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दिवालिया मामलों के निपटारे से जल्द ही भारतीय बैंकों की फाइनेंशियल सेहत को बड़ा बूस्ट मिल सकता है. इसी महीने बड़े दिवालिया मामलों के निपटान के चलते बैंकों को कुल 54 हजार करोड़ यानी 760 करोड़ डॉलर की रिकवरी हो सकती है. बैंकों को इस रिकवरी की उम्मीद एस्सार स्टील इंडिया लिमिटेड, प्रयागराज पावर जेनरेशन कंपनी, रूचि सोया इंडस्ट्रीज लिमिटेड और रतनइंडिया पावर लिमिटेड से होने की उम्मीद है. मामले से जुड़े एक जानकार के मुताबिक यह रिकवरी इसी महीने पूरी हो सकती है.
रिकवरी से बैंकों के साथ इकोनॉमी को भी फायदा
54 हजार करोड़ की रिकवरी बैंकों के लिए राहत की खबर है, जो बैड लोन और हाई प्रोविजंस की समस्या से जूझ रहे हैं. बैंकों का कुल बैड लोन बढ़कर 13000 करोड़ डॉलर हो चुका है. जिसकी वजह से देश की अर्थव्यवस्था पर भी लगातार दबाव बना हुआ है. बैंकों का मानना है कि कैपिटल मिलने से न सिर्फ प्रोविजनिंग में दबाव कम होगा, तीसरी तिमाही का मुनाफा भी बढ़ सकता है.
ICRA रेटिंग्स के फाइनेंशियल सेक्टर के ग्रुप हेड कार्तिक श्रीनिवासन के अनुसार बैंकरप्सी मामलों से बैंकों को कुल 54 हजार करोड़ की रिकवरी होनी चाहिए. बैंक इसके बड़े हिस्से का उपायोग बैड लोन के चलते की जाने वाली प्रोविजनिंग में कर सकेंगे. ICRA रेटिंग्स मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस की लोकल आर्म है.
कहां से कितनी होनी है रिकवरी
रिपोर्ट के अनुसार 4 कंपनियों को लेकर बैंकरप्सी कोर्ट में प्रक्रिया पूरी होने के बाद सरकारी बैंकों को कुल 54 हजार करोड़ रुपयों यानी 760 करोड़ डॉलर की रिकवरी हो सकती है. इनमें बैंकों को एस्सार स्टील से 41,500 करोड़, रूचि सोया से 4350 करोड़, रतनइंडिया पावर लिमिटेड से 2700 करोड़ रुपये हासिल हो सकते हैं. वहीं, सूत्रों के हवाले से खबर आ रही है कि प्रयागराज बैंकरप्सी से बैंकों को 5400 करोड़ रुपये मिले हैं.
किस बैंक को सबसे ज्यादा फायदा
बैंकरप्सी कोर्ट में मामले हल होने से सबसे ज्यादा फायदा स्टेट बैंक आफ इंडिया को होना है. एसबीआई के बाद IDBI बैंक, बैंक आफ इंडिया, केनरा बैंक, बैंक आफ बड़ौदा को होना है. हालांकि मैक्वेरी कैपिटल सिक्योरिटीज में फाइनेंशियल रिसर्च देखने वाले सुरेश गणपति के अनुसार भारत में लंबा खिंच गए इकोनॉमिक स्लोडाउन की मुख्य वजह बैंकों का बैड लोन का बढ़ते जाना है. इस वजह से दिसबंर बोनान्जा अल्पकालिक होगा.
क्रेडिट सूइस की एक रिपोर्ट के अनुसार मार्च के अंत तक भारत के बैंकिंग सिस्टम में बैड डेट रेश्यो बढ़कर 11 फीसदी हो चुका था, जो एक साल पहले की समान अवधि में 9.3 फीसदी था.