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Holding Companies: होल्डिंग कंपनियां अपनी अंडरलाइंग होल्डिंग्स के कंबाइंड वैल्यू से डिस्काउंट पर ट्रेड करती हैं. (file image)
Holding Companies Stocks: शेयर बाजार अपने रिकॉर्ड हाई के आस पास ही बना हुआ है. जून के महीने में निफ्टी ने लंबी कोशिशों के बाद 19000 का लेवल ब्रेक किया. वहीं जुलाई में 20 हजार के पार जाते जाते रह गया. फिलहाल बाजार में ऊपरी स्तरों से कुछ वोलेटिलिटी आई है, लेकिन एक बड़ा पॉजिटिव फैक्टर निफ्टी को 20 हजार के पार पहुंचा सकता है. बाजार की इस हालिया रैली में बहुत से शेयरों में भी तेजी आई है. लेकिन कुछ होल्डिंग कंपनियों के शेयर निवेशकों को अभी भी आकर्षित कर रहे हैं. असल में ये शेयर हैवी डिस्काउंट पर ट्रेड कर रहे हैं और बाजार में तेजी आती है तो डिस्काउंट लेवल से इनमें हाई रिटर्न मिलने के चांस हैं. बता दें कि होल्डिंग कंपनियां अन्य लिस्टेड और नॉन-लिस्टेड कंपनियों के शेयर रखती हैं. इन होल्डिंग कंपनियों के मूल्य का एक बड़ा हिस्सा अन्य बिजनेस में उनकी हिस्सेदारी से प्राप्त होता है. वे अंडरलाइंग कंपनियों से डिविडेंड इनकम और/या इंटरेस्ट इनकम अर्जित करते हैं. एसबीआई सिक्योरिटीज ने इस बारे में एक रिपोर्ट जारी की है.
होल्डिंग कंपनियां क्यों डिस्काउंट पर करती हैं ट्रेड
होल्डिंग कंपनियां अपनी अंडरलाइंग होल्डिंग्स के कंबाइंड वैल्यू से डिस्काउंट पर ट्रेड करती हैं. यह छूट 50-80% के बीच होती हैं. डिस्काउंट की मात्रा विभिन्न कंपनियों में अलग अलग होती है और कई फैक्टर्स पर निर्भर करती है. जैसे अंडरलाइंग कंपनियों की क्वालिटी, कॉर्पोरेट गवर्नेंस प्रैक्टिस, कैपिटल अलोकेशन रैक रिकॉर्ड, कैश फ्लो, टैक्सेशन स्ट्रक्चर और डिविडेंड यील्ड.
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किन फैक्टर्स का होल्डिंग कंपनियों पर असर
क्वालिटी ऑफ होल्डिंग: कई होल्डिंग कंपनियों के पास डाइवर्स सेक्टर में काम करने वाली कई कंपनियां हैं. इनमें से कुछ कंपनियां कैश रिच हैं और उनका डिविडेंड पेआउट रेश्यो भी अच्छा है. बेहतर कॉरपोरेट गवर्नेंस प्रैक्टिस और कैपिटल अलोकेशन ट्रैक रिकॉर्ड के चलते आंतरिक मूल्य पर डिस्काउंट कम करने में मदद मिलती है. दूसरी ओर, बार-बार कैपिटल इनफ्यूजन की आवश्यकता वाली कंपनियों की उपस्थिति (या तो लिस्टेड होल्डिंग कंपनी में या प्रमोटर/प्रमोटर ग्रुप की पर्सनल कैपेसिटी में) और दूरसंचार, एविएशन, मेटल, इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे साइक्लिकल सेक्टर में काम करने वाली कुछ होल्डिंग कंपनियां ऊंचे डिस्काउंट पर कारोबार कर रही है. ऐसी कंपनियों को घाटे में चल रही संस्थाओं को इक्विटी/डेट के माध्यम से सपोर्ट देना होता है. परिणामस्वरूप, ऐसी होल्डिंग कंपनियों में निवेशकों को कैश फ्लो तक पूरी पहुंच नहीं मिल पाती है और इसलिए वे हैवी डिस्काउंट पर ट्रेड करती हैं.
डिविडेंड: होल्डिंग कंपनियां जिनमें डिविडेंड पेआउट रेश्यो अधिक और कंसिस्टेंट है, उनमें कम डिस्काउंट देखने को मिलता है. बाजार जब वोलेटाइल होता है, हाई डिविडेंड यील्ड स्टॉक प्राइस के समर्थन के रूप में काम करती है. डिविडेंड यील्ड मौजूदा स्टॉक प्राइस और विशेष वर्ष के लिए संभावित डिविडेंड पेआउट रेश्यो का काम है. उदाहरण के लिए बजाज होल्डिंग्स (डिविडेंड यील्ड: 1.7%) और टाटा इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन (डिविडेंड यील्ड: 2.1%) का लगातार हर साल डिविडेंड पेआउट का ट्रैक रिकॉर्ड है. उन होल्डिंग कंपनियों के लिए डिस्काउंट बढ़ जाता है, जहां अंडरलाइंग कंपनियों के डिविडेंड का उपयोग होल्डिंग कंपनी में घाटे में चल रही अन्य संस्थाओं को कैपिटलाइज करने या होल्डिंग कंपनी में ऑपरेटिंग स्टैंडअलोन बिजनेस को फंड देने के लिए किया जाता है. इसके अलावा इनडायरेक्ट कंट्रोल और प्रमोटर प्लेग जैसे फैक्टर भी इन कंपनियों को प्रभावित करते हैं.
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होल्डिंग कंपनियों में कैसे करें ट्रेडिंग
होल्डिंग कंपनियां तब एक आकर्षक टैक्टिकल बिजनेस के लिए अवसर प्रदान करती हैं, जब वह हैवी डिस्काउंट और तुलनात्मक रूप से लो वैल्युएशन पर ट्रेड करती हैं. जबकि अंडरलाइंग स्टॉक पहले ही बढ़ चुके होते हैं और बहुत अधिक मूल्यांकन पर कारोबार कर रहे होते हैं. निफ्टी 50 वर्तमान में लाइफ टाइम हाई के आस पास बना हुआ है और ऐसे समय में हैवी डिस्काउंट पर मिल रहे होल्डिंग कंपनियों के शेयरों में पैसा लगाना चाहिए.
(Disclaimer: स्टॉक में निवेश की सलाह ब्रोकरेज हाउस के द्वारा दी गई है. यह फाइनेंशियल एक्सप्रेस के निजी विचार नहीं हैं. बाजार में जोखिम होते हैं, इसलिए निवेश के पहले एक्सपर्ट की राय लें.)