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प्याज की कीमतों ने 2019 में उपभोक्ताओं को खूब रुलाया. साल के दौरान एक समय प्याज का खुदरा दाम 200 रुपये किलोग्राम तक पहुंच गया था. वहीं साल की आखिरी तिमाही में टमाटर के दाम भी आसमान छू गए. खाद्य वस्तुओं की ऊंची कीमतों की वजह से खुदरा मुद्रास्फीति तीन साल के उच्चस्तर पर पहुंच गई. उपभोक्ताओं को इस वजह से अपनी खानपान की आदत में बदलाव लाना पड़ा.
फसल बर्बाद होने और आपूर्ति बाधित होने की वजह से रोजमर्रा के इस्तेमाल वाली सब्जियां मसलन टमाटर और आलू के दाम भी चढ़ गए. मानसून और उसके बाद कुछ सीमित अवधि को छोड़कर टमाटर 80 रुपये किलो के भाव बिकता रहा. दिसंबर में आपूर्ति प्रभावित होने की वजह से कुछ समय के लिए आलू भी 30 रुपये किलो पर पहुंच गया. हालांकि अब यह 20 से 25 रुपये प्रति किलो बिक रहा है.
राहत मिलनी शुरू हुई
सरकार ने प्याज की कीमतों पर अंकुश के प्रयास देर से शुरू किए. मिस्र, तुर्की और अफगानिस्तान से प्याज के आयात का अनुबंध किया गया. हालांकि आयातित प्याज अब भारत पहुंचने लगा है, इसके बावजूद कई बाजारों में प्याज का खुदरा दाम 130 रुपये किलो पर चल रहा है. टमाटर के दाम अब घटकर 30 से 40 रुपये किलो पर आ गए हैं. इनके अलावा लहसुन के दाम भी अब ऊंचाई पर हैं. 100 ग्राम लहसुन का दाम 30 से 40 रुपये पर चल रहा है.
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नवंबर में खुदरा महंगाई तीन साल के रिकॉर्ड हाई पर
महंगी सब्जियों की वजह से नवंबर में खुदरा मुद्रास्फीति तीन साल के उच्चस्तर 5.54 फीसदी पर पहुंच गई. हालांकि, ज्यादातर समय रिजर्व बैंक के चार फीसदी के संतोषजनक स्तर के दायरे में बनी रही. सरकार की ओर से टोमैटो, ओनियन, पोटैटो यानी ‘टॉप’ सब्जियों को 2018-19 के आम बजट में शीर्ष प्राथमिकता दी गई. पिछले साल नवंबर में ऑपरेशन ग्रीन को मंजूरी दी गई, जिसके तहत इन तीनों सब्जियों की कीमतों में उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए इनके उत्पादन और प्रोसेसिंग पर विशेष जोर दिया गया.