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घरेलू इक्विटी बेंचमार्क इंडेक्स एनएसई की सब्सिडियरी NSE International Exchange ने भारतीय निवेशकों के लिए अमेरिकी शेयरों की ट्रेडिंग 3 मार्च से शुरू किया है.
Buying US Stocks: जिस तरह से आप रिलायंस, इंफोसिस और टाटा मोटर्स जैसे शेयरों की खरीदारी करते हैं, वैसे ही अब अमेजन, गूगल और टेस्ला जैसी अमेरिकी कंपनियों के भी स्टॉक्स आसानी से खरीद सकते हैं. पिछले चार वर्षों में अमेरिकी टेक शेयरों में शानदार तेजी देखने को मिली है और अब भारतीय निवेशक आसानी से इस तेजी का फायदा उठा सकते हैं. घरेलू इक्विटी बेंचमार्क इंडेक्स एनएसई की सब्सिडियरी NSE International Exchange ने भारतीय निवेशकों के लिए इसकी ट्रेडिंग 3 मार्च से शुरू किया है.
एनएसई इंटरनेशनल एक्सचेंज गुजरात के गिफ्ट सिटी में है और अमेरिकी शेयरों की खरीदारी अनस्पांसर्ड डिपॉजिटरी रिसीट्स यानी डीआर के जरिए होगी. गिफ्ट सिटी आईएफएसी भारत में विदेशी निवेश को आकर्षित करने और वित्तीय सेवाओं के निर्यात के लिए बनाई गई एक स्पेशनल इकनॉमिक जोन (SEZ) है.
कैसे शुरू कर सकते हैं अमेरिकी शेयरों की खरीदारी
- एनएसई आईएफएसी के पास रजिस्टर्ड ब्रोकर्स के यहां अपना ट्रेडिंग और डीमैट खाता खुलवा लें. यहां सभी रजिस्टर्ड ब्रोकर्स की पूरी लिस्ट देख सकते हैं-
- इसके बाद अपने स्थानीय बैंक खाते से एनएसई आईएफएससी रजिस्टर्ड ब्रोकर्स बैंक खाते में पैसे भेजें.
- ब्रोकर के खाते में पैसे आने के बाद अब आप आसानी से एनएसई आईएफएससी यूएस स्टॉक्स खरीद सकते हैं.
- भारतीय निवेशक इस प्लेटफॉर्म के जरिए एप्पल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन, टेस्ला, अल्फाबेट, मेटा और वालमार्ट जैसी कंपनियों में पैसे लगा सकते हैं. जिन कंपनियों के स्टॉक्स खरीद सकते हैं, उनकी पूरी सूची यहां देख सकते हैं
अमेरिकी-स्टॉक्स-की-सूचीDownload
- ट्रेडिंग भारतीय समयानुसार रात 8 बजे से 2.:30 AM (रात ढाई बजे) तक होगी.
- हर साल अधिकतम 2.5 लाख डॉलर (191.14 लाख रुपये) तक ही निवेश कर सकेंगे क्योंकि गिफ्ट में पैसे भेजना एक तरह एलआरएस (लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम) का उपयोग करके भारत से बाहर पैसे ट्रांसफर के रूप में माना जाता है. आरबीआई ने इसकी सीमा 2.5 लाख डॉलर सालाना तय किया है. इसके अलावा एलआरएस के जरिए मार्जिन वाले प्रोडक्ट नहीं खरीद सकते.
- ट्रेडिंग अमेरिकी डॉलर में होगी.
पहले भी कर सकते थे निवेश, अब हुआ ये बदलाव
अमेरिकी शेयरों में पहले भी भारतीय खरीदारी कर सकते थे लेकिन कुछ दिक्कतें भी थीं. जैसे कि अंतरराष्ट्रीय ब्रोकर्स को पैसे भेजने पर 300-1000 रुपये तक का चार्ज लगता है. इसके अलावा पैसे वापस पाने में लागत और भी अधिक हो सकती है. इसके चलते छोटे निवेशकों का मुनाफा घट जाता है. वहीं अधिकतर भारतीय प्लेटफॉर्म अमेरिकी ब्रोकर्स के साथ साझेदारी करते हैं लेकिन यहां पर निवेशकों को भरोसा नहीं हो पाता है क्योंकि प्लेटफॉर्म और विदेशी ब्रोकर दोनों ही भारतीय रेगुलेटर के अधिकार क्षेत्र में नहीं है. ऐसे में अगर कोई दिक्कत आती है तो अंतरराष्ट्रीय रेगुलेटर के साथ काम करना चुनौती भरा हो सकता है.
एनएसई आईएफएससी ने इन दिक्कतों को दूर करने का तरीका खोजा है. गिफ्ट में पैसे भेजते समय रेमिटेंस के एक छोर पर भारतीय बैंक होते हैं, अब अगर दूसरी तरफ भी कोई भारतीय बैंक हो जाए तो लागत कम हो सकती है. इसके अलावा एनएसई आईएफएससी के साथ ट्रस्ट की भी समस्या नहीं है और ट्रेडिंग एक्टिविटीज आईएफएससी प्राधिकरण के नियामकीय दायरे में होगी.
अनस्पांसर्ड डीआर क्या है?
किसी देश में लिस्टेड कंपनी दूसरे देश से निवेशकों को आकर्षित करने के लिए डिपॉजिटरी रसीद (DR) जारी करती है. यदि कंपनी डीआर की पेशकश खुद करती है तो यह स्पान्सर्ड डीआर है और यदि इसमें कंपनी शामिल नहीं है तो इसे अनस्पांसर्ड डीआर कहते हैं. भारत से इंफोसिस, आईसीआईसीआई बैंक, विप्रो जैसी कंपनियां डीआर के जरिए अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज में ट्रेड होती हैं. एनएसई आईएफएससी पर ट्रेड होने वाले डीआर अनस्पान्सर्ड हैं. NSE IFSC ने इसके लिए एक अंतरराष्ट्रीय कस्टोडियन के साथ साझेदारी किया है जो NSE IFSC की तरफ से अमेरिका में शेयरों को स्टोर करेगी और फिर कस्टोडियन भारत में NSE IFSC डिपॉजिटरी खाते में डीआर जारी करेगी. इसके बाद इनकी NSE IFSC पर ट्रेडिंग शुरू हो जाएगी.
(Input: NSC IFSC, Zerodha)