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Economic Survey 2020, Union Budget 2020 Economic Survey: आर्थिक सर्वेक्षण 2020 संसद में पेश हो चुका है. इसमें वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान देश की आर्थिक विकास दर 6-6.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया है. वहीं वित्त वर्ष 2019-20 में जीडीपी ग्रोथ 5 फीसदी रहने की बात कही गई है. अब इकोनॉमिक सर्वे पर मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन डिटेल्ड ब्यौरा दे रहे हैं. सुब्रमण्यन ने बताया कि इस बार इकोनॉमिक सर्वे 2020 की थीम वेल्थ क्रिएशन है. हम पुराने और नए को साथ लेकर चलने की सिंथेसिस पर चल रहे हैं. उदाहरण के तौर पर इस वित्त वर्ष हम 100 रुपये का नया नोट लेकर आए लेकिन पुराना भी बरकरार रहा.
उन्होंने इस बात को स्वीकारा कि भारतीय अर्थव्यवस्था सुस्ती से गुजर रही है. इसका कारण ग्लोबल इकोनॉमी में सुस्ती है. विकसित, विकासशील, उभरते सभी बाजारों स्लोडाउन से जूझ रहे हैं. आगे कहा कि नॉन फूड क्रेडिट में कॉरपोरेट लोन्स 2013 में पीक पर थे. जिन कंपनियों ने 2008-2012 के बीच बड़े पैमाने पर लोन लिया, उन्होंने 2013-17 के बीच कम निवेश किया. इसके चलते 2013 के बाद से निवेश घटा और इसका निवेश पर नकारात्मक असर पड़ा. निवेश घटने से 2017 के बाद जीडीपी ग्रोथ भी नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई.
उन्होंने यह भी बताया कि अगर देश में विलफुल डिफॉल्ट नहीं होते तो सरकार सोशल सेक्टर, रेलवे आदि जैसे क्षेत्रों में अधिक पैसे खर्च करने में सक्षम होती. सोशल सेक्टर में यह अमाउंट लगभग दोगुना होता.
इकोनॉमिक सर्वे के 10 नए आइडिया
1. वेल्थ क्रिएशन सभी के लिए फायदेमंद
2. वेल्थ क्रिएशन में मार्केट मददगार
3. मार्केट के साथ विश्वास को साथ चलने की जरूरत
4. जमीनी स्तर के एंटरप्रेन्योर्स अपने जिलों में वेल्थ क्रिएट करते हैं.
5. प्रो बिजनेस पॉलिसीज समान अवसर उपलब्ध कराती हैं.
6. सरकार के पुराने जमाने के दखल दूर करना
7. विश्व के लिए भारत में असेंबलिंग को प्रोत्साहित कर रोजगार सृजन को बढ़ावा देना
8. ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के मोर्चे पर कुछ और बदलाव व कदमों के लिए भारत को टॉप 50 में लाना
9. भारत के बैंकिंग सेक्टर की सब स्केलिंग
10. थालीनॉमिक्स
बाजार और विश्वास को साथ मिलकर चलने की जरूरत
उन्होंने बताया कि एंटरप्रेन्योर्स द्वारा वेल्थ क्रिएटर्स का विश्लेषण दर्शाता है कि वेल्थ क्रिएशन सभी के लिए फायदेमंद है. वेल्थ क्रिएशन के लिए बाजार और विश्वास को साथ मिलकर चलने की जरूरत है. इसका जिक्र अर्थशास्त्र में भी है.
बैंकिंग सेक्टर
भारत बैकिंग सेक्टर की सब स्केलिंग में अभी 5वें नंबर पर है. 2019 में ग्लोबल टॉप 100 में बैंकों की संख्या को लेकर भारत काफी पीछे था. ग्लोबल टॉप 100 में भारत का केवल एक बैंक शामिल है, जबकि इसमें टॉप पर चीन है. भारतीय अर्थव्यवस्था के सही आकार के लिए ग्लोबल टॉप 100 में भारत को 6 बैंक लाने चाहिए और 2025 तक इनकी संख्या 8 होनी चाहिए.
ईज ऑफ डूइंग बिजनेस
सीईए ने बताया कि विश्व बैंक की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग के मामले में 2014 में भारत 142 नंबर पर था. 2019 तक रैंकिंग सुधरकर 63 हो गई. इस मोर्चे पर भारत अभी भी कारोबार शुरू करने में आसानी, प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन, टैक्स भुगतान और कॉन्ट्रैक्ट इन्फोर्सिंग के मामले में पीछे है. भारत में किसी बिजनेस को स्थापित करने में सभी प्रकियाओं को पूरा करने में औसतन 18 दिन लगते हैं. वहीं न्यूजीलैंड में यह सब केवल आधे दिन में हो जाता है.
जॉब क्रिएशन
सर्वे में कहा गया है कि 2025 तक देश में अच्छे वेतन वाली 4 करोड़ नौकरियां होंगी और 2030 तक इनकी संख्या 8 करोड़ हो जाएगी. भारत के पास श्रम आधारित निर्यात को बढ़ावा देने के लिए चीन के समान काफी अवसर हैं. दुनिया के लिए भारत में एसेम्बल इन इंडिया और मेक इन इंडिया योजना को एक साथ मिलाने से निर्यात बाजार में भारत की हिस्सेदारी 2025 तक 3.5 फीसदी और 2030 तक 6 फीसदी हो जाएगी.
2025 तक भारत को 5 हजार अरब वाली अर्थव्यवस्था बनाने के लिए जरूरी मूल्य संवर्धन में नेटवर्क उत्पादों का निर्यात एक तिहाई की वृद्धि करेगा. समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि इन अवसरों का लाभ उठाने के लिए भारत को चीन जैसी रणनीति का पालन करना चाहिए. श्रम आधारित क्षेत्रों विशेषकर नेटवर्क उत्पादों के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर विशेषज्ञता हासिल करना. नेटवर्क उत्पादों के बड़े स्तर पर एसेम्लिंग की गतिविधियों पर खासतौर से ध्यान केंद्रित करना.
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थालीनॉमिक्स
व्यक्ति के रोज की थाली में शामिल चीजें जैसे- दाल, चावल, रोटी, सब्जी, मसाले आदि को मिलाकर एक थाली की कीमत कम हुई है. यानी लोगों को सस्ती शाकाहारी थाली मुहैया कराने में तेजी आई है. आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि अब औद्योगिक श्रमिकों की दैनिक आमदनी की तुलना में भोजन की थाली और सस्ती हो गई है. 2006-2007 की तुलना में 2019-20 में शाहाकारी भोजन की थाली 29 फीसदी और मांसाहारी भोजन की थाली 18 फीसदी सस्ती हुई हैं.
भारत में भोजन की थाली के अर्थशास्त्र के आधार पर समीक्षा में यह निष्कर्ष निकाला गया है. यह अर्थशास्त्र भारत में एक सामान्य व्यक्ति द्वारा एक थाली के लिए किए जाने वाले भुगतान को मापने की कोशिश है.