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भारत में दुनिया भर का 60 फीसदी गुड़ तैयार होता है. (File Photo)
सर्दियों में इस बार गुड़ की मिठास कुछ महंगी बनी रहेगी. अभी की बात करें तो बाजार में गुड़ की आवक है, लेकिन खपत भी बहुत ज्यादा है. एक्सपर्ट मान रहे हैं कि गुड़ की डिमांड अगले महीने आने वाले मकर संक्रांति तक बनी रहेगी. ऐसे में मिड जनवरी तक गुड़ में खास राहत मिलने की उम्मीद बहुत कम है. उनका कहना है कि गुड़ का वायदा भाव अगले महीने मकर संक्रांति के आस-पास 1150 का लेवल छू सकते हैं. हालांकि उसके बाद मांग घटने से इसमें नरमी देखने को मिल सकती है. बता दें कि नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव एक्सचेंज लिमिटेड (NCDEX) पर जनवरी का वायदा भाव इस समय 1115 चल रहा है.
NCDEX पर गुड़ की फ्यूचर ट्रेडिंग 15 दिसंबर से शुरू हुई है. 15 दिसंबर को यह 1062 के लेवल पर यह एक्सचेंज पर खुला था. एनसीडेक्स पर ट्रेड होने वाले गुड़ का बेस वैल्यू 40 किग्रा के आधार पर तय होता है. बाजार विशेषज्ञों के मुताबिक गुड़ का वायदा भाव मकर संक्रांति के बाद 1100 रुपये के लेवल तक आने की संभावना है. एनसीडेक्स ने गुड़ फ्यूचर्स कांट्रैक्ट के लिए मुजफ्फरपुर (उत्तर प्रदेश) को बेसिस सेंटर निर्धारित किया है क्योंकि यहां गुड़ के लिए बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर सपोर्ट और कई प्रोसेसिंग यूनिट्स हैं. वायदा डिलीवरी के लिए यह इकलौता केंद्र निर्धारित किया गया है.
60% गुड़ भारत में होता है तैयार
दुनिया भर में सबसे अधिक गुड़ का उत्पादन भारत में होता है. भारत करीब 60 फीसदी गुड़ का उत्पादन करता है. हालांकि निर्यात के मामले में ब्राजील सबसे आगे है. दुनिया भर में गुड़ का सबसे बड़ा निर्यातक ब्राजील और सबसे बड़े आयातक यूएसए, चीन व इंडोनेशिया हैं. भारत में गुड़ के उत्पादन की बात करें तो यहां सबसे अधिक गुड़ उत्तर प्रदेश में पैदा होता है. देश का 80 फीसदी गुड़ सिर्फ चार राज्यों उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिल नाडु में तैयार होता है. उत्तर प्रदेश में देश का 47 फीसदी, महाराष्ट्र में 21 फीसदी, कर्नाटक में 8 फीसदी और तमिलनाडु में 5 फीसदी गुड़ तैयार होता है. भारत से गुड़ श्रीलंका, नेपाल, इंडोनेशिया को निर्यात होता है.
गुड़ के भाव को प्रभावित करने वाले कारक
'गरीबों की मिठाई' कहे जाने वाले गुड़ के भाव को कई फैक्टर प्रभावित करते हैं. सामान्य दिनों में मांग के अलावा फेस्टिव सीजन से भी गुड़ के भाव प्रभावित होते हैं. इसके अलावा जानवरों को दिए जाने वाले आहार के भाव से गुड़ के भाव पर भी प्रभाव पड़ता है. सूगर जैसी अन्य मीठी वस्तुओं के भाव से गुड़ के भाव में उतार-चढ़ाव होता है.
मकर संक्रांति तक बनी रहेगी मांग
गुड़ की सबसे अधिक मांग सर्दियों में होती है. इसके अलावा मकर संक्रांति पर इसकी मांग बढ़ती है. ऐसे में अगले साल जनवरी 2021 के मध्य तक इसके भाव में कमी की उम्मीद नहीं की जा सकती है. ब्रोकरेज फर्म एंजेल ब्रोकिंग के डिप्टी वाइस प्रेसिडेंट (कमोडिटीज एंड करेंसीज रिसर्च) अनुज गुप्ता के मुताबिक इस समय गुड़ की आवक आ रही है लेकिन इसकी खपत भी बढ़ी है, ऐसे में मकर संक्रांति तक इसके भाव में हल्की तेजी दिख सकती है. मकर संक्रांति के बाद इसके भाव में नरमी आएगी.
उत्पादन में गिरावट के बावजूद कीमत में अधिक उछाल नहीं
इस बार गुड़ का उत्पादन प्रभावित हुआ है, इसके बावजूद इस समय गुड़ के भाव फिजिकल मार्केट में 50 रुपये के आस-पास चल रहे हैं. केडिया कमोडिटी के निदेशक अजय केडिया के मुताबिक इस बार कोरोना महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन ने गुड़ की मांग को प्रभावित किया. इसकी वजह से गुड़ का उत्पादन कम होने के बावजूद इसके भाव अधिक चढ़ नहीं पाए. आईसीएआर (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च)- सूगरकेन ब्रीडिंग इंस्टीट्यूट कोयंबटूर पर दिए गए आंकड़ों के मुताबिक 2019-20 में 48.67 लाख हेक्टेअर क्षेत्रफल में 37,77,66,000 टन गन्ने के उत्पादन का अनुमान है जबकि पिछली बार 51.14 लाख हेक्टेअर क्षेत्रफल में 40,01,57000 टन गन्ना उत्पादित हुआ था. देश भर में जहां भी गन्ने का उत्पादन होता है, वहां गुड़ तैयार किया जाता है.
गुड़ का इस्तेमाल साल भर
गुड़ की आवक अक्टूबर से अप्रैल तक रहती है लेकिन इसकी खपत साल भर रहती है. गुड़ को ऊर्जा के तुरंत स्रोत के रूप में प्रयोग किया जाता है. इसके अलावा कई प्रकार के पकवान में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है. गुड़ को मेडिसिनल शुगर माना जाता है और पोषकता के मामले में इसकी तुलना शहद के साथ की जाती है. यह न सिर्फ इंसानों के लिए फायदमेंद है बल्कि जानवरों को भी खाना पचाने के लिए दिया जाता है और गुड़ से उनकी उत्पादकता भी बढ़ती है. गुड़ से बीपी नियंत्रित रहती है, हीमोग्लोबिन बढ़ाता है जिससे एनीमिया की रोकथाम होती है. इस प्रकार गुड़ के औषधीय फायदे भी हैं.