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Economic Survey 2020: आर्थिक सर्वेक्षण में देश की आर्थिक विकास दर (GDP Growth Rate) वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान 6-6.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया है. वहीं वित्त वर्ष 2019-20 में जीडीपी ग्रोथ 5 फीसदी रह सकती है. इकोनॉमिक सर्वे में कहा गया है कि ग्रोथ को बढ़ावा देने के लिए सरकार को बड़े कदम उठाने होंगे. आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को बढ़ाया जा सकता है. आर्थिक ग्रोथ को रफ्तार देने के लिए यह जरूरी है. बता दें, मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का दूसरा आम बजट वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी 2020 को पेश करेंगी. बजट से ठीक एक दिन पहले सरकार संसद में आर्थिक सर्वेक्षण पेश करती है.
सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत की जीडीपी 2019-20 की पहली छमाही में 4.8 फीसदी रही. इसका कारण कमजोर वैश्विक विनिर्माण, व्यापार और मांग है. वास्तविक उपभोग वृद्धि दूसरी तिमाही में बेहतर हुई है. इसका कारण सरकारी खपत में वृद्धि होना है. कृषि और सम्बन्धित गतिविधि, लोक प्रशासन, रक्षा और अन्य सेवाओं में 2019-20 की पहली छमाही में वृद्धि 2018-19 की दूसरी छमाही से अधिक थी.
साल के आखिर में घटेगी महंगाई
सर्वेक्षण के अनुसार, चालू खाता घाटा कम होकर 2019-20 की पहली छमाही में जीडीपी का 1.5 फीसदी रह गया. जबकि 2018-19 में यह 2.1 फीसदी था. 2019-20 की पहली छमाही में निर्यात की तुलना में आयात में कमी आई. महंगाई दर में साल के अंत तक कमी आएगी. 2019-20 की पहली छमाही में 3.3 फीसदी से बढ़कर दिसम्बर में 7.35 फीसदी हो गई. खुदरा महंगाई और थोक महंगाई दर में वृद्धि दर्शाती है कि मांग में वृद्धि हुई है.
जीडीपी में मंदी का कारण विकास चक्र का धीमा होना है. निवेश खपत और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 2019-20 के दौरान कई सुधार किए गए. इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड ला गया. राज्यों का वित्तीय घाटा एफआरबीएम अधिनियम द्वारा निर्धारित लक्ष्यों के दायरे में है. समीक्षा में कहा गया है कि सरकारें (केन्द्र और राज्य) वित्तीय मजबूती के पथ पर है.
GDP ग्रोथ में गिरावट साइक्लिक
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि जीडीपी ग्रोथ में गिरावट साइक्लिक है. रीयल एस्टेट में सुस्ती का असर फाइनेंशियल सेक्टर पर पड़ा है. सरकार को अगले वित्त वर्ष में ग्रोथ को रफ्तार देने के लिए आर्थिक सुधार के कदम तेजी से उठाने होंगे. इस साल दो हिस्सों में लैवेंडर कलर में छपा है. इसका कलर वैसा ही है जैसा 100 रुपये के नए करंसी नोट है. पुराने नोट भी चलन में बने हुए हैं.
सर्वेक्षण में कहा गया है कि सरकार का सस्ता मकान, मेक इन इंडिया, कॉरपोरेट टैक्स में कटौती और कारोबार सुगमता में सुधार जैसे कदमों के अलावा अन्य कारकों से आर्थिक वृद्धि में तेजी लाने में मदद मिलेगी. हालांकि समीक्षा में आगाह करते हुए कहा गया है कि वैश्विक व्यापार में निरंतर समस्या, अमेरिका-ईरान के बीच भू-राजनीतिक तनाव और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में कमजोर आर्थिक पुनरूद्धार जैसे कुछ जोखिम हैं जिससे वृद्धि नीचे जा सकती है.
सुधारों को तेजी से आगे बढ़ाने की क्षमता
समीक्षा में कहा गया है, ‘‘शुद्ध रूप से ऐसा लगता है कि मजबूत जानदेश वाली सरकार के पास सुधारों को तेजी से आगे बढ़ाने की क्षमता को देखते हुए वृद्धि के ऊपर जाने की संभावना है.’’ इसमें कहा गया है, ‘‘वित्त वर्ष 2020-21 में भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि में तेजी आनी चाहिए. इसका एक कारण 2019-20 में 5 प्रतिशत वृद्धि का तुलनात्मक आधार कमजोर होना है.’’
