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'वेल्थ क्रिएशन' थीम के अलावा इस बार आर्थिक सर्वेक्षण में कुछ ऐसी बातों का जिक्र हुआ है, जो अलग हटकर हैं.
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Economics Survey 2020: आर्थिक सर्वेक्षण 2020 साफतौर पर यह बता रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को बूस्ट की जरूरत है. वित्त वर्ष 2020-21 में जीडीपी ग्रोथ रेट 6-6.5 फीसदी के बीच ही रहेगी. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी का ड्रीम कैसे पूरा होगा? इस पर मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रमण्यम ने 'वेल्थ क्रिएशन' का मंत्र दिया. सुब्रमण्यम ने मोदी सरकार के इसी महत्वाकांक्षी मकसद को देखते हुए इस बार आर्थिक सर्वेक्षण की थीम 'वेल्थ क्रिएशन' रखा. उनका साफ तौर पर करना है कि यही एक रास्ता है जिसके जरिए 5 लाख करोड़ डॉलर की इकोनॉमी का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है.
मुख्य आर्थिक सलाहकार ने निवेश बढ़ाने से लेकर जॉब के नए मौके बनाने और जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए वेल्थ क्रिएशन यानी संपदा सृजन की बात कही है. उनका कहना है कि इसके लिए सरकार को प्रो बिजनेस पॉलिसी बनानी होगी और प्रो क्रोनी पॉलिसी से बचना होगा. 'वेल्थ क्रिएशन' थीम के अलावा इस बार आर्थिक सर्वेक्षण में कुछ ऐसी बातों का जिक्र हुआ है, जो अलग हटकर हैं.
थालीनॉमिक्स
इस बार आर्थिक समीक्षा में कहा गया कि अब औद्योगिक श्रमिकों की दैनिक आमदनी की तुलना में भोजन की थाली और सस्ती हो गई है. 2006-2007 की तुलना में 2019-20 में शाहाकारी भोजन की थाली 29 फीसदी और मांसाहारी भोजन की थाली 18 फीसदी सस्ती हुई हैं.
भारत में भोजन की थाली के अर्थशास्त्र के आधार पर समीक्षा में यह निष्कर्ष निकाला गया है. यह अर्थशास्त्र भारत में एक सामान्य व्यक्ति द्वारा एक थाली के लिए किए जाने वाले भुगतान को मापने की कोशिश है. Economic Survey 2020: थालीनॉमिक्स- आम लोगों के लिए भोजन हुआ सस्ता
समीक्षा के अनुसार संपूर्ण भारत के साथ-साथ इसके चारों क्षेत्रों- उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में यह पाया गया कि शाकाहारी भोजन की थाली की कीमतों में 2015-16 से काफी कमी आई है. हालांकि, 2019 में इनकी कीमतों में तेजी रही. ऐसा सब्जियों और दालों की कीमतों में पिछले साल की तेजी के रूझान के मुकाबले गिरावट का रूख रहने की वजह से हुआ है.
इसके परिणामस्वरूप 5 सदस्यों वाले एक औसत परिवार को जिसमें प्रति व्यक्ति रोजना न्यूनतम दो पौष्टिक थालियों से भोजन करने के लिए प्रतिवर्ष करीब 11,000 रुपये जबकि मांसाहारी भोजन वाली थाली के लिए प्रत्येक परिवार को प्रतिवर्ष करीब 12,000 रुपये का लाभ हुआ है.
लाइसेंस: पिस्टल बनाम ढाबा
ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार का दावा करने वाली सरकार के दावे पर सर्वे में एक बहुत ही रोचक बात कही गई है. सर्वे के अनुसार, राजधानी दिल्ली में ढाबा या रेस्तरां खोलने वालों से पुलिस एनओसी के लिए 45 तरह के दस्तावेज तक की मांग करती है. इसके विपरीत बंदूक या पिस्तौल खरीदने के लाइसेंस के लिए 19 दस्तावेज ही मांगे जाते हैं. यानी, राजधानी में पिस्टल खरीदना ढाबा खोलने से ज्यादा आसान है.
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इसका अर्थ साफ है कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस अभी और सुधार की जरूरत है. बता दें, चीन और सिंगापुर में एक रेस्तरां खोलने के लिए मात्र चार तरह के लाइसेंस की जरूरत होती है.
