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कोरोना संभावित एक और स्वदेशी वैक्सीन का शुरू होगा मानव ट्रायल, जायडस को मिली मंजूरी

जायडस की विकसित वैक्सीन जायकोव-डी का प्री-क्लीनिकल ट्रायल पूरा हो गया है. चूहे, सूअर और खरगोश जैसे पशुओं पर ट्रायल उत्साहजनक रहा.

जायडस की विकसित वैक्सीन जायकोव-डी का प्री-क्लीनिकल ट्रायल पूरा हो गया है. चूहे, सूअर और खरगोश जैसे पशुओं पर ट्रायल उत्साहजनक रहा.

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PTI
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coronavirus vaccine india

Coronavirus vaccine India news today.

another hope for coronavirus vaccine Zydus says potential COVID-19 vaccine gets DGCI nod for human trials कंपनी की योजना देश के विभिन्न शहरों में एक हजार से अधिक लोगों के ऊपर इस टीके का परीक्षण करने की है.

कैडिला हेल्थकेयर समूह (Cadila Healthcare) की कंपनी जायडस (Zydus) को कोविड-19 के स्वदेशी रूप से विकसित संभावित टीके का मानव परीक्षण करने की घरेलू प्राधिकरणों से मंजूरी मिल गई है. दवा बनाने वाली कंपनी ने शुक्रवार को कहा कि उसके द्वारा विकसित वैक्सीन जायकोव-डी का प्री-क्लीनिकल परीक्षण पूरा हो गया है. इसके बाद उसे केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) के ‘भारत के औषधि महानियंत्रक (DGCI )’ से इसके मानव परीक्षण की मंजूरी मिल गई है.

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कंपनी ने कहा कि वह परीक्षण के लिए संभावित वैक्सीन की पर्याप्त मात्रा का उत्पादन पहले ही कर चुकी है. कंपनी जुलाई में ही नव परीक्षण शुरू करेगी. कंपनी की योजना देश के विभिन्न शहरों में एक हजार से अधिक लोगों के ऊपर इस टीके का परीक्षण करने की है.

कोरोना वैक्सीन की प्रबल दावेदार

कैडिला हेल्थकेयर ने शेयर बाजार को बताया कि ‘जायकोव-डी’ (ZyCoV-D) को अहमदाबाद स्थित उसके टीका प्रौद्योगिकी केंद्र में विकसित किया गया है. चूहे, सूअर और खरगोश जैसे पशुओं पर किए गए ट्रायल में इस टीके को प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिहाज से काफी मजबूत पाया गया है. इस टीके ने जिन प्रतिरक्षक पदार्थों (एंटीबॉडीज) का सृजन किया, वे ‘वाइल्ड टाइप वायरस’ को पूरी तरह से नियंत्रित कर पा रहे थे। यह इसे कोरोना वायरस के लिये संभावित वैक्सीन का प्रबल दावेदार बनाता है.

क्या है वाइल्ड टाइप वायरस?

वायरस के उन स्वरूपों को ‘वाइल्ड टाइप वायरस’ कहा जाता है, जिनके डीएनए में म्यूटेशन के बाद बदलाव नहीं आया हो. कंपनी ने कहा कि इस टीके का ‘मांसपेशियों’ तथा ’नसों’ दोनों तरीकों से बार-बार प्रयोग करने के बाद भी सुरक्षा के लिहाज से कोई समस्या उत्पन्न नहीं हुई. खरगोशों पर किए गए परीक्षण में इस टीके की उस मात्रा के तीन गुना को सुरक्षित पाया गया, जितनी मात्रा का इस्तेमाल मानव पर करने की योजना है.

उल्लेखनीय है कि एक अन्य कंपनी भारत बायोटेक को हाल ही में उसके द्वारा विकसित संभावित टीके ‘कोवैक्सीन’ के क्लीनिकल परीक्षण की मंजूरी मिली थी. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने भारत बायोटेक को पत्र लिखकर टीके का परीक्षण तेज करने के लिये कहा है.