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Economic Survey 2021: कोविड-19 के चलते सरकार बदलेगी हेल्‍थकेयर पॉलिसी! स्‍वास्‍थ्‍य पर बड़े खर्च का हो सकता है एलान

Healthcare Policy: कोरोना वायरस महामारी ने आम लोगों के साथ पॉलिसी मेकर्स की भी सोच बदल दी है.

Healthcare Policy: कोरोना वायरस महामारी ने आम लोगों के साथ पॉलिसी मेकर्स की भी सोच बदल दी है.

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Sushil Tripathi
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economic survey 2021 on healthcare

Healthcare Policy: कोरोना वायरस महामारी ने आम लोगों के साथ पॉलिसी मेकर्स की भी सोच बदल दी है.

Healthcare Policy: कोरोना वायरस महामारी ने आम लोगों के साथ पॉलिसी मेकर्स की भी सोच बदल दी है. इसी पवजह से तो इसका असर इकोनॉमिक सर्वे 2021 पर भी देखने को मिल रहा है. इकोनॉमिक सर्वे में इस बार हेल्‍थकेयर पर फोकस देखने को मिल रहा है. मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 पर कहा है कि इस साल का आर्थिक सर्वे देश के कोरोना योद्धाओं को समर्पित है. सर्वेक्षण के कवर पर भी कोरोना वायरस महामारी का प्रभाव देखने को मिल रहा है. फिलहाल इकोनॉमिक सर्वे की बात करें तो ऐसा लगता है कि आने वाले दिनों में सरकार अपनी हेल्‍थकेयर पॉलिसी में बड़ा बदलाव ला सकती है. वहीं स्‍वस्‍थ्‍य सेवाओं पर सरकसर का खर्च पहले से कई गुना ज्‍यादा रह सकता है.

हेल्‍थ केयर पर पब्लिक स्‍पेंडिंग बढाने की जरूरत

अगर हेल्‍थकेयर बजट की बात करें तो लंबे समय से इसे बढाए जाने की मांग हो रही है. इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार हेल्‍थकेयर बजट के मामले में भारत की 189 देशों में 179वीं रैंकिंग है. अभी अमीर राज्‍य भी अपने GSDP का बहुत कम हिस्‍सा हेल्‍थकेसर पर खर्च कर रहे हैं. सर्वे में कहा गया है कि ओवर आल हेल्‍थ केयर पर पब्लिक स्‍पेंडिंग जीडीपी का 1 से बढाकर 2.5-3 फीसदी करने से आउट आफ पॉकेट एक्‍सपेंडिचर को 65 फीसदी से घटाकर 30 फीसदी तक लाया जा सकता है.

गरीब देशों की तुलना में भी भारत अंडरपरफॉर्मर

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इकोनॉमिक सर्वे में कहा गया है कि हेल्‍थकेयर के मामले में भारत लो इनकम या लोअर मिडिल इनकम वाले देशों की तुलना में भी अंडरपरुॉर्मर रहा है. Global Burden of Disease Study 2016 के अनुसार क्‍वालिटी और उपलब्‍धता के मामले में देखें तो भारत की 180 देशों में 145वीं रैंकिंग है. भारत को इन मोर्चे पर जल्‍द से जल्‍द सुधार की जरूरत है.

हॉस्पिटलाइजेशन रेट लो लेवल पर

सर्वे में कहा गया है कि भारत में स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं की पहुंच भी सभी तक नहीं हो पाती, जिस पर विचार करने की जरूरत है. हॉस्पिटलाइजेशन रेट अभी 3 से 4 फीसदी है जो दुनियाभर के तमाम देशों से बहुत कम है. मिडिल इनकम वाले देशों में एवरेज हॉस्पिटलाइजेशन रेट 8-9 फीसदी है, जबकि OECD देशों में यह 13 से 17 फीसदी है. यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहां लोगों की जेब से बहुत ज्‍यादा खर्च होता है.

स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा दुरुस्‍त हो

सर्वेक्षण में कहा गया है कि स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के रेगुलेशन और सुपरविजन के लिए एक सेक्‍टोरल रेगुलेटर की जरूरत है. सर्वेक्षण में कहा गया है कि भविष्य में कोरोना वायरस महामारी को देखते हुए स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को दुरुस्‍त करने की जरूरत है. दूसरे, इंटरनेट कनेक्टिविटी और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में निवेश करके टेलीमेडिसिन को दूरदराज के इलाकों तक पहुंचाने की जरूरत है. वहीं, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) पर जोर जारी रहना चाहिए क्योंकि इसने असमानता को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. वहीं प्री नैटल और पोस्‍ट नैटल देखभाल के लिए गरीबों को मदद की है.

हेल्‍थकेयर प्रोवाइडर्स की क्‍वालिटी का आंकलन हो

सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है कि देश में स्वास्थ्य सेवा का अधिकांश हिस्सा शहरी भारत में प्राइवेट सेक्‍टर के माध्यम से प्रोवाइड किया जा रहा है. ऐसे में पॉलिसी मेकर्स को स्वास्थ्य सेवा में सूचना की विषमताओं को कम करना महत्वपूर्ण है. सर्वे में डॉक्टरों और अस्पतालों दोनों हेल्‍थकेयर प्रोवाइडर्स की क्‍वालिटी का आकलन करने के लिए एजेंसियां ​​बनाने का सुझाव दिया है.

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