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सेरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया का कहना है कि सब कुछ ठीक रहा तो कोविड 19 की वैक्सीन का जुलाई से बल्क उत्पादन शुरू हो जाएगा.
सेरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया का कहना है कि सब कुछ ठीक रहा तो कोविड 19 की वैक्सीन का जुलाई से बल्क उत्पादन शुरू हो जाएगा.कोरोना वायरस से लड़ने के लिए दुनियाभर के देशों की दवा कंपनियां वैक्सीन बनाने के प्रयोग में लगी हैं. इसी क्रम में भारत की एक दवा कंपनी ने दुनिया को बड़ी उम्मीद दिखाई है. भारत की फार्मा कंपनी सेरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया का कहना है कि सब कुछ ठीक रहा तो कोविड 19 की वैक्सीन का जुलाई से बल्क उत्पादन शुरू हो जाएगा. खलीज टाइम्स के अनुसार कंपनी का कहना है कि वेक्सीन का ह्यूमन ट्रॉयल जारी है. हालांकि इसमें अभी कुछ प्रक्रिया बची हुई हैं. कंपनी ने यह भी कहा है कि इस वैक्सीन की कीम भारतीय करंसी में 1000 रुपये होगी.
भारत में पुणे बेस्ड सेरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया दुनिया की उन लीडिंग कंपनियों में शामिल है, जो वैक्सीन बनाती हैं. कंपनी वैक्सीन का बड़े पैमाने पर एक्सपोर्ट भी करती है. कंपनी का कहना है कि इस वैक्सीन को बनाने के लिए कंपनी ने कुल 600 करोड़ रुपये खर्च करके प्लांट लगा रही है. जहां इस वैक्सीन पर काम चल रहा है. जुलाई के अंत तक कंपनी इसका बल्क प्रोडक्शन शुरू कर सकती है. हालांकि इसके लिए घरेलू स्तर पर इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च व अन्य एजेंसियों से रेगुलेटरी अप्रूवल जरूरी होगी.
पहले भारत में सप्लाई करने का लक्ष्य
सेरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया के सीईओ अदर पूनावाला ने खलीज टाइम्स को बताया कि प्रोडक्शन के बाद अगर कंपनी के पास पर्याप्त वैक्सीन रहती है तो वह इसका जरूरतमंद देशों में एक्सपोर्ट भी करेंगे. लेकिन उनकी पहली प्राथमिकता भारत होगी.
1000 रुपये होगी कीमत
उन्होंने यह जानकारी दी कि वेक्सीन का बाजार भाव 1000 रुपये होगा. कंपनी यह उम्मीद कर रही है कि जुलाई से 50 लाख प्रति माह डोज का शुरूआती लक्ष्य रखते हुए इसे सितंबर तक 4 करोड़ डोज तक ले जाया जाए. कंपनी के अनुसार इसका ट्रॉयल 23 अप्रैल से शुरू हो चुका है. सेरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया पुणे बेस्ड कंपनी है जो वेक्सीन की लार्जेस्ट प्रोड्यूसर है.
सेरम इंस्टीट्यूट आक्सफोर्ड वेक्सीन ग्रुप में शामिल है. कंपनी का मुख्य प्लांट पुणे में है. इसके अलावा नीदरलैंड्स और चेक रिपब्लिक में 2 बड़े प्लांट हैं. कंपनी की कुछ विदेशी कंपनियों के साथ भी पार्टनरशिप है. कंपनी का कहना है कि जब भी कोई वैक्सीन बनाई जाती है तो उसका कुछ चरणों में ट्रॉयल होता है. जिसके बाद ही उसे बाजार में उतारा जाता है.
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