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कंपनियां अपने इश्यू लाने में कम से कम 8-12 महीने का समय लगाती हैं.
IPO News: पिछले महीने देश का सबसे बड़ा आईपीओ एलआईसी (LIC) का खुला था लेकिन कई वजहों से यह निवेशकों के लिए बेहतर नहीं साबित हो सका. हालांकि इसके बावजूद आईपीओ लाने को लेकर कंपनियां हतोत्साहित नहीं हुई हैं और इस साल की दूसरी छमाही जुलाई-दिसंबर 2022 में या अगले साल 2023 की शुरुआत में इश्यू ला सकती हैं. 10 से अधिक कंपनियों ने सेबी के पास अप्रैल-जून 2022 में प्रॉस्पेक्टस फाइल कर दिया है और 40 से अधिक कंपनियों को पहले ही सेबी से मंजूरी मिल चुकी है और 50 से अधिक कंपनियां सेबी की मंजूरी का इंतजार कर रही है.
वैश्विक राजनीतिक स्थिति, महंगाई दर के बढ़ते दबाव और ब्याज दरों में बढ़ोतरी के चलते भारत समेत दुनिया भर में आईपीओ एक्टिविटी प्रभावित हुई है. इस साल 2022 की बात करें तो आईपीओ की संख्या के मामले में भारत दुनिया भर में 49 इश्यू के साथ चौथे और जुटाई गए राशि के हिसाब से पांचवे स्थान पर है.
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आईपीओ लाने में 8-12 महीने का लगता है समय
- हाल ही में 50 से अधिक आईपीओ के टाइमलाइन को देखा जाए तो कंपनियां अपने इश्यू लाने में कम से कम 8-12 महीने का समय लगाती हैं. इसमें तीन से चार महीने औसतन तो सेबी से मंजूरी लेने में निकल जाते हैं.
- पिछले साल 2021 में 64 कंपनियों ने आईपीओ लाया था जिसमें से करीब 50 कंपनियों को डीआरएचपी (ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस) फाइल करने के औसतन तीन महीने के भीतर सेबी की मंजूरी मिली थी.
- सेबी से मंजूरी मिलने के बाद कंपनियां बेटर वैल्यूएशन और मार्केट की बेहतर स्थिति का इंतजार करती हैं. इसी कड़ी में पिछले साल करीब 25 फीसदी कंपनियों ने बेहतर मार्केट स्थितियों को देखते हुए फिर से डीआरएचपी फाइल किया था और मंजूरी पाने में सफल रही. पिछले साल सेंसेक्स ने 10 हजार अंकों का सफर तय किया था.
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- आईपीओ की तैयारी में समय-समय पर विभिन्न स्टेकहोल्डर्स की नियुक्ति करनी होती है ताकी कॉरपोरेट गवर्नेंस को बढ़ाया जा सके. इसके अलावा लीगल और कैपिटल स्ट्रक्चर प्रेजेंस पर काम करना होता है. कंपनियों को ऑडिट प्रोसेस, वित्तीय नतीजे पर काम करना होता है. इसके अलावा कंफर्ट लेटर प्रोसेस, लीगल/बैंक ड्यू डिलीजेंस से होकर गुजरना होता. फिर बुक बिल्डिंग और प्राइस डिस्कवरी यानी कि आईपीओ का प्राइस बैंड तय करना होता है. इन सब प्रक्रियाओं में 6-9 महीने लग जाते हैं.
IPO में पैसे लगाने से पहले इन बातों का रखें ख्याल
मार्केट में हालिया उतार-चढ़ाव (वोलैटिलिटी) और महंगाई व ब्याज दरों में बढ़ोतरी शॉर्ट टर्म की चुनौतियां हैं. निवेशकों को किसी आईपीओ में पैसे लगाने से पहले कंपनियों के बिजनेस मॉडल, कैश फ्लो पर ध्यान देना चाहिए. अगर कंपनियों का कारोबारी मॉडल, कैश फ्लो बेहतर है और आईपीओ आने के बाद कंपनी किस तरह आगे बढ़ेगी, इसे लेकर पॉजिटिव हैं तो इश्यू में पैसे लगा सकते हैं.
(Article: Sandip Khetan, Partner and Financial Accounting Advisory Services Leader, EY India और Veenit Surana, Associate Partner, Financial Accounting Advisory Services, EY India.)