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दूरसंचार विभाग के सूत्रों के मुताबिक रिवाइवल पैकेज से जुड़ा हुआ ब्लूप्रिंट अगले हफ्ते सामने आ सकता है.
वित्तीय संकट से जूझ रहे टेलीकॉम सेक्टर को बचाने के लिए सरकार रिवाइवल पैकेज पर काम कर रही है. इसके तहत टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन आइडिया (Vodafone Idea) के सीनियर अधिकारियों के साथ दूरसंचार विभाग के अधिकारी पिछले कुछ दिनों से नियमित बैठकें कर रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक पिछले महीने वोडाफोन इडिया के चेयरमैन पद से अपना इस्तीफा देने वाले आदित्य बिरला ग्रुप के चेयरमैन कुमार मंगलम बिरला ने इसे लेकर कम्यूनिकेशन मिनिस्टर अश्विनी वैष्णव से बुधवार को मुलाकात की. इसके अलावा टेलीकॉम कंपनी के एमडी और सीईओ रविंदर टक्कर और एसबीआई के चेयरमैन दिनेश कुमारा खारा ने भी बुधवार को टेलीकॉम सचिव अंशू प्रकाश से मुलाकात की थी.
फाइनेंशियल एक्सप्रेस को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सरकार के लिए प्रमोटर्स का वह बयान सबसे अधिक चिंताजनक है जिसमें उन्होंने कहा था कि वे कंपनी में और हिस्सेदारी (इक्विटी) नहीं चाहते हैं. दूरसंचार विभाग के अधिकारी यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या प्रमोटर्स की स्थिति में बदलाव आएगा, अगर सरकार इस सेक्टर के लिए रिवाइवल पैकेज का ऐलान करती है. अगर प्रमोटर्स अपने स्टैंड को नहीं बदलते हैं तो ऑफिशियल्स का मानना है कि वोडाफोन आइडिया की समस्याएं लंबे समय तक नहीं सुलझने वाली हैं और यह सरकार के पास एक या दो साल में जा सकती है. सरकार की कोशिश है कि सरकार के रिवाइवल पैकेज के साथ प्रमोटर्स कंपनी में निवेश बढाएं.
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टेलीकॉम सेक्टर को उबारने के लिए सरकार की ये है योजना
दूरसंचार विभाग के सूत्रों के मुताबिक रिवाइवल पैकेज से जुड़ा हुआ ब्लूप्रिंट अगले हफ्ते सामने आ सकता है. सरकार एक रिवाइवल पैकेज पर काम कर रही है जिसके तहत टेलीकॉम ऑपरेटर्स का एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) 8 फीसदी से घटाकर 6 फीसदी किया जा सकता है. इसके लिए यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन को 5 फीसदी से घटाकर 3 फीसदी किया जा सकता है. चूंकि इसके लिए टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) ने जनवरी 2015 में ही मंजूरी दे दी थी तो सरकार को इसके लिए नियामकीय मंजूरी नहीं लेनी होगी.
लाइसेंस फीस में 2 फीसदी की कटौती से ऑपरेटर्स को सालाना 3 हजार करोड़ रुपये की राहत मिलेगी. इसके अलावा सरकार स्पेक्ट्रम पेमेंट्स का मोरेटोरियम एक या दो साल बढ़ा सकती है. सोर्सेज के मुताबिक सरकार विदेशी नियमों में ढील देने जैसे कि फंड के स्रोत की स्क्रूटनी बंद करने पर विचार कर रही है जिससे वोडाफोन आइडिया को विदेशी मार्केट से पूंजी जुटाने में आसानी होगी.
वोडाफोन ग्रुप भारत में निवेश से पहले ही कर चुकी है इनकार
वोडाफोन ग्रुप के सीईओ निक रेड ने 23 जुलाई को एक एनालिस्ट कॉल में कहा कि वोडाफोन आइडिया कठिन दौर से गुजर रही है और इसे प्रैक्टिकल सपोर्ट के बावजूद दिया जा रहा है लेकिन अब ग्रुप भारतीय टेलीकॉम कंपनी में कोई नया निवेश नहीं करेगी. रेड ने कहा कि यह वोडाफोन आइडिया के लिए बहुत कठिन समय है और वोडाफोन ग्रुप इसे प्रैक्टिकल सपोर्ट देती रहेगी लेकिन भारत में अब निवेश नहीं किया जाएगा.
अप्रैल 2020 में वोडाफोन ग्रुप ने भारतीय टेलीकॉम कंपनी में 1350 करोड़ रुपये निवेश किए थे. यह निवेश 2018 में वोडाफोन ग्रुप की भारतीय इकाई और आइडिया सेलुलर के बीच विलय सौदे के मुताबिक किया गया था. इसके तहत वोडाफोन आइडिया को 8400 करोड़ रुपये का निवेश भारतीय टेलीकॉम कंपनी में करना था.
ब्रिटिश कंपनी वोडाफोन की वोडाफोन आइडिया में 44.39 फीसदी हिस्सेदारी है और आदित्य बिरला की 27.66 फीसदी हिस्सेदारी है. बिरला पहले ही कह चुके हैं कि अब वोडाफोन आइडिया में और निवेश नहीं किया जाएगा. 7 जुलाई को कैबिनेट सचिव को पत्र लिखकर बिरला ने वोडाफोन आइडिया में अपनी हिस्सेदारी किसी पब्लिक सेक्टर, गवर्नमेंट या डोमेस्टिक फाइनेंशियल एंटिटी को बेचने का प्रस्ताव दिया था. इसके बाद बिरला ने 4 अगस्त को वोडाफोन आइडिया के चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया था.
(Article: Kiran Rathee)