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बजट से मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री की क्या हैं उम्मीदें
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हेल्थ केयर सेक्टर का सबसे बड़ा पिलर मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के क्षेत्र में सरकार का इंपोर्ट बिल बढ़कर करीब 39 हजार करोड़ रुपये हो गया है. इससे साफ है कि मेडिकल डिवाइसेस के लिए हेल्थ केयर इंडस्ट्री की निर्भरता विदेशी प्रोडक्ट पर बढ़ती जा रही है. मेडिकल डिवाइस पर इंपोर्ट ड्यूटी कम होने से इसे लगातार बढ़ावा मिल रहा है. घरेलू मेडिकल डिवाइस मैन्युफैक्चरर्स का कहना है कि इससे न सिर्फ घरेलू इंडस्ट्री की हालत दिन प्रति दिन खराब होती जा रही है, कई मैन्युफैक्चरर अब दूसरे कारोबार की ओर भी शिफ्ट होने लगे हैं. वहीं, बेहद सस्ते में विदेशी उपकरणों से मरीजों की सुरक्षा को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. उनका कहना है कि जिस तरह से घरेलू इलेक्ट्रॉनिक और मोबाइल फोन इंडस्ट्री को पिछले 2 साल में बूस्ट मिला है, सरकार को वहीं पॉलिसी घरेलू मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री को लेकर भी अपनानी चाहिए.
सरकार की नीतियों से नुकसान
एसोसिएशन ऑफ मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के फोरम को-ऑर्डिनेटर राजीव नाथ का कहना है कि मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री को लेकर सरकार की नीतियां कमजोर रही हैं. इसका खामियाजा देश में मौजूद मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री को भुगतना पड़ रहा है. मेडिकल डिवाइस मार्केट में घरेलू कंपनियों की हिस्सेदारी लगातार घटती जा रही है. इस बार उम्मीद है कि बजट में मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के लिए कुछ बड़े एलान हो सकते हैं, जिससे इस सेक्टर में मेक इन इंडिया को बढ़ावा किमल सके.
राजीव नाथ का कहना है कि अभी मेडिकल डिवाइस पर इंपोर्ट ड्यूटी 0-7.5 फीसदी के बीच है. इंपोर्ट ड्यूटी कम होने से विदेशी प्रोडक्ट की उपलब्धता सस्ते में हो जाती है. चीन और दूसरे देश ड्यूटी कम होने का फायदा उठाकर अपना सस्ता माल भारत को बेंच देते हैं. इससे हेल्थ केयर इंडस्ट्री में घरेलू प्रोडक्ट की बजाए विदेशी प्रोडक्ट की मांग ज्यादा है. हालांकि प्रोडक्ट सस्ता होने से पेशेंट सेफ्टी को लेकर सवाल उठने लाजिमी हैं.
क्या है इंडस्ट्री की डिमांड
इंडस्ट्री की यह डिमांड है कि विदेशी प्रोडक्ट पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाकर 15 फीसदी किया जाए. इससे बाहर से आने वाले प्रोडक्ट महंगे होंगे, जिससे घरेलू प्रोडक्ट की मांग बढ़ेगी. वहीं घरेलू इंडस्ट्री जो रॉ मटेरियल इस्तेमाल कर रही है, उस पर ड्यूटी मौजूदा स्तर 2.5 फीसदी पर बरकरार रखी जाए. जैसे जैसे रॉ मटेरियल घरेलू स्तर पर बनने लगे, इसमें उसी रेश्यो में धीरे धीरे बढ़ोत्तरी की जाए. विदेशी इक्यूपमेंट की क्वालिटी की भी जांच हो, क्योंकि सस्ता होने की वजह से इनकी डिमांड ज्यादा रहती है. वहीं, बेहतर क्वालिटी होने के बाद भी घरेलू कंपनियों को डिमांड नहीं मिल रही है.
मोबाइल इंडस्ट्री का दिया उदाहरण
मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री ने इलेक्ट्रॉनिक और मोबाइल इंडस्ट्री का उदाहरण देते हुए कहा कि पिछले 2 साल में कस्टम ड्यूटी 15 से 20 फीसदी तक बढ़ने से कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक और मोबाइल फोन मैन्युफैक्चरिंग को घरेलू स्तर पर बड़ा बूस्ट मिला है. अगर यही पॉलिसी मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के लिए भी लागू हो तो मेक इन इंडिया को भी तगड़ा बूस्ट मिलेगा, वहीं घरेलू इंडस्ट्री की सेहत सुधरेगी.