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मोदी के नए भारत में बदलने लगा है हवा का रुख, 4500 करोड़ डॉलर पर 'संकट के बादल'

जिन विदेशी निवेशकों ने पहले मोदी सरकार पर भरोसा दिखाया, वही अब बिकवाल हो गए हैं.

जिन विदेशी निवेशकों ने पहले मोदी सरकार पर भरोसा दिखाया, वही अब बिकवाल हो गए हैं.

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Bloomberg
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मोदी के नए भारत में बदलने लगा है हवा का रुख, 4500 करोड़ डॉलर पर 'संकट के बादल'

जिन विदेशी निवेशकों ने पहले मोदी सरकार पर भरोसा दिखाया, वही अब बिकवाल हो गए हैं.

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PM Modi Birthday Special: जब मोदी सरकार साल 2014 में पहली बार सत्ता में आई थी तो जनता के साथ साथ निवेशकों को भी उनसे बड़ी उम्मीद जगी थी. एक ऐसा माहौल बना था कि देश की अर्थव्यवस्था नई उंचाइयों पर पहुंचेगी. इसी का परिणाम था कि सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान बाजार में जमकर निवेश हुआ. लेकिन अचानक से माहौल तग बउल गया जब सरकार के दूसरे कार्यकाल में पहला पूर्ण बजट पेश हुआ. जो विदेशी निवेशक भारