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Adani Group in Sri Lanka : कोलंबो में श्रीलंका के विदेश मंत्री, IDFC के सीईओ और श्रीलंका में अमेरिकी राजदूत के साथ मीटिंग में मौजूद अडानी पोर्ट्स के सीईओ करन अडानी. (Photo : AP)
Adani Group eyeing opportunities in neighbouring countries after Sri Lanka port, says Karan Adani: श्रीलंका के कोलंबो में अडानी ग्रुप के नेतृत्व में बनाए जा रहे वेस्ट कंटेनर टर्मिनल प्रोजेक्ट के लिए अमेरिकी सरकार की तरफ से मिली फंडिंग ने भारत के इस दिग्गज बिजनेस ग्रुप की महत्वाकांक्षाओं को और मजबूत कर दिया है. इस सफलता से उत्साहित अडानी ग्रुप अब बांग्लादेश समेत भारत के कई और पड़ोसी देशों में अपने बिजनेस के विस्तार का मन बना रहा है. यह संकेत अडानी पोर्ट्स एंड एसईजेड के सीईओ करन अडानी ने दिए हैं. करन ने कहा है कि श्रीलंका के प्रोजेक्ट के लिए अमेरिकी सरकार की फंडिंग ने अडानी ग्रुप में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के भरोसे की पुष्टि की है.
अमेरिका कर रहा 4600 करोड़ रुपये की फंडिंग
अमेरिकी सरकार ने श्रीलंका में अडानी ग्रुप की अगुवाई में बन रहे कंटेनर टर्मिनल के लिए इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन (IDFC) के जरिए 533 मिलियन डॉलर यानी करीब 4600 करोड़ रुपये की फंडिंग उपलब्ध कराई है. इस फंडिंग से उत्साहित अडानी ग्रुप के प्रमुख गौतम अडानी के बेटे करन ने कोलंबों में ब्लूमबर्ग से कहा कि श्रीलंका और इजरायल के मौजूदा प्रोजेक्ट्स के अलावा अब उनका समूह दक्षिण एशिया और पूर्वी अफ्रीका के कई अन्य देशों में भी बिजनेस के विस्तार की संभावनाओं पर विचार कर रहा है. इनमें बांग्लादेश, तंजानिया और वियतनाम जैसे देश शामिल हैं. ब्लूमबर्ग के मुताबिक करन ने यह बात पिछले हफ्ते कोलंबो में श्रीलंका के सरकारी अधिकारियों और अमेरिकी राजनयिकों की मौजूदगी में कही.
अडानी ग्रुप के लिए क्यों अहम है अमेरिकी फंडिंग
अमेरिकी फंडिंग का एलान इस साल अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद कॉरपोरेट फ्रॉड समेत तरह-तरह के आरोपों का सामना कर चुके अडानी ग्रुप के लिए काफी राहत देने वाली खबर है. अडानी ग्रुप इन आरोपों को बार-बार गलत और भारत पर हमले की साजिश का हिस्सा बता चुका है. भारत के कई विपक्षी दल भी आरोप लगाते हैं कि अडानी ग्रुप के प्रमुख गौतम अडानी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बेहद करीबी रिश्ते हैं, जिनका लाभ अडानी ग्रुप को मिलता है. हालांकि पीएम मोदी की भारतीय जनता पार्टी इन आरोपों का मजबूती से खंडन करती रही है.
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अडानी ग्रुप को भारत से बाहर अपने पोर्ट बिजनेस का विस्तार करने की कोशिशों में पिछले कुछ सालों के दौरान मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा है. म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद अडानी ग्रुप को वहां एक पोर्ट बनाने की योजना से पीछे हटना पड़ा था. पिछले साल श्रीलंका में भी अडानी ग्रुप को विरोध प्रदर्शनों और राजनीतिक आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था. विरोधियों का कहना था कि श्रीलंका में अडानी ग्रुप के प्रोजेक्ट में पादर्शिता नहीं है और इन्हें भारत की तरफ से थोपा जा रहा है. हालांकि भारत सरकार और अडानी ग्रुप इस तरह के आरोपों को गलत बताते रहे हैं.
चीनी प्रभाव को कम करने की कोशिश?
इस फंडिंग को गौतम अडानी के विशाल बिजनेस साम्राज्य के प्रति अमेरिकी सरकार के समर्थन के तौर पर भी देखा जा रहा है. कुछ जानकार इसे हिंद महासागर में चीन के बढ़ते नौसैनिक प्रभाव को कम करने की कोशिश के तौर पर भी देख रहे हैं. दुनिया का एक-तिहाई बल्क कार्गो ट्रैफिक और दो-तिहाई ऑयल शिपमेंट इसी इलाके से होकर गुजरता है. मुंबई आधारित टीसीजी एसेट मैनेजमेंट कंपनी के चीफ इनवेस्टमेंट ऑफिसर चक्री लोकप्रिय मानते हैं कि बंदरगाहों के मामले में अडानी ग्रुप की महत्वाकांक्षा दरअसल एक रणनीतिक दांव (strategic play), जिससे भारत को श्रीलंका से लेकर पाकिस्तान तक फैले कई चीनी बंदरगाहों के सिलसिले का मुकाबला करने में मदद मिलेगी. आईआईएफएल सिक्योरिटीज (IIFL Securities Ltd) के डायरेक्टर संजीव भसीन का मानना है कि चीन के अलावा अन्य विकल्पों की तलाश कर रही दुनिया में अडानी ग्रुप का विस्तार भी काफी हद तक चीनी स्टाइल में ही हो रहा है.
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लंबा दांव खेल रहा है अडानी ग्रुप : एक्सपर्ट
देश के सबसे बड़े पोर्ट ऑपरेटर अडानी पोर्ट्स के पास भारत के 14 डोमेस्टिक टर्मिनल हैं, जिनकी कुल क्षमता 600 मिलिटन टन है. लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में अब भी इसकी हैसियत कुछ खास नहीं है. चीन के प्रभाव को चुनौती देने के लिए इसे अपने बिजनेस में कई गुना इजाफा करना होगा. यूएस काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के मुताबिक चीन का दूसरे देशों के 90 से ज्यादा पोर्ट में निवेश है, जिनमें से 13 पोर्ट्स में चीन की मेजॉरिटी ओनरशिप है. वॉशिंगटन के विल्सन सेंटर से जुड़े साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर माइकल कुगलमैन का कहना है कि चीन इस मामले में इतना आगे बढ़ चुका है कि आने वाले दिनों में अडानी या किसी भी और ग्रुप के लिए उसे टक्कर दे पाना मुश्किल लगता है, लेकिन अडानी और उनकी कंपनियां काफी लंबा दांव खेल रहे हैं. वे दक्षिण एशिया और उसके बाहर अपने निवेश का धीमी रफ्तार से लेकिन लगातार विस्तार करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं.