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Zerodha Founder on STT: बजट में घटाया जाए STT, नितिन कामथ ने कहा, ट्रांजैक्शन की ऊंची लागत से ट्रेडर्स को हो रहा भारी नुकसान

Zerodha Founder Nithin Kamath on STT: जिरोधा के फाउंडर के मुताबिक अगर किसी रिटेल निवेशक के खाते में 5 लाख रुपये हैं और वो कुछ लीवरेज के साथ डेरिवेटिव ट्रेडिंग करता है तो उस पर STT का बोझ ही इतना ज्यादा हो जाता है कि वो आसानी से लाभ नहीं कमा सकता.

Zerodha Founder Nithin Kamath on STT: जिरोधा के फाउंडर के मुताबिक अगर किसी रिटेल निवेशक के खाते में 5 लाख रुपये हैं और वो कुछ लीवरेज के साथ डेरिवेटिव ट्रेडिंग करता है तो उस पर STT का बोझ ही इतना ज्यादा हो जाता है कि वो आसानी से लाभ नहीं कमा सकता.

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Zerodha Founder on STT: बजट में घटाया जाए STT, नितिन कामथ ने कहा,  ट्रांजैक्शन की ऊंची लागत से ट्रेडर्स को हो रहा भारी नुकसान

जिरोधा के फाउंडर नितिन कामथ ने बजट 2022 में सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स घटाए जाने के पक्ष में मजबूत दलीलें दी हैं,

Budget 2022 Expectations, Zerodha Founder Nithin Kamath on STT: केंद्र सरकार से उम्मीद है कि वो इस बार अपने नए बजट में सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स (STT) घटाए जाने की मांग ज़रूर पूरी करेगी. ये कहना है जिरोधा (Zerodha) के को-फाउंडर नितिन कामथ (Nithin Kamath) का. उन्होंने इस मांग के समर्थन में बेहद जोरदार तरीके से अपनी दलीलें पेश करते हुए कहा है कि देश के शेयर बाजारों में कारोबार करने वाले ट्रेडर्स को ट्रांजैक्शन कॉस्ट और इंपैक्ट कॉस्ट के तौर पर भारी रकम गवांनी पड़ती है. उनका दावा है कि ट्रेडर्स को इन मदों में जितना नुकसान होता है, उतना तो बाजार के कारोबार में भी नहीं होता.

डेढ़ दशक से कर रहे STT घटने की उम्मीद : कामथ

नितिन कामथ ने इस बारे में अपनी राय ट्विटर के जरिए सामने रखी है. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा है, " पिछले 15 वर्षों से भी ज्यादा वक्त से मैं हर बजट के दिन यह उम्मीद लगाता हूं कि STT को कम किया जाएगा. महज जिरोधा के कस्टमर्स को ही STT, GST और स्टैंप ड्यूटी के तौर पर हर साल करीब 2500 करोड़ रुपये चुकाने पड़ते हैं. कुल मिलाकर, ट्रेडर्स को बाजार से ज्यादा आर्थिक नुकसान तो ट्रांजैक्शन कॉस्ट्स (transaction costs) और इंपैक्ट कॉस्ट्स (impact costs) के रूप में उठाना पड़ता है."

2004 में LTCG हटने पर शुरू हुआ था STT

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कामथ ने इन लागतों को घटाने के समर्थन में अपने तर्क पेश करते हुए आगे लिखा है, "ट्रांजैक्शन कॉस्ट कम होने से लिक्विडिटी में सुधार होता है, जिससे इंपैक्ट कॉस्ट भी घटती है. आप यह दलील दे सकते हैं कि ऐसा होने पर लोग ज्यादा स्पिकुलेशन करने लगेंगे, जो ठीक नहीं होगा. यह एक तर्क जरूर है, लेकिन दोनों स्थितियों के बीच में एक संतुलन होना चाहिए. मैं उम्मीद कर रहा हूं कि इस साल STT में कमी की जाएगी." गौरतलब है 2004 में तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स (LTCG) को हटाते समय सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स की शुरुआत की थी. कामथ का कहना है कि STT को स्टॉक्स एक्सचेंज ट्रेडिंग के समय ही वसूल कर लेते हैं, इसलिए सरकार के लिए इसका कलेक्शन करना LTCG वसूलने के मुकाबले काफी आसान साबित होता है. LTCG का कलेक्शन तभी होता है, जब निवेशक खुद इसकी जानकारी देकर टैक्स भरते हैं.

