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AGR बकाया: क्या भुगतान की समयसीमा गैर-दूरसंचार PSU पर भी होगी लागू, टेलिकॉम विभाग कर रहा है विचार

सवाल है कि क्या 23 जनवरी की समयसीमा कानूनी रूप से सार्वजनिक क्षेत्र की उन कंपनियों पर भी लागू होगी.

सवाल है कि क्या 23 जनवरी की समयसीमा कानूनी रूप से सार्वजनिक क्षेत्र की उन कंपनियों पर भी लागू होगी.

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PTI
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AGR payment will deadline applies on non telecom PSUs telecom departement is considering

सवाल है कि क्या 23 जनवरी की समयसीमा कानूनी रूप से सार्वजनिक क्षेत्र की उन कंपनियों पर भी लागू होगी.

AGR payment will deadline applies on non telecom PSUs telecom departement is considering सवाल है कि क्या 23 जनवरी की समयसीमा कानूनी रूप से सार्वजनिक क्षेत्र की उन कंपनियों पर भी लागू होगी.

दूरसंचार विभाग इस मुद्दे पर गौर कर रहा है कि क्या दूरसंचार कंपनियों पर सांविधिक बकाये के भुगतान के लिए तय 23 जनवरी की समयसीमा गैर-दूरसंचार सार्वजनिक उपक्रमों पर भी लागू होती है. गौरतलब है कि समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) को लेकर उच्चतम न्यायालय में चले विवाद में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (पीएसयू) मूल पक्ष नहीं थे. दूरसंचार विभाग के सूत्रों ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के अक्टूबर में दिये गये आदेश के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से भी सांविधिक बकाया चुकाने को कहा गया है. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या 23 जनवरी की समयसीमा कानूनी रूप से सार्वजनिक क्षेत्र की उन कंपनियों पर भी लागू होती हो जो सीधे इस विवाद में पक्ष नहीं थे.

23 जनवरी तक करना है भुगतान

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हालांकि, दूरसंचार विभाग में यही राय बन रही है कि न्यायालय द्वारा तय समयसीमा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों पर लागू नहीं होगी, लेकिन स्पष्टता के लिए इसकी कानूनी समीक्षा की जा रही है. सूत्रों के मुताबिक, न्यायालय ने एजीआर पर जो व्यवस्था दी है उसके अनुरूप सार्वजनिक उपक्रमों को भी इसे अदा करना होगा, लेकिन अगर वे 23 जनवरी तक भुगतान नहीं करते हैं, तो यह अदालत की अवमानना नहीं होगा, क्योंकि वे इस मामले में पक्ष नहीं हैं.

एक अन्य अधिकारी ने कहा कि सार्वजनिक उपक्रमों के लिए समयसीमा की कानूनी समीक्षा की जा रही है. वहीं दूसरी ओर भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया जैसी दूरसंचार कंपनियों के लिए शीर्ष अदालत द्वारा तय भुगतान की समयसीमा का अनुपालन करना कानूनी रूप से जरूरी है. पिछले साल अक्टूबर में आए उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद दूरसंचार विभाग ने जो अनुमान लगाया है कि उसके अनुसार 15 दूरसंचार कंपनियों पर कुल देनदारी 1.47 लाख करोड़ रुपये की बनती है. इसमें जुर्माना और ब्याज भी शामिल है.

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सुप्रीम कोर्ट न क्या फैसला दिया था ?

दूरसंचार क्षेत्र की कंपनियों पर यह अतिरिक्त देनदारी उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद आई है. उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में सरकार की उस दलील को सही ठहराया है कि दूरसंचार कंपनियों की गैर- दूरसंचार कारोबार से होने वाली आय भी उनके सालाना समायाजित सकल राजस्व का हिस्सा है. दूरसंचार कंपनियों को अपनी राजस्व आय से लाइसेंस और स्पेक्ट्रम शुल्क का सरकार को भुगतान करना होता है.

इस फैसले के बाद दूरसंचार कंपनियों के अलावा गैर- दूरसंचार क्षेत्र की कंपनियों पर भी 2.4 लाख करोड़ रुपये की देनदारी बनती है. इनमें गैर- दूरसंचार क्षेत्र की कंपनियां गेल इंडिया लिमिटेड, विद्युत पारेषण क्षेत्र की पावर ग्रिड आदि भी शामिल हैं. इन कंपनियों ने ऑप्टिक फाइबर केबल पर ब्रॉडबैंड चलाने के लिये लाईसेंस लिया हुआ है. गेल की देशभर में फैली पाइपलाइन के साथ और पावर ग्रिड की पारेषण लाइनों के साथ यह केबल चलती है.

उच्चतम न्यायालय का फैसला आने के बाद दूरसंचार विभाग ने गेल इंडिया से 1.72 लाख करोड़ रुपये का सांविधिक बकाया मांगा है. इसी तरह पावरग्रिड पर 21 हजार करोड़ रुपये और ऑयल इंडिया पर 40 हजार करोड़ रुपये की देनदारी बनती है.

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