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Economic Survey 2020-21: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सभी विकासशील देशों को एक साथ आने का सुझाव दिया है ताकि वैश्विक रेटिंग एजेंसियों के पक्षपातपूर्ण व्यवहार से निपटा जा सके. (Representative Image)
Economic Survey 2020-21: केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज 29 जनवरी को संसद में आर्थिक समीक्षा 2020-21 पेश करते कहा कि सोवरेन क्रेडिट रेटिंग को अधिक पारदर्शी होना चाहिए और इसमें अर्थव्यवस्था के मूल तत्वों का समावेश होना चाहिए. केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि सोवरेन क्रेडिट रेटिंग के इतिहास में ऐसा अब तक नहीं हुआ है कि दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को निवेश के लिए सबसे निम्न श्रेणी (बीबीबी/बीएए3) दी गई हो. इस मामले में चीन और भारत इसके अपवाद हैं यानी इन दोनों बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों को वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी निम्न श्रेणी की रेटिंग दी है. कम रेटिंग से एफपीआई फ्लो पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि सोवरेन क्रेडिट रेटिंग्स मेथडोलॉजी में सुधार होना चाहिए ताकि वह अर्थव्यवस्था की सही तस्वीर पेश कर सके. उन्होंने सभी विकासशील देशों को एक साथ आने का सुझाव दिया है ताकि वैश्विक रेटिंग एजेंसियों के पक्षपातपूर्ण व्यवहार से निपटा जा सके. आर्थिक समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि भारत की वित्तीय नीति को पक्षपातपूर्ण रेटिंग के आधार पर सीमित नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इसे विकास पर केंद्रित होना चाहिए.
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रेटिंग नहीं पेश कर रही इकोनॉमी की सही तस्वीर
भारत की सोवरेन क्रेडिट रेटिंग अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति को नहीं दर्शाती है. विभिन्न कारकों की सोवरेन क्रेडिट रेटिंग के प्रभाव की तुलना में देश को कम रेटिंग दी गई है. इन कारकों में शामिल हैं-जीडीपी विकास दर, महंगाई दर, सरकारी कर्ज (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में), चालू खाता धनराशि (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में), कम अवधि के विदेशी कर्ज (विदेशी मुद्रा भंडार के प्रतिशित के रूप में), विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्ता अनुपात, राजनीतिक स्थिरता, कानून का शासन, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण, निवेशकों की सुरक्षा, कारोबार में सुगमता और सोवरेन जवाबदेही को पूरा करने में विफलता. यह स्थिति न सिर्फ वर्तमान के लिए बल्कि पिछले दो दशकों के लिए भी सत्य है.
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विकासशील देशों से साथ आने की अपील
वित्त मंत्री ने कहा कि रेटिंग देश की अर्थव्यवस्था के वर्तमान स्थिति को सही रूप में नहीं दिखाता है. सोवरेन क्रेडिट रेटिंग में पिछले कई बार किए गए बदलावों से अर्थव्यवस्था के संकेतकों, जैसे-सेंसेक्स रिटर्न, विदेशी मुद्रा विनिमय दर और सरकारी प्रतिभूतियों से होने वाली आय, पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ा. समीक्षा में कहा गया है कि सोवरेन क्रेडिट रेटिंग इक्विटी और विकासशील देशों में कर्ज एफपीआई प्रवाह को प्रभावित कर सकते हैं. इससे संकट और गहरा हो सकता है. ऐसे में सभी विकासशील देशों से आह्वान किया गया है कि वे सोवरेन क्रेडिट रेटिंग पद्धति से संबंधित इस पक्षपात को समाप्त करने के लिए एक साथ आएं और इसे अधिक पारदर्शी बनाएं. भारत ने जी-20 में क्रेडिट रेटिंग के मामले को उठाया है.
कर्ज चुकाने की क्षमता के आधार पर रेटिंग की वकालत
क्रेडिट रेटिंग भुगतान न कर पाने की संभावना को मापता है और इसलिए इसमें कर्ज लेने वाले द्वारा अपनी जवाबदेही को पूरा करने की क्षमता और इच्छा दिखाई होती है. केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि सोवरेन कर्ज भुगतान में भारत सफल रहा है. भारत के कर्ज भुगतान की क्षमता अल्प विदेशी कर्ज और विशाल विदेशी मुद्रा भंडार के आधार पर भी निर्धारित किया जा सकता है, जिसके माध्यम से निजी क्षेत्र के कम अवधि के कर्ज और भारत के संपूर्ण सोवरेन और गैर-सोवरेन कर्ज का भुगतान किया जा सकता है. सितंबर 2020 तक जीडीपी के प्रतिशत के रूप में भारत का कुल सोवरेन विदेशी कर्ज मात्र चार प्रतिशत है.
भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार
वर्तमान में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 58424 करोड़ डॉलर (42,56,758 करोड़ रुपये) है. यह आंकड़ा (15 जनवरी 2021 तक का है. इसकी तुलना में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार जो भारत के कुल विदेशी कर्ज (निजी क्षेत्र के कर्ज समेत) 55620 करोड़ डॉलर (4052459.30 करोड़ रुपये) (सितंबर 2020) है. भारत का विशाल विदेशी मुद्रा भंडार देश की भुगतान क्षमता को दर्शाता है. आर्थिक सर्वे के मुताबिक भारत उस कंपनी की तरह है जिसका कर्ज ऋणात्मक है और जिसके भुगतान न कर पाने की क्षमता शून्य है.
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