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भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के ईएमआई मोरेटोरियम पर स्पष्ट स्थिति न होने और लॉकडाउन के चलते ऋण वापसी के खराब कलेक्शन के चलते नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियां नकदी का दबाव झेल रही है. रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की एक रिपोर्ट में ये बात कही गई है. रिपोर्ट के अनुसार आरबीआई द्वारा ईएमआई मोरेटोरियम पर बैंक लोन को लेकर स्थिति साफ नहीं होने के चलते एनबीएफसी पर दबाव है ही, वहीं लॉडाउन के चलते उन्हें दोहरी मार झेलनी पड़ रही है.
NBFC के सामने दोहरी चुनौतियां
क्रिसिल के मुताबिक एनबीएफसी को दोहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि वे ग्राहकों को लोन की ईएमआई टालने की सुविधा दे रहे हैं, जबकि उन्हें बैंकों से यह सुविधा नहीं मिल रही है. रेटिंग एजेंसी के वरिष्ठ निदेशक कृष्णन सीतारमन ने एक रिपोर्ट में कहा कि लॉकडाउन के चलते फ्रेश फंडिंग पाने में चुनौतियों, और लगभग जीरो कलेक्शन को देखते हुए, अगर एनबीएफसी को स्वयं बैंकों से ईएमआई टालने की सुविधा नहीं मिली तो उनमें से कई को नकदी की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. वे समय पर ऋण दायित्वों को पूरा न कर पाने के लिए मजबूर हो सकते हैं.
स्पष्टता और नकदी सहायता मांगी
कोरोना वायरस महामारी को रोकने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन के मद्देनजर रिजर्व बैंक ने एक राहत पैकेज की घोषणा की थी, जिसके तहत एक अप्रैल 2020 को सभी तरह के बकाया कर्ज पर तीन महीने के लिए ऋण स्थगन की मोहलत शामिल थी. एनबीएफसी ने ईएमआई टालने पर आरबीआई से स्पष्टता और नकदी सहायता मांगी है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग तीन-चौथाई एनबीएफसी के पास 31 मई 2020 तक कैपिटल मार्केट ऋण दायित्वों को पूरा करने के लिए 3 गुना से ज्यादा लिक्विडिटी कवर होगा. 31 मई 2020 को मोरेटोरियम खत्म हो रहा है. जबकि सिर्फ 3 फीसदी के पास ही वन टाइम लिक्विडिटी कवर होगा. वन टाइम से कम लिक्विडिटी कवर होने का मतलब है कि कंपनी समय से डेट रीपेमेंट कर पाने में असमर्थ है. जबकि बैक डेट पर मोरेटोरियम नहीं होता तो करीब 11 फीसदी कंपनियां ऐसी होती जिनके पास वन टाइम से कम लिक्विडिटी कवर होता.