/financial-express-hindi/media/member_avatars/WhatsApp Image 2024-03-20 at 5.16.35 PM (1).png )
/financial-express-hindi/media/post_banners/CrECfD5mMExNkNPgyuMn.jpg)
Fitch Ratings के मुताबिक कैपिटल प्लानिंग के मामले में प्राइवेट बैंकों का प्रदर्शन सरकारी बैंकों के मुकाबले बेहतर है. (File Photo)
Fitch on India Report January 2023 : फिच रेटिंग्स (Fitch Ratings) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में मौजूदा वित्त वर्ष (FY23) के दौरान भारत के बेहतर प्रदर्शन का भरोसा जाहिर किया है. रेटिंग एजेंसी का अनुमान है कि FY23 में भारतीय बैंकों की क्रेडिट ग्रोथ 13 फीसदी के आसपास रहेगी और मजबूत क्रेडिट डिमांड का ये सिलसिला अगले वित्त वर्ष यानी 2023-24 में भी जारी रहेगा. पिछले वित्त वर्ष (FY22) में बैंक क्रेडिट ग्रोथ 11.5 फीसदी रही थी.
ऊंची नॉमिनल GDP ग्रोथ का मिलेगा लाभ
फिच रेटिंग्स का मानना है कि मौजूदा वित्त वर्ष (FY23) के दौरान भारत की नॉमिनल GDP ग्रोथ रेट ऊंची रहने वाली है, जिसके कारण रिटेल और वर्किंग कैपिटल लोन की डिमांड बढ़ेगी. इसका परिणाम बेहतर बैंक क्रेडिट ग्रोथ के रूप में देखने को मिलेगा. रेटिंग एजेंसी ने अपने ताजा न्यूजलेटर (Fitch on India Newsletter January 2023) में भारतीय बैंकिंग सेक्टर की सेहत और प्रदर्शन के बारे में कई महत्वपूर्ण बातें कही हैं :
- मार्च 2023 में खत्म होने वाले वित्त वर्ष (FY23) के दौरान भारतीय बैंकों की क्रेडिट ग्रोथ में तेजी देखने को मिलेगी. ऊंची ब्याज दरों के असर के बावजूद क्रेडिट ग्रोथ में यह तेजी महत्वपूर्ण है.
- लोन ग्रोथ की मजबूती का लाभ नेट रेवेन्यू में भी देखने को मिलेगा. इसके साथ ही नेट इंटरेस्ट मार्जिन भी पहले से बेहतर होंगे.
- क्रेडिट ग्रोथ अगर फिच रेटिंग्स के अनुमान से ज्यादा रहे तो कॉमन इक्विटी टियर 1 रेशियो (CET1) पर दबाव पड़ सकता है. अगर ऐसा हुआ तो संभावित नुकसान को झेलने के लिए जरूरी बफर कम हो सकता है.
- वित्त वर्ष 2022-23 (FY23) में बैंक क्रेडिट ग्रोथ 13 फीसदी के आसपास रहने का अनुमान है.
- ऊंची नॉमिनल GDP ग्रोथ के कारण रिटेल और वर्किंग कैपिटल लोन्स की डिमांड में इजाफा होने से बैंक क्रेडिट ग्रोथ को मजबूती मिलेगी.
- वित्त वर्ष 2023-23 (FY24) के दौरान भी क्रेडिट डिमांड काफी मजबूत रहने की संभावना है. यह ग्रोथ मौजूदा वित्त वर्ष के बराबर या उससे कुछ अधिक भी हो सकती है. यह अनुमान आर्थिक गतिविधियों में लगातार इजाफा होने (strong economic expansion) की उम्मीद पर आधारित है.
- फिच रेटिंग्स का बेसलाइन एजम्प्शन (baseline assumption) यह है कि FY24 के दौरान CET1 रेशियो में बेहद मामूली गिरावट आएगी और यह 13 फीसदी के आसपास ही बना रहेगा. इस दौरान बैंक बाहर से पूंजी जुटाने की कोशिशें और तेज करेंगे.
- फिच रेटिंग्स का मानना है कि भारतीय बैंक ब्याज दरों में बढ़ोतरी के बावजूद ग्रोथ को सपोर्ट करने के लिए अतिरिक्त फंड जुटाने (additional capital-raising) से पीछे नहीं हटेंगे.
- कैपिटल प्लानिंग के मामले में प्राइवेट बैंकों का प्रदर्शन सरकारी बैंकों के मुकाबले आमतौर पर बेहतर है.
- सरकारी बैंकों की नुकसान झेलने की क्षमता कम है, क्योंकि उनके CET1 रेशियो प्राइवेट बैंकों के मुकाबले काफी नीचे हैं. अगर तेज लोन ग्रोथ और फंड रेजिंग में तालमेल की कमी रही, तो इसमें और गिरावट आ सकती है.
- बैंक अगर ग्रोथ के लालच में ज्यादा जोखिम उठाने की तरफ झुकेंगे तो उनके क्रेडिट प्रोफाइल और वायबिलिटी रेटिंग्स (Viability Ratings) पर इसका बुरा असर पड़ सकता है. खासतौर पर अगर उन्होंने संभावित नुकसान झेलने के लिए अपने बफर (loss-absorption buffers) बढ़ाने का प्रावधान नहीं किया, तो ऐसी आशंका और भी अधिक रहेगी.
- फिच रेटिंग्स का कहना है कि अगर वास्तविक इकनॉमिक एक्सपैंशन (economic expansion) उसके बेसलाइन एजम्पशन से काफी कम रहा, तो ऊपर दिए अनुमानों पर असर पड़ सकता है. अगर ऐसा हुआ तो बैंकों की एसेट क्वॉलिटी पर दबाव बढ़ेगा और क्रेडिट कॉस्ट अनुमान से ज्यादा हो जाएगी.