सर्वे के अनुसार, 2019-20 की दूसरी छमाही में तेजी में 10 क्षेत्रों का प्रमुख योगदान रहा है. ये प्रमुख क्षेत्र इस साल पहली बार निफ्टी इंडिया कंजप्शन इंडेक्स में तेजी, शेयर बाजार में मजबूती, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह में बेहतर होना, वस्तुओं की मांग बढ़ना, ग्रामीण क्षेत्रों में खपत का अनुकूल माहौल, औद्योगिक गतिविधियों में फिर से तेजी आना, विनिर्माण में निरंतर सुधार होना, वाणिज्यिक या वस्तुओं का निर्यात बढ़ना, विदेशी मुद्रा भंडार में और अधिक वृद्धि होना और जीएसटी राजस्व के संग्रह में उल्लेखनीय वृद्धि शामिल है.
Economic Survey 2020: खास बातें.
- ग्लोबल ग्रोथ में भी कमी का अनुमान जताया गया है.
- फूड सब्सिडी पर काबू पाने पर जोर रहेगा.
- जीडीपी ग्रोथ में रिकवरी का असर राजस्व वसूली पर होगा.
- खाड़ी देशों में तनाव से क्रूड कीमतों पर असर हुआ है.
- वित्त वर्ष 2021 में पेट्रोलियम सब्सिडी पर असर होगा.
- US-ईरान तनाव से क्रूड के दाम में बढ़ोतरी की आशंका
- महंगाई दर अप्रैल 2019 में 3.2 फीसदी थी, जो दिसंबर 2019 में गिरकर 2.6 फीसदी आ गई. इससे पता चलता है कि अर्थव्यवस्था में मांग कमजोर हो रही थी.
- वित्त वर्ष 2019-20 में औद्योगिक ग्रोथ 2.5 फीसदी रहने का अनुमान है.
क्या होता है आर्थिक सर्वेक्षण?
सरल शब्दों में समझें तो इकोनॉमिक सर्वे यानी आर्थिक सर्वेक्षण में देश की आर्थिक सेहत का लेखा-जोखा रहता है. सरकार इस दस्तावेज के जरिए देश को यह बताती है कि अर्थव्यवस्था की हालत कैसी है. सरकार की योजनाएं कितनी तेजी से आगे लागू हो रही हैं और उनकी वस्तुस्थिति कैसी है.
आर्थिक सर्वेक्षण वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) तैयार करते हैं. इस बार मुख्य आर्थिक सलाहकर कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम ने यह दस्तावेज तैयार किया है. इसमें सरकार की नीतियों की जानकारी होती है. इसके जरिए सरकार अर्थव्यवस्था की संभावनाओं का विश्लेषण करता है. आर्थिक सर्वेक्षण इस बात का संकेत देता है कि सरकार का बजट में किस हिस्सों पर फोकस रह सकता है.
अक्सर, आर्थिक सर्वेक्षण आम बजट के लिए नीति दिशानिर्देश के रूप में कार्य करता है. हालांकि, इसकी सिफारिशें सरकार लागू करे, यह अनिवार्य नहीं होता है. इकोनॉमिक सर्वे में नीतिगत विचार, आर्थिक मापदंडों पर प्रमुख आंकड़े, गहराई से व्यापक आर्थिक रिसर्च और क्षेत्रवार आर्थिक रूझानों का गहन विश्लेषण शामिल होता है.
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2015 के बाद इकोनॉमिक सर्वे दो हिस्सों में बंटा
साल 2015 के बाद इकोनॉमिक सर्वे को दो हिस्सों मे बांटा गया है. पहले हिस्से में अर्थव्यवस्था की स्थिति की हालत बताई जाती है. जो आम बजट से पहले जारी किया जाता है. दूसरे हिस्से में प्रमुख आंकड़े और डेटा होते हैं, जो जुलाई या अगस्त मे पेश किया जाता है. पेश किए जाने का यह विभाजन तब से लागू हुआ जब फरवरी 2017 में आम बजट को अंतिम सप्ताह के बदले पहले सप्ताह में पेश किया जाने लगा.