय घाटे यानी फिस्कल डेफिसिट से होता है. इसलिए पहले इसके मतलब को जान लेना जरूरी है. राजकोषीय या वित्तीय घाटा सरकार के खर्च और कमाई के बीच का अंतर है. जब सरकार को मिलने वाला राजस्व यानी उसकी कमाई कम रहती है और खर्च अधिक होते हैं, तो इस ​स्थिति को राजकोषीय या वित्तीय घाटा कहा जाता है. इस संख्या से किसी भी सरकार की वित्तीय स्थिति का भी पता चलता है. देश के अंदर और बाहर की रेटिंग एजेंसियां इस पर नजर रखती हैं. इसलिए सरकार की कोशिश रहती है कि वित्तीय घाटा कम रहे. वित्तीय घाटा कम करने का एक तरीका ऑफ बजट बोरोइंग है.
ऑफ बजट बोरोइंग वे लोन होते हैं, जो केंद्र सरकार सीधे तौर पर नहीं लेती है. बल्कि, कोई दूसरा पब्लिक इंस्टीट्यूशन यानी सार्वजनिक संस्था सरकार के कहने पर इस लोन को लेती है. ऐसे लोन सरकार के खर्च को पूरा करने में मदद करते हैं. लेकिन क्योंकि इस लोन की लायबिलिटी या दायित्व औपचारिक तौर पर केंद्र सरकार का नहीं होती, इसलिए ऐसे लोन को देश के राजकोषीय घाटे यानी फिस्कल डेफिसिट में शामिल नहीं किया जाता है. और सरकार को इससे देश के राजकोषीय घाटे को कम करने में मदद मिलती है.
सरकार कैसे करती है ऑफ बजट बोरोइंग ?
सरकार किसी एजेंसी से बाजार से फंड जुटाने के लिए कह सकती है. इसे लोन या बॉन्ड को जारी करके किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, फूड सब्सिडी केंद्र सरकार के बड़े खर्चों में से एक है. 2020-21 के बजट में सरकार ने फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया को सब्सिडी बिल की केवल आधी राशि का भुगतान किया. बाकी राशि को नेशनल सेविंग्स फंड से लोन के जरिए पूरा किया गया. इससे केंद्र सरकार को अपने फूड सब्सिडी बिल को 1,51,000 करोड़ से घटाकर 77,892 करोड़ का ही भुगतान करना पड़ा.
दूसरे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम यानी पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग ने भी सरकार के लिए कर्ज लिए हैं. उदाहरण के लिए, इससे पहले प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के लाभार्थियों के सब्सिडी वाले गैस सिलेंडर के लिए पब्लिक सेक्टर ऑयल मार्केटिंग कंपनियों को भुगतान करने के लिए कहा गया है. फंड के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का भी इस्तेमाल किया जाता है. उदाहरण के लिए, उवर्रक सब्सिडी में कमी के लिए इन बैंकों से लोन का इस्तेमाल किया गया था.