2018 के बजट में LTCG लौटा, लेकिन STT नहीं घटा

ध्यान देने की बात यह है कि STT लाते समय LTCG को हटा दिया गया था, लेकिन 2018 के बजट में केंद्र सरकार ने 1 लाख से ज्यादा के लाभ पर 10 फीसदी LTCG फिर से लागू कर दिया. हालांकि STT में कोई कटौती नहीं की गई. नितिन कामथ ने एक सवाल के जवाब में विस्तार से समझाया कि STT का बाजार और ट्रेडिंग कैपिटल पर क्या असर पड़ता है. उन्होंने पूरे मसले को समझाते हुए कहा कि अगर आप STT, GST और स्टैंप ड्यूटी को जोड़ दें तो सिर्फ जिरोधा के कस्टमर ही हर महीने करीब 200 करोड़ रुपये और साल में 2500 करोड़ रुपये महज ट्रांजैक्शन से जुड़े करों के रूप में अदा करते हैं. इतना टैक्स भरने के बाद जो आय होती है, उस पर भी अलग से टैक्स भरना होता है. इनमें 1 लाख से ज्यादा कैपिटल गेन पर लगने वाला 10 फीसदी LTCG, 15 फीसदी की दर से लगने वाला शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स (STCG) और इंट्रा-डे और फ्यूचर्स एंड ऑप्शन्स (F&O) पर आयकर की स्लैब के हिसाब से लगने वाले इनकम टैक्स शामिल हैं.

ट्रांजैक्शन की लागत कम हुई तो बढ़ेगा निवेश : कामथ

इससे पहले ईटी नाउ को दिए इंटरव्यू में भी कामथ ने कहा था कि अगर किसी रिटेल निवेशक के एकाउंट में 5 लाख रुपये हैं और वो कुछ लीवरेज के साथ डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट में कारोबार करता है तो उस पर सिर्फ STT का बोझ ही इतना हो जाता है कि दिन भर के कारोबार के बाद उसका मुनाफा कमा पाना मुश्किल हो जाता है. जिरोधा के को-फाउंडर का कहना है कि अगर भारत में ट्रांजैक्शन की लागत कम की जाती है, तो इससे विदेशी निवेशक हमारे देश के एक्सचेंजों में आकर कारोबार करने के लिए प्रेरित होंगे और हमारी अर्थव्यवस्था में निवेश करेंगे. इससे हमारे बाजार का आकार बढ़ेगा. उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा सुधार है, जिसका लंबे समय से इंतजार हो रहा है.

नितिन कामथ का कहना है कि ट्रांजैक्शन की ऊंची लागत ट्रेडिंग कैपिटल में सेंध लगा रही है. अगर इसमें इंपैक्ट कॉस्ट को भी जोड़ दिया जाए, तो ज्यादातर एक्टिव ट्रेडर्स को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. यह नुकसान बाजार में कारोबार से होने वाले नुकसान से भी कहीं ज्यादा है. उन्होंने कहा कि अगर STT को कम किया जाता है, तो इससे कस्टमर्स को न सिर्फ प्रत्यक्ष लाभ होगा, बल्कि लिक्विडिटी में सुधार होने के कारण इंपैक्ट कॉस्ट भी कम हो जाएगी.

(आर्टिकल : हर्षिता त्यागी)

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