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सरकार ने दो बैंक सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (Central Bank of India)और इंडियन ओवरसीज बैंक (Indian Overseas Bank)के प्राइवेटाइजेशन का रास्ता लगभग साफ कर दिया है. कैबिनेट सचिव की अगुआई में हाल में हुई बैठक में इससे जुड़े तमाम नियामकीय और प्रशासनिक मुद्दों पर चर्चा हुई. अब इसकी मंजूरी के लिए विनिवेश पर गठित मंत्रियों के समूह या वैकल्पिक मैकेनिज्म के सामने पेश किया जाएगा.
वित्त मंत्री ने बजट में किया था निजीकरण का ऐलान
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2021 के बजट भाषण में सरकारी बैंकों के प्राइवेटाइजेशन का ऐलान किया था. इसके बाद नीति आयोग ने अप्रैल में कैबिनट सचिव की अगुवाई में बने सचिवों के कोर ग्रुप को कुछ बैंकों के नाम प्राइवेटाइजेशन के लिए सुझाए. सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए विनिवेश के जरिये 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा था. इस साल फरवरी में रिपोर्ट आई थी कि केंद्र सरकार ने 4 मिड साइज बैंकों को प्राइवेटाइजेशन के लिए शॉर्टलिस्ट किया है. इनमें बैंक ऑफ महाराष्ट्र (Bank of Maharashtra), बैंक ऑफ इंडिया (BoI), इंडियन ओवरसीज बैंक (Indian Overseas Bank)और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (Central Bank of India) का नाम शामिल है. इन चार बैंकों में से दो का निजीकरण वित्त वर्ष 2021-22 में होगा.
बैंक यूनियन की ओर से निजीकरण का विरोध
कमेटी ने निजीकरण की संभावना वाले बैंकों के कर्मचारियों के हितों के संरक्षण से जुड़े मुद्दों पर भी विचार-विमर्श किया. एएम की मंजूरी के बार इस मामले को प्रधानमंत्री की अगुवाई वाले केंद्रीय मंत्रिमंडल को अंतिम मंजूरी के लिए भेजा जाएगा. कैबिनेट की मंजूरी के बाद निजीकरण के लिए जरूरी नियामकीय बदलाव किए जाएंगे. बैंक यूनियन इन दोनों बैंकों के प्राइवेटाइजेशन का विरोध कर रही है. नौ बैंक यूनियनों के समूह यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन ने सरकारी बैंकों के निजीकरण के खिलाफ 15 और 16 मार्च को राष्ट्रव्यापी बैंक हड़ताल की घोषणा की थी.