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Covid-19 Impact: कोरोना के चलते 2021 में आम लोगों का कर्ज दोगुना होने का अनुमान, एसबीआई की रिसर्च रिपोर्ट में हुआ खुलासा

Covid-19 Impact: ग्रामीण व शहरी इलाकों में 2018 की तुलना में 2021 में लोगों का कर्ज दोगुना होने का अनुमान है और 2018 में छह साल की अवधि में कर्ज पहले ही दोगुना हो चुका है.

Covid-19 Impact: ग्रामीण व शहरी इलाकों में 2018 की तुलना में 2021 में लोगों का कर्ज दोगुना होने का अनुमान है और 2018 में छह साल की अवधि में कर्ज पहले ही दोगुना हो चुका है.

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Covid-19 Impact Household debt seems to have doubled in 2021 from 2018 levels says SBI report

कोरोना महामारी का असर आम लोगों पर बहुत बुरे तरह से पड़ा है और इसकी पुष्टि अब एसबीआई की एक रिसर्च रिपोर्ट से हो रही है. वहीं बैंक की रिसर्च टीम ने एक पेंडिंग रिफॉर्म के लागू होने पर किसानों के फायदे की बात कही है. (Image- Pixabay)

Covid-19 Impact: कोरोना महामारी का असर आम लोगों पर बहुत बुरे तरह से पड़ा है और इसकी पुष्टि अब एसबीआई की एक रिसर्च रिपोर्ट से हो रही है. एसबीआई की रिसर्च टीम की रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना के चलते आम लोगों के कर्ज में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई. एसबीआई के आकलन के मुताबिक वित्त वर्ष 2019-20 में हाउसहोल्ड कर्ज और जीडीपी रेशियो 32.5 फीसदी थी जो अगल ही वित्त वर्ष 2020-21 में बढ़कर 37.3 फीसदी हो गया.

एसबीआई के ग्रुप चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर डॉ सौम्य कांति घोष के आकलन के मुताबिक चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही अप्रैल-जून 2021 में जीडीपी की तुलना में हाउसहोल्ड कर्ज घटकर 34 फीसदी पर आ गया. हालांकि ग्रामीण व शहरी इलाकों में 2018 की तुलना में 2021 में लोगों का कर्ज दोगुना होने का अनुमान है और 2018 में छह साल की अवधि में कर्ज पहले ही दोगुना हो चुका है.

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2012-2018 में ग्रामीण परिवारों का कर्ज 84% बढ़ा

हाल ही में इंडिया डेट एंड इंवेस्टमेंट सर्वे (AIDIS) रिपोर्ट जारी हुई थी जिसमें 2012-2018 की अवधि के कर्ज का आंकड़ा शामिल है. इसके मुताबिक इस अवधि में गांवों में परिवारों का औसतन कर्ज 84 फीसदी और शहरी परिवारों का कर्ज 42 फीसदी बढ़ा. राज्यवार आंकड़ों से संकेत मिलते हैं कि देश के 18 राज्यों में इन 6 वर्षों मं ग्रामीण परिवारों के कर्ज में दोगुने से अधिक की बढ़ोतरी हुई और सात राज्यों के शहरों में रहने वाले परिवारों क कर्ज में भी दोगुने से अधिक बढ़ोतरी हुई. ध्यान देने वाली बात हैं कि महाराष्ट्र, राजस्थान और असम समेत पांच राज्यों में शहरी व ग्रामीण दोनों इलाकों में रहने वालों के कर्ज में दोगुना बढ़ोतरी हुई.

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परिवारों के कर्ज के आकलन के लिए डेट-एसेट रेशियो इंडिकेटर का इस्तेमाल किया जाता है. ग्रामीण परिवारों के लिए यह रेशियो 2012 में 2012 था जो 2018 में बढ़कर 3.8 हो गया. वहीं शहरी परिवारों के लिए यह रेशियो इन छह वर्षों में 3.7 से बढ़कर 4.4 हो गया. वहीं केरल, मध्य प्रदेश व पंजाब ऐसे राज्य रहे जहां इन छह वर्षों में यह रेशियो 100 बीपीएस तक बढ़ गया.

किसान क्रेडिट कार्ड्स में बढ़ोतरी

हालांकि अच्छी बात ये रही कि सभी राज्यों के गांवों में गैर-संस्थानिक क्रेडिट एजेंसियों से कर्ज लेने में कमी आई. 2012-2018 के बीच गैर-इंस्टीट्यूशनल क्रेडिट एजेंसियों से आउटस्टैंडिंग कैश डेट 44 फीसदी से घटकर 34 फीसदी हो गया. यह एक तरह से इकोनॉमिक को औपचारिक होने की गति में तेजी का संकेत है. इस मामले में सबसे बेहतर स्थिति बिहार, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात में रही. घोष के मुताबिक गैर-संस्थानिक क्रेडिट एजेंसियों से कर्ज में गिरावट के मामले में हरियाणा और राजस्थान की भी स्थिति बेहतर रही जहां लोन माफी योजनाएं शुरू की गई थीं. घोष के मुताबिक इन दोनों राज्यों में केसीसी कार्ड में तेज बढ़ोतरी हुई. इन दोनों राज्यों में 2013-2020 के बीच सात वर्षों में केसीसी कार्ड्स की संख्या में पांच गुना बढ़ोतरी हुई.

आरबीआई के पास एक विशेष फंडामेंटल रिफॉर्म पेंडिंग

घोष के मुताबिक कृषि सेक्टर में सुधारों से इकोनॉमी को औपचारिक बनाने में मदद मिलेगी लेकिन आरबीआई के पास अभी एक फंडामेंटल रिफॉर्म पेंडिंग है जिससे एग्रीकल्चर कैश-क्रेडिट अन्य सेग्मेंट्स के बराबर हो जाएगी. एग्रीकल्चर कैश क्रेडिट अकाउंट के मामले में किसानों को पूरा लोन यानी कि मूलधन व ब्याज चुकता करने के बाद ही नया लोन मिल सकता है जबकि अन्य सेक्टर्स में सिर्फ ब्याज चुकता करने पर भी कारोबारियों को लोन को बढ़ाने या रिन्यू कराने की सुविधा मिलती है. घोष के मुताबिक अगर बैंक किसानों की लैंड होल्डिंग या कर्ज चुकाने की क्षमता से संतुष्ट हैं तो उन्हें भी यह सुविधा मिलनी चाहिए.

(Article: Sanjeev Sinha)

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