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कपड़ा इंडस्ट्री को महंगे कॉटन की कीमतों में नियर टर्म में राहत मिल सकती है. (File)
Cotton Prices: कपड़ा इंडस्ट्री को महंगे कॉटन की कीमतों में राहत मिल सकती है. शॉर्ट टर्म में घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों में बड़ी गिरावट का अनुमान है. एक्सपर्ट का कहना है कि अगले एक से दो महीनों में कॉटन का भाव हाजिर और वायदा बाजार दोनों में ही फिसलकर 40,000 रुपये प्रति गांठ तक नीचे आ सकता है. ग्लोबल ग्रोथ की चिंता, सरकार के द्वारा ड्यूटी फ्री कॉटन इंपोर्ट पॉलिसी, सामान्य मॉनसून का अनुमान और 2022-2023 में कपास का रकबा बढ़ने के अनुमान के चलते कीमतों पर दबाव देखने को मिल रहा है.
क्यों कीमतों पर दिख रहा है दबाव
ओरिगो ई-मंडी के असिस्टेंट जनरल मैनेजर (कमोडिटी रिसर्च) तरुण सत्संगी के मुताबिक कॉटन पर बिकवाली का दबाव देखने को मिल रहा है, जो नियर टर्म में जारी रहने का अनुमान है. 2 महीने के अंदर कॉटन 40 हजार रुपय तक आ सकता है. कॉटन आईसीई का भाव भी लुढ़ककर 131.5 सेंट प्रति पाउंड के स्तर पर आ सकता है. उनका कहना है कि कॉटन की कीमतों पर दबाव के पीछे कई फैक्टर हैं. सरकार की ड्यूटी फ्री कॉटन इंपोर्ट पॉलिसी के चलते आयात बढ़ रहा है. वहीं बेहतर मॉनसून के अनुमान के चलते फसल वर्ष 2022-2023 में कपास का रकबा बढ़ने का भी अंदाजा है. इसके चलते कीमतों पर दबाव रहेगा.
नया माल आने के बाद बढ़ सकती है गिरावट
केडिया कमोडिटी के डायरेक्टर अजय केडिया का कहना है कि कॉटन की कीमतों में अचछी खासी तेजी आने के बाद अभी गिरावट दिख रही है. अमेरिका में सूखा खत्म हो रहरा है और मौसम फेवरेबल बना हुआ है. इस साल मॉनसून बेहतर रहने का अनुमान एजेंसियां लगा रही हैं, जिससे बुआई का एरिया बढ़ेगा. पैनडेमिक के बाद डिमांड है लेकिन महंगाई के चलते
लिवाली में कमजोरी रही है. उनका कहना है कि मौजूदा गिरावट शॉर्ट टर्म के लिए है. हालांकि अक्टूबर में नया माल जब बाजार में आने लगेगा, कीमतों में ज्यादा करेक्शन देखने को मिल सकता है.
तरुण सत्संगी का कहना है कि पुरानी फसल-आईसीई कॉटन जुलाई वायदा का भाव 11 साल की ऊंचाई से 20 सेंट या 12.8 फीसदी लुढ़क चुका है. 17 मई से पुरानी फसल-आईसीई कॉटन जुलाई वायदा में भाव करेक्शन मोड में है. पुरानी फसल आईसीई कॉटन जुलाई वायदा के भाव ने प्रमुख सपोर्ट लेवल को तोड़ दिया है और ट्रेंड रिवर्सल प्वाइंट के नीचे बंद हो गया है, जो कि आने वाले दिनों में बाजार में मंदी का संकेत है. अमेरिकी अर्थव्यवस्था में संभावित मंदी आती है तो कॉटन जैसे इंडस्ट्रियल कमोडिटीज की कीमतें गिर सकती हैं.
कॉटन के आयात में बढ़ोतरी
तरुण सत्संगी के मुताबिक भारतीय व्यापारियों और मिलों ने शुल्क हटाने के बाद 5,00,000 गांठ कॉटन की खरीदारी विदेशों से की है. 2021-22 के लिए कुल आयात अब 8,00,000 गांठ हो गया है. सितंबर के अंत तक अन्य संभावित 8,00,000 गांठ के आयात के साथ 2021-22 के लिए कुल आयात 16 लाख गांठ हो जाएगा. कॉटन के ज्यादातर आयात अमेरिका, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया और पश्चिम अफ्रीकी देशों से हुए हैं.
भाव ऊंचा होने से घटा निर्यात
2021-22 के फसल वर्ष में मई 2022 तक तकरीबन 3.7-3.8 मिलियन गांठ कॉटन का निर्यात किया जा चुका है, जबकि एक साल पहले की समान अवधि में 5.8 मिलियन गांठ कॉटन का निर्यात किया गया था. कॉटन की ऊंची कीमतों ने निर्यात को आर्थिक रूप से अव्यवहारिक बना दिया है. इस साल भारत का कॉटन निर्यात 4.0-4.2 मिलियन गांठ तक सीमित रह सकता है, जबकि 2020-21 में 7.5 मिलियन गांठ कॉटन निर्यात हुआ था.
भारत में बढ़ सकती है बुआई
2022-23 में भारत में कपास की बुआई सालाना आधार पर 5-10 फीसदी बढ़कर 126-132 लाख हेक्टेयर रहने का अनुमान है, जबकि 2021-22 में 120 लाख हेक्टेयर में कपास की बुआई हुई थी. भारत में ज्यादा रिटर्न और सामान्य मॉनसून के पूर्वानुमान को देखते हुए 2022-23 के लिए कपास आकर्षक फसलों में से एक है, लेकिन अन्य फसलों की तुलना में श्रम की लागत ज्यादा होने से कपास का रकबा सीमित रहेगा.