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HUL बोर्ड ने GSK कंज्यूमर इंडिया के साथ विलय योजना को मंजूरी दे दी है, जिसके तहत दोनों कंपनियां विलय हो जाएंगी.
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145 साल पुराने ब्रांड Horlicks का सौदा हो चुका है. चार महीनों की लंबी नीलामी प्रक्रिया और कई दौर की बातचीत के बाद हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड यानी HUL ने अंततः Horlicks को खरीद लिया है. HUL बोर्ड ने GSK कंज्यूमर इंडिया के साथ विलय योजना को मंजूरी दे दी है, जिसके तहत दोनों कंपनियां विलय हो जाएंगी. HUL 31700 करोड़ में GSK इंडिया को खरीदेगी.
वैसे तो हॉर्लिक्स यूके का प्रॉडक्ट है लेकिन इसकी सबसे ज्यादा बिक्री भारत में होती है. जब इसकी भारत में एंट्री हुई, उस वक्त इसे भारत की बड़ी रियासतों और अमीर घरानों ने न केवल अपनाया, बल्कि ये उनका स्टेटस सिंबल बन गया. आइए आपको बताते हैं कैसे शुरू हुई हॉर्लिक्स की जर्नी, भारत में कब हुई एंट्री और कैसे बना पॉपुलर प्रोडक्ट-
किसने किया ईजाद
हॉर्लिक्स को दो ब्रिटिश भाइयों विलियम हॉर्लिक और उनके भाई जेम्स ने अमेरिका में र्इजाद किया था. जेम्स एक केमिस्ट थे, जो ड्राई बेबी फूड बनाने वाली कंपनी के लिए काम करते थे. उनके छोटे भाई विलियम 1869 में अमेरिका आए थे. दोनों ने 1873 में मॉल्टेड मिल्क ड्रिंक बनाने वाली कंपनी J&W हॉर्लिक्स शुरू की और अपने प्रॉडक्ट को डायस्टॉइड नाम दिया. हॉर्लिक का इन्फैंट और इनवैलिडट्स फूड उनका स्लोगन था. इसके बाद 5 जून 1883 को दोनों भाइयों ने प्रॉडक्ट के लिक्विड में मिक्स हो जाने की योग्यता के लिए यूएस पेटेंट नंबर 278,967 हासिल कर लिया और यह पेटेंट पाने वाला पहला मॉल्टेड मिल्क प्रॉडक्ट बन गया.
1908 में पहली फैक्ट्री
विलियम और जेम्स ने 1908 में बर्कशायर के स्लॉ में अपनी पहली यूके फैक्ट्री शुरू की. इसकी लागत 28,000 पाउंड थी. धीरे—धीरे प्रॉडक्ट पॉपुलर होना शुरू हुआ. माउंटेनियर्स और पोलर एक्सप्लोरर्स इसे एक्सपेडीशंस पर साथ ले जाने लगे. एक माउंटेनियर रिचर्ड बायर्ड ने तो एक माउंटेन को हॉर्लिक्स माउंटेन का नाम भी दिया था. पहले विश्व युद्ध (1914) के दौरान इसकी लोकप्रियता और बढ़ गई. आम लोग और सैनिक इसे बहुत ही अच्छा सप्लीमेंट मानने लगे. उस वक्त इसे पानी में घोल के पिया जाता था. दूसरे विश्व युद्ध में हॉर्लिक्स टैबलेट्स को कैंडी की तरह बेचा गया और अमेरिकी, ब्रिटिश और अन्य सैनिकों ने इसे एनर्जी बूस्टर के रूप में इस्तेमाल किया.
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1948 ओलंपिक में रही अहम भूमिका
1948 का लंदन ओलंपिक हॉर्लिक्स के लिए एक अन्य गर्व वाला पल रहा. ऑर्गेनाइजिंग कमेटी ने 1948 ओलंपिक में भाग लेने वाले सभी लोगों को हॉर्लिक्स दिया. इसे बेडटाइम ड्रिंक और खेल के दौरान सर्व किया जाता था. हॉर्लिक्स अब तक कई प्रोग्राम्स और कॉम्पिटीशंस को स्पॉन्सर कर चुका है. 2010 की माउंटेन क्लाइंबिंग से जुड़ी वॉकिंग विद द वाउंडेड चैरिटी इनमें से एक है.
1969 में गया GSK के पास
हॉर्लिक्स की बढ़ती पॉपुलैरिटी के चलते इसे 1969 में बीशम ग्रुप ने खरीद लिया. 1989 के बाद इस ग्रुप का नाम स्मिथलाइन बीशम हो गया और आज यह ग्लैक्सोस्मिथलाइन ग्रुप यानी जीएसके ग्रुप है.
भारत में कब हुई एंट्री
वैसे तो भारत में हॉर्लिक्स की एंट्री कब हुई इसे लेकर कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं लेकिन रिपोर्ट्स के मुताबिक पहले विश्वयुद्ध से लौटे ब्रिटिश आर्मी के भारतीय सैनिक भारत में सबसे पहले हॉर्लिक्स लाए थे. 1940 और 1950 के दशक में पंजाब, बंगाल और मद्रास की रियासतों व देश के अन्य संपन्न परिवारों ने इसे सबसे पहले फैमिली ड्रिंक के रूप में अपनाया. उस वक्त यह अपर मिडिल क्लास और अमीर लोगों के लिए स्टेटस सिंबल बन गया. 70 के दशक के पहले हमारे देश में दूध की कमी थी. श्वेत क्रांति के बाद भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बना.
उससे पहले लोगों को न्यूट्रीशन डायट नहीं मिल पा रही थी. उदारीकरण के बाद देश में कई घरेलू और इंटरनेशनल न्यूट्रीशनल प्रॉडक्ट्स की एंट्री हुई. हॉर्लिक्स भी उनमें से एक था. उस वक्त बॉर्नवीटा और कॉम्प्लैन, देश के पश्चिमी और उत्तरी हिस्से में हॉर्लिक्स के प्रमुख प्रतिद्वंदी थे. साथ ही एक लोकल कंपनी जगतजीत इंडस्ट्रीज के माल्टोवा और वीवा ब्रांड भी उत्तर में पैठ बनाए हुए थे. कॉम्पिटीशन को कम करने के लिए GSK ने माल्टोवा और वीवा को खरीद लिया. भारत में हॉर्लिक्स का सबसे पहला फ्लेवर मॉल्ट था. उसके बाद वनीला, टॉफी, चॉकलेट, हनी और इलायची, केसर-बादाम फ्लेवर पेश किए गए.
1958 में भारत में खुली पहली फैक्ट्री
भारत में हॉर्लिक्स की पहली फैक्ट्री हिंदुस्तान मिल्कफूड मैन्युफैक्चरर्स नामक कंपनी के तहत 1958 में पंजाब में खोली गई. उस वक्त नाभा के महाराज महाराणा प्रताप सिंह ने इसमें मदद की. दूसरी फैक्ट्री आंध्र प्रदेश में खोली गई.
(इनपुट: http://www.horlicks.co.uk)