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Economic Survey 2020: गांवों के बच्चे किताब, स्टेशनरी पर करते हैं ज्यादा खर्च; ज्यादा फीस गरीबों और वंचितों की उच्च शिक्षा में रोड़ा

Economic Survey 2020: हालांकि शिक्षा व्यवस्था में भागीदारी के मामले में सभी क्षेत्रों में सुधार आया है.

Economic Survey 2020: हालांकि शिक्षा व्यवस्था में भागीदारी के मामले में सभी क्षेत्रों में सुधार आया है.

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Economic Survey 2020: rural children spend more on books, stationary and uniform than urban children

Economic Survey 2020: संसद में शुक्रवार को पेश आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट 2019-20 के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र, शहरी क्षेत्रों के छात्रों के मुकाबले औसतन 10 फीसदी अधिक राशि किताबों, लेखन सामग्री और यूनिफॉर्म पर खर्च करते हैं. हालांकि शिक्षा व्यवस्था में भागीदारी के मामले में सभी क्षेत्रों में सुधार आया है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा संसद में पेश रिपोर्ट में कहा गया कि सतत वित्तीय सहायता प्रणाली की अनुपस्थिति और पाठ्यक्रमों के लिए अधिक शुल्क खास तौर पर उच्च शिक्षा में, गरीबों और वंचित वर्गों को शिक्षा प्रणाली से दूर कर रहा है.

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प्रमुख संकेतक शिक्षा पर घरेलू खपत संबंधी राष्ट्रीय नमूना सर्वे (एनएसएस) रिपोर्ट 2017-18 के हवाले से आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया कि 2017-18 में तीन साल से 35 साल के बीच करीब 13.6 फीसदी ऐसे लोग थे, जिनका शिक्षा प्रणाली में रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ था.

क्या रही वजह

आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक, पंजीकरण नहीं होने की वजह शिक्षा के प्रति उनकी अरुचि और वित्तीय परेशानी थी. रिपोर्ट में कहा गया कि जिन लोगों का स्कूलों में रजिस्ट्रेशन हुआ, उनमें से भी प्राथमिक स्तर पर ही पढ़ाई छोड़ने वालों की संख्या 10 फीसदी रही, जबकि माध्यमिक कक्षाओं में स्कूल छोड़ने वालों की तादाद 17.5 फीसदी रही. उच्चतर माध्यमिक स्तर पर पढ़ाई छोड़ने वालों की संख्या 19.8 फीसदी रही.

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पाठ्यक्रम के बाद सबसे ज्यादा खर्च किताबों, स्टेशनरी और यूनिफॉर्म पर

‘‘सभी को शिक्षा’’ पहल की चुनौतियों को रेखांकित करते हुए आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया कि शिक्षा के सभी मदों पर होने वाले खर्च के मुताबिक पूरे देश में 50.8 फीसदी राशि छात्रों को पाठ्यक्रम शुल्क के रूप में देनी होती है. पाठ्यक्रम शुल्क में ट्यूशन, परीक्षा, विकास शुल्क और अन्य अनिवार्य भुगतान शामिल हैं.

समीक्षा रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘पाठ्यक्रम शुल्क के बाद शिक्षा पर सबसे अधिक खर्च किताबों, लेखन सामग्री और यूनिफॉर्म पर होता है और आश्चर्यजनक रूप से ग्रामीण छात्रों को शहरी छात्रों के मुकाबले इस मद में 10 फीसदी अधिक राशि खर्च करनी पड़ती है.’’

सहायता प्राप्त निजी संस्थानों में खर्च ज्यादा

समीक्षा रिपोर्ट में यह भी रेखांकित किया गया कि पूरे देश में सरकारी संस्थाओं से शिक्षा हासिल करने वाले छात्रों के मुकाबले सहायता प्राप्त निजी संस्थानों के छात्रों को शिक्षा के लिए अधिक खर्च करना पड़ता है. एनएसएस रिपोर्ट का हवाला देते हुए आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया कि 2017-18 में माध्यमिक शिक्षा के लिए सरकारी संस्थाओं में पढ़ने वाले छात्रों को औसतन 4,078 रुपये खर्च करने पड़े, जबकि निजी सहायता प्राप्त संस्थानों में पढ़ने वालों ने औसतन 12,487 रुपये खर्च किए.

इसी प्रकार स्रातक स्तर पर सरकारी संस्थान के एक छात्र ने औसतन 10,501 रुपये खर्च किए, जबकि निजी सहायता प्राप्त संस्थान के छात्र ने 16,769 रुपये खर्च किए. समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया कि सरकारी स्कूलों एवं संस्थानों में प्रतिस्पर्धा के अभाव में शिक्षा की गुणवत्ता कम है और इसलिए अधिक से अधिक छात्र निजी संस्थानों में प्रवेश ले रहे हैं.

रिपोर्ट में सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण एवं वहनीय शिक्षा मुहैया कराने के लिए 2018-19 में शुरू समग्र शिक्षा जैसे पहल का भी उल्लेख किया गया, जिसमें केंद्र प्रायोजित तीन योजनाओं सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान, शिक्षक शिक्षा को समाहित किया गया है.

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