स्टूडेंट खर्च
आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र, शहरी क्षेत्रों के छात्रों के मुकाबले औसतन 10 फीसदी अधिक राशि किताबों, लेखन सामग्री और यूनिफॉर्म पर खर्च करते हैं. हालांकि शिक्षा व्यवस्था में भागीदारी के मामले में सभी क्षेत्रों में सुधार आया है. रिपोर्ट में कहा गया कि सतत वित्तीय सहायता प्रणाली की अनुपस्थिति और पाठ्यक्रमों के लिए अधिक शुल्क खास तौर पर उच्च शिक्षा में, गरीबों और वंचित वर्गों को शिक्षा प्रणाली से दूर कर रहा है.
‘‘सभी को शिक्षा’’ पहल की चुनौतियों को रेखांकित करते हुए समीक्षा में कहा गया कि शिक्षा के सभी मदों पर होने वाले खर्च के मुताबिक पूरे देश में 50.8 फीसदी राशि छात्रों को पाठ्यक्रम शुल्क के रूप में देनी होती है. पाठ्यक्रम शुल्क में ट्यूशन, परीक्षा, विकास शुल्क और अन्य अनिवार्य भुगतान शामिल हैं. Economic Survey 2020: गांवों के बच्चे किताब, स्टेशनरी पर करते हैं ज्यादा खर्च
पाठ्यक्रम शुल्क के बाद शिक्षा पर सबसे अधिक खर्च किताबों, लेखन सामग्री और यूनिफॉर्म पर होता है और आश्चर्यजनक रूप से ग्रामीण छात्रों को शहरी छात्रों के मुकाबले इस मद में 10 फीसदी अधिक राशि खर्च करनी पड़ती है.’’
एनएसएस रिपोर्ट का हवाला देते हुए आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया कि 2017-18 में माध्यमिक शिक्षा के लिए सरकारी संस्थाओं में पढ़ने वाले छात्रों को औसतन 4,078 रुपये खर्च करने पड़े, जबकि निजी सहायता प्राप्त संस्थानों में पढ़ने वालों ने औसतन 12,487 रुपये खर्च किए. इसी प्रकार स्रातक स्तर पर सरकारी संस्थान के एक छात्र ने औसतन 10,501 रुपये खर्च किए, जबकि निजी सहायता प्राप्त संस्थान के छात्र ने 16,769 रुपये खर्च किए.
जॉब का चाइनीज मंत्र
सर्वे में कहा गया है कि 2025 तक देश में अच्छे वेतन वाली 4 करोड़ नौकरियां होंगी और 2030 तक इनकी संख्या 8 करोड़ हो जाएगी. इसके साथ कहा गया है कि भारत के पास श्रम आधारित निर्यात को बढ़ावा देने के लिए चीन के समान काफी अवसर हैं. दुनिया के लिए भारत में एसेम्बल इन इंडिया और मेक इन इंडिया योजना को एक साथ मिलाने से निर्यात बाजार में भारत की हिस्सेदारी 2025 तक 3.5 फीसदी और 2030 तक 6 फीसदी हो जाएगी. Economic Survey 2020: 2025 तक भारत में मिलेंगी 4 करोड़ नौकरियां, चीनी फॉर्मूले से बढ़ेंगे मौके
समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि भारत को चीन जैसी रणनीति का पालन करना चाहिए. श्रम आधारित क्षेत्रों विशेषकर नेटवर्क उत्पादों के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर विशेषज्ञता हासिल करना. नेटवर्क उत्पादों के बड़े स्तर पर एसेम्लिंग की गतिविधियों पर खासतौर से ध्यान केंद्रित करना.
'बैंड बाजा बारात' फॉर्मूला
मुख्य आर्थिक सलाहकार वीके सुब्रमण्यम ने सर्वे पर अपने प्रजेंटेशन में एक और रोचक बात कही है और यह बात कारोबार शुरू करने के संदर्भ में था. दरअसल, सुब्रमण्यम ने बॉलीवुड की फिल्म 'बैंड बाजा बारात' का उल्लेख किया और कहा कि इससे हम बात समझ सकते हैं कि नए-नए आइडिया पर कैसे कारोबार शुरू किया जा सकता है.
मुख्य आर्थिक सलाहकार वीके सुब्रमण्यम के कहने का साफतौर पर यह मतलब है कि देश में कारोबार करने के लिए सिर्फ बड़े शहरों का रुख करने की जरूरत नहीं है. यदि आपके पास लीक से हटकर कुछ आइडिया है तो आप देश के किसी भी शहर से अपना बिजनेस शुरू कर सकते हैं.