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Crude Rates : क्रूड में तेजी से अपस्ट्रीम कंपनियों को फायदा होता है. वहीं ऑयल मार्केटिंग, एविएशन, पेंट, रबड़ व एफएमसीजी कंपनियों को नुकसान होता है. (Reuters)
Crude Price : इजरायल और ईरान के बीच जंग में अमेरिका की एंट्री के बाद कच्चे तेल (Crude Oil) के बाजार में जमकर उतार चढ़ाव देखने को मिल रहा है. एक दिन पहले जहां तेल की कीमतों में उबाल देखने को मिला था, वहीं कल के पीक से अबतक क्रूड में 12 फीसदी से ज्यादा गिरावट आ चुकी है. ब्रेंट क्रूड (Brent Crude) बीते 24 घंटों में 80 डॉलर से टूटकर 70 डॉलर प्रति बैरल के नीचे आ गया है. वहीं वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) क्रूड भी बड़ी गिरावट के साथ 67 डॉलर प्रति बैरल तक आ गया है.
अमेरिका के सैन्य अड्डों पर ईरान के मिसाइल हमले के बाद सोमवार देर रात कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट आई. फिलहाल अगर क्रूड निचले सतरों पर बना रहता है तो भारत सहित सभी क्रूड इंपोर्टर देशों को फायदा होगा. हालांकि मिडिल ईस्ट में जिस तरह की अनिश्चितता है, उसे देखते हुए क्रूड के आगे महंगा होने से इनकार नहीं किया जा सकता है.
क्रूड में तेजी या गिरावट से किन कंपनियों को फायदा या नुकसान
क्रूड में तेजी से अपस्ट्रीम कंपनियों को फायदा होता है. क्रूड में जैसे जैसे तेजी आ रही है, रिफाइनिंग कंपनियों की चमक बढ़ सकती है. इनमें ONGC, आयल इंडिया और GAIL जैसी कंपनियां और उनके शेयर हैं.
क्रूड में तेजी आने का नुकसान जिन कंपनियों को होता है, उससे ऑयल मार्केटिंग कंपनियां, एविएशन कंपनियां, पेंट कंपनियां, रबड़ व टायर कंपनियों के अलावा एफएमसीजी कंपनियां शामिल हैं. क्रूड की ज्यादा कीमत से एटीएफ के भी दाम बढ़ते हैं. MRF जैसी टायर कंपनियों की लागत का 25-30 फीसदी हिस्सा पेट्रो प्रोडक्ट से आता है, ऐसे में क्रूड में तेजी से इंडस्ट्री से जुड़ी कंपनियों को महंगे रॉ मटेरियल के रूप में नुकसान होगा. रबर और नायलन टायर कॉर्ड के दाम भी बढ़ते हैं.
क्रूड प्राइस : क्या हो सकता है महंगा या सस्ता
क्रूड महंगा (Crude Prices) होने से एटीएफ भी महंगा होता है, ऐसे में एविएशन कंपनियों का महंगा एटीएफ उपलब्ध होगा. एयरलाइंस की कुल लागत में एटीएफ का हिस्सा 50 फीसदी तक होता है. लिहाजा कंपनियों की लागत बढ़ेगी, जिससे मुनाफे पर सीधा असर होगा. ऐसे में एयर टिकट महंगा हो सकता है. इसके विपरीत क्रूड सस्ता होने से इन कंपनियों को फायदा होगा.
क्रूड महंगा होने से अपोलो टायर्स, सीएट और जेके टायर्स जैसी टायर कंपनियों की भी लागत बढ़ जाएगी. टायर कंपनियों के उपयोग में आने वाला कार्बन ब्लैक या सिंथेटिक रबर, कच्चे तेल से ही तैयार होता है. ऐसे में टायर महंगा होगा. वहीं क्रूड सस्ता होने से टायर की कीमतों में कमी आने की उम्मीद होती है.
एशियन पेंट्स, बर्जर पेंट्स, कन्साई नेरोलैक और शालीमार पेंट्स जैसी पेंट कंपनियों को भी क्रूड की कीमतों में तेजी से नुकसान होगा, वहीं गिरावट से सीधा फायदा होगा. इन कंपनियों के कुल कच्चे माल की लागत में क्रूड का हिस्सा 25-30 फीसदी होता है.
FMCG कंपनियां जैसे एचयूएल, गोदरेज कंज्यूमर और डाबर जैसी एफएमसीजी कंपनियों को भी महंगे क्रूड से नुकसान तो सस्ते क्रूड से फायदा होगा. एफएमसीजी कंपनियां भी मैन्युफैक्चरिंग के लिए क्रूड का इस्तेमाल करती हैं.
सिंटेक्स इंडस्ट्रीज, नीलकमल और सुप्रीम इंडस्ट्रीज जैसी प्लास्टिक पर डिपेंड रहने वाली कंपनियों को भी महंगे क्रूड का नुकसान हो सकता है. डीसीडब्ल्यू, फिलिप्स कार्बन, गोवा कार्बन और नोसिल जैसे शेयरों पर भी दबाव बढ़ सकता है. वहीं सस्ते क्रूड से इन्हें फायदा होता है.
क्रूड में क्यों आ सकती है तेजी
मिडिल ईस्ट में इस तरह का टेंशन रहने पर कच्चे तेल में अमूमन तेजी आती ही है. अमेरिका ने ईरान के न्यूक्लियर साइट पर हमला किया है, जिसके जवाब में ईरान ने भी अमेरिकी बेस पर अटैक किया है. एक ओर ट्रम्प सीजफायर का दावा कर रहे हैं, दूसरी ओर इजरायल ने ईरान की ओर से फ्रेश मिसाइल अटैक की बात कही है. सीजफायर को लेकर अभी अनिश्चितता की स्थिति है. आगे अगर ईरान की ओर से यूएस पर फिर हमला होता है तो कई देश जंग में उतर सकते हैं. ऐसे में अनिश्चितता की यह स्थिति क्रूड के लिए सपोर्टिव है.
गोल्डमैन सैक्स ने ग्लोबल एनर्जी सप्लाई को लेकर जोखिमों पर ध्यान दिलाया है. हॉर्मुज जलडमरूमध्य में संभावित व्यवधान की चिंताओं के बीच बैंक ने कहा कि इससे तेल और प्राकृतिक गैस की कीमतों में भारी उछाल आ सकता है. बैंक ने अनुमान लगाया है कि अगर एक महीने के लिए जलडमरूमध्य से तेल सप्लाई आधी हो जाती है और अगले 11 महीनों तक 10% तक कम रहती है, तो ब्रेंट क्रूड की कीमत अस्थायी रूप से 110 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है. इसके बाद, कीमतें सामान्य हो जाएंगी और 2025 की चौथी तिमाही में ब्रेंट की औसत कीमत 95 डॉलर प्रति बैरल हो सकती है.