/financial-express-hindi/media/post_banners/PUZzKpdkRb6AaJoZGVgc.jpg)
This is even after including timing benefit from Diwali falling in November in 2020 instead of October in 2019.
कोरोना महामारी के कारण अस्त-व्यस्त हुई इकोनॉमी को सुधारने के लिए केंद्र सरकार राहत पैकेज जारी कर चुकी है और रिफॉर्म्स कई हैं. अब इसे लेकर फिच रेटिंग्स का कहना है कि सरकार के इस कदम से मीडियम टर्म में इकोनॉमिक ग्रोथ रेट बढ़ सकती है. हालांकि रेटिंग एजेंसी का यह भी कहना है कि सरकार द्वारा किए गए राहत पैकेज से अगर इंवेस्टमेंट और उत्पादकता को बढ़ावा मिलता है तो ही मीडियम ग्रोथ रेट बढ़ेगी. फिच रेटिंग्स ने यह भी कहा कि ग्रोथ को कम करने वाले दबाव भी काम कर रहे हैं. ऐसे में रेटिंग एजेंसी का कहना है कि इसके मूल्यांकन में समय लग सकता है कि रिफॉर्म्स प्रभावी तरीके से लागू हुआ या नहीं.
कोरोना महामारी के कारण निवेश पर बुरा प्रभाव
फिच के मुताबिक महामारी ने मीडियम टर्म ग्रोथ को धीमा किया है क्योंकि इसने कॉरपोरेट बैलेंस शीट को को नुकसान पहुंचाया है जिससे अगले कुछ वर्षों तक उनके निवेश पर बुरा प्रभाव पड़ा सकता है. इसके अलावा नए एसेट क्वालिटी नियमों से बैंको और कम लिक्विडिटी के कारण ग्रोथ पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है और मीडियम टर्म के लिए सरकार ने जो कर्ज का लक्ष्य निर्धारित किया है, उससे अधिक कर्ज लेना पड़ सकता है.
निवेश और उत्पादकता को सहारे की जरूरत
फिच का मानना है कि मीडियम टर्म ग्रोथ को बढ़ावा देने के लिए जरूरी है कि सरकार निवेश और उत्पादकता को सहारा दे. इसके अलावा रेटिंग एजेंसी ने उम्मीद जताई है कि अगले कुछ वर्षों तक सुधार जारी रखेगी. चालू वित्त वर्ष के लिए फिच रेटिंग्स का अनुमान है कि इंडियन इकोनॉमी 10.5 फीसदी की दर से सिकुड़ सकती है. महामारी के कारण संसद ने कृषि बिल समेत कई रिफॉर्म्स किए जिससे मीडियम टर्म ग्रोथ को बढ़ावा मिल सकता है.
महामारी के दौरान सरकार ने किए रिफॉर्म्स
कृषि बिल से किसानों को अपने फसल को कहीं भी बिक्री की सुविधा मिल गई है. इस रिफॉर्म्स के कारण किसानों की आय बढ़ सकती है और इससे कंज्यूमर प्राइसेज भी कम हो सकती हैं. कृषि बिल के अलावा संसद ने श्रम सुधार भी किए हैं. इस सुधार से श्रमिक विवादों का निपटारा तेजी से हो सकेगा और राज्यों के बीच प्रवासी मजदूरों का आवागमन आसान होगा. इसके अलावा कंपनियों को अब किसी श्रमिक को काम से निकालने के लिए तभी राज्य सरकार से मंजूरी लेनी होगी जब उनके यहां 300 से अधिक कर्मी हों. पहले उन्हें 100 कर्मी से अधिक होने पर ही इजाजत लेने की जरूरत पड़ती थी. फिच का कहना है कि इस बदलाव से देश के श्रमिक बाजार में बड़ा बदलाव आएगा. हालांकि फिच रेटिंग्स का कहना है कि यह सैद्धांतिक तौर पर प्रभावकारी लगता है लेकिन वास्तविकता में इसका प्रभाव कम पड़ सकता है.
निजीकरण का कोशिश ट्रांसफॉर्मेटिव
केंद्र सरकार कुछ सरकारी कंपनियों को निजी बना सकती है जिसमें करीब 200 से अधिक कंपनियां केंद्र सरकार के अधीन हैं और 800 से अधिक कंपनियां राज्य सरकार के तहत हैं. रेटिंग एजेंसी का कहना है कि इतने बड़े स्तर पर निजीकरण का बहुत बड़ा प्रभाव (ट्रांसफॉर्मेटिव) पड़ेगा. फिच का कहना है कि भारत में रिफॉर्म्स बहुत कठिनाई का काम है और इन्हें लागू करना हमेशा कठिन रहा है. फिच के मुताबिक इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) को अस्थाई तौर पर रद्द कर दिया गया है और गुड्स एंड सर्विसेज एक्ट (जीएसटी) कलेक्शन में गिरावट ने राज्य और केंद्र के बीच राजस्व का बंटवारा मुश्किल भरा होगा.