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कारोबारी इस अनुचित और अवैधानिक ब्याज को हाई कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं.सरकार ने कहा है कि वस्तु एवं सेवा कर (GST) के भुगतान में देरी की स्थिति में एक सितंबर से कुल टैक्स देनदारी पर ब्याज लेगा. इस साल की शुरुआत में उद्योग ने जीएसटी भुगतान में देरी पर लगभग 46,000 करोड़ रुपये के बकाया ब्याज की वसूली के निर्देश पर चिंता जताई थी. ब्याज कुल देनदारी पर लगाया गया था.
केंद्र और राज्य के वित्त मंत्रियों वाली GST काउंसिल ने मार्च में अपनी 39वीं बैठक में निर्णय लिया था कि एक जुलाई, 2017 से कुल कर देनदारी पर जीएसटी भुगतान में देरी के लिए ब्याज लिया जाएगा और इसके लिए कानून को संशोधित किया जाएगा. हालांकि, केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) ने 25 अगस्त को अधिसूचित किया कि एक सितंबर 2020 से कुल कर देनदारी पर ब्याज लिया जाएगा. इस मतलब यह कि, शेष टैक्स देनदारी पर ब्याज लगाने की सुविधा का लाभ करदाताओं को एक जुलाई 2017 की बजाय 1 सितंबर 2020 से मिलेगा.
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अधिसूचना काउंसिल के फैसले से अलग
एएमआरजी एंड एसोसिएट्स के सीनियर पार्टनर रजत मोहन ने कहा कि यह अधिसूचना जीएसटी काउंसिल के फैसलों से अलग लग रही है, जिसमें करदाताओं को यह भरोसा दिया गया था कि उक्त लाभ एक जुलाई 2017 से प्रभावी होंगे.
रजत ने कहा, ''इसका मतलब यह है कि लाखों करदाताओं को जीएसटी लागू होने के दिन से लेकर अब तक मूल टैक्स देनदारी पर ब्याज देना पड़ सकता है. कारोबारी इस अनुचित और अवैधानिक ब्याज को हाई कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं. सीबीआईसी ने पहले कहा था कि जीएसटी पेमेंट में देरी होने पर जीएसटी कानून में ग्रॉस टैक्स लाइबिलिटी के आधार पर ब्याज की गणना करने की व्यवस्था है. इससे पहले, सीबीआईसी के इस तर्क को तेलंगाना हाईकोर्ट ने 18 अप्रैल 2019 के आदेश में सही माना था.
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