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Union Budget 2021: कोरोना के चलते खास होगा हेल्थ बजट! मेडिकल डिवाइस से फार्मा इंडस्ट्री तक की ये है विशलिस्ट

Union Budget 2021 Expectations for Health Care: कोरोना वायरस महामारी ने हेल्थ एक्सपर्ट की सोच बदल दी है.

Union Budget 2021 Expectations for Health Care: कोरोना वायरस महामारी ने हेल्थ एक्सपर्ट की सोच बदल दी है.

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Sushil Tripathi
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The Centre needs to bring similar forward-thinking to other areas of health too, particularly nutrition, where the allocation has actually been slashed by Rs 1,000 crore

The Centre needs to bring similar forward-thinking to other areas of health too, particularly nutrition, where the allocation has actually been slashed by Rs 1,000 crore

Union Budget 2021-22 Expectations for Health Care: बजट 2021 की तैयारियां जोर शोर से चल रही हैं, जिसे 1 फरवरी को पेश किया जाएगा. आम आदमी हों या अलग अलग सेक्टर, सभी की उम्मीदें बजट पर लगी हुई हैं. हेल्थ केयर सेक्टर को भी बजट से काफी उम्मीदें हैं. कोरोना वायरस महामारी ने हेल्थ एक्सपर्ट की सोच बदल दी है. उन्होंने पूरे हेल्थ बजट को फिर से रीस्ट्रक्चर किए जाने की मांग की है. वहीं मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री ने सस्ते इंपोर्ट पर रोक लगाकर मेक इन इंडिया के जरिए घरेलू इंडस्ट्री को बूस्ट देने की मांग की है. सस्ता और बेहतर इलाज से लेकर हेल्थ केयर में इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने की भी मांग की जा रही है. इसके पहले जानते हैं कि बजट 2020 में क्या एलान हुए थे.

बजट 2020 के कुछ बड़े एलान

  • वित्त मंत्री ने स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 69,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था.
  • जिसमें 6400 करोड़ रुपये आयुष्मान भारत के लिए भी शामिल थे.
  • PPP मोड से देश में आधुनिक सुविधाओं वाले अस्पताल बनाए जाने का एलान
  • 2025 तक देश से टीबी खत्म करने का लक्ष्य
  • हर जिले में 2024 तक जन औषधि केंद्र खोलने का लक्ष्य. इनमें 2000 दवाएं और 3000 सर्जिकल्स उपलब्ध रहेंगे.
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ये भी पढ़ें: अबतक 24700 अस्पताल, 12.8 करोड़ ई-कार्ड; बजट के बाद कितना बढ़ा आयुष्मान स्कीम का दायरा

कभी भी आ सकती है कोरोना वरायरस जैसी महामारी

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व प्रेसिडेंट डॉ केके अग्रवाल का कहना है कि इस बार कोरोनावायरस महामारी को देखते हुए सरकार से हेल्थ बजट पर उम्मीदें बहुत ज्यादा हैं. उनका कहना है कि कोरोना वायरस जैसी महामारी दुनिया या देश में कभी भी आ सकती है. पहले भी कई तरह की महामारी दुनिया को परेशान कर चुकी हैं. महामारी का असर सिर्फ लोगों तक सीमित नहीं है. सबने देखा है कि किस तरह से इस महामारी की वजह से अलग अलग देशों की अर्थव्यवस्थाएं निचले स्तरों पर चली गईं.

उनका कहना है कि ऐसी महामारी को देखते हुए सरकार को अपने हेल्थ बजट को पूरी तरह से रीस्ट्रक्चर किए जाने की जरूरत है. अलग से फंड के अलावा ऐसी महामारी का सामना करने के लिए अस्पताल, लैब, दवाएं या अन्य सुविधाओं का इंतजाम जरूरी है. उम्मीद है कि इस बजट में सरकार इस बात का खासतौर से ध्यान रखेगी.

इसके अलावा हेल्थ एक्सपर्ट देश में डॉक्टरों की कमी दूर करने के उपाय करने की बात कह रहे हैं. उनका कहना है कि मेडिकल की सीटें बढ़ाने के उपाय होने चाहिए. डायग्नोस्टिक की सुविधाएं और बेहतर करने के साथ ही हेल्थ के क्षेत्र में इंफ्रा का विस्तार की बात कही जा रही है.

मेक इन इंडिया को मिले बढ़ावा

एसोसिएशन ऑफ मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के फोरम को-ऑर्डिनेटर राजीव नाथ का कहना है कि मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री को लेकर सरकार की नीतियां कमजोर रही हैं. इसका खामियाजा देश में मौजूद मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री को भुगतना पड़ रहा है. एक ओर मेक इन इंडिया की बात होती है, लेकिन दूसरी ओर इंपोर्ट पर सरकार की पॉलिसी की वजह से घरेलू इंडस्ट्री को लगातार नुकसान उठाना पड़ रहा है. उनका कहना है कि घरेलू इंडस्ट्री द्वारा तैयार किए गए मेडिकल इक्यूपमेंट न सिर्फ सस्ते हैं, बल्कि उनका क्वालिटी भी बेहतर है. घरेलू उपकरण किसी भी विदेशी प्रोडक्ट को टक्कर दे सकते हैं. लेकिन इंपोर्ट सस्ता होने से देश की मेडिकल डिवाइस बाजार पर चीन और ताइवान की कंपनियों का कब्जा है.

अभी सिर्फ 0 से 7.5% है ड्यूटी

उनका कहना है कि इंडस्ट्री की डिमांड है कि विदेश से आने वाले मेडिकल इक्यूपमेंट पर 0 से 7.5 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी है. 149 में से 20 जरूरी इक्यूपमेंट पर तो शून्य ड्यूटी है. इसमें विस्कोमीटर, रीफ्रैक्टोमीटर, फोटोमीटर और न्यूक्लियर मैगनेटिक रेसोनेंस इंस्ट्रूमेंट आदि शामिल हैं. कुछ पर 2.5 फीसदी, कुछ पर 5 फीसदी तो कुछ पर 7.5 फीसदी है. ​हमारी डिमांड है कि विदेशी इक्यूपमेंट पर 7.5 से 15 फीसदी ड्यूटी की जाए. इससे विदेशी प्रोडक्ट के दाम बढ़ेंगे तो घरेलू इंडस्ट्री को बूट मिलेगा. मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री की सेकंड हैंड मेडिकल डिवाइस का इंपोर्ट रोकने की भी मांग है.

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मरीजों को मिले सस्ता इलाज

एक जानकार ने कहा कि कि मरीजों को सस्ती दवाओं का लाभ मिल सके, इसके लिए सरकार को दवाओं पर जीएसटी स्लैब के बारे में विचार करना चाहिए. कुछ पर इसे चखत्म करे तो कुछ को लोअर स्लैब में लाना चाहिए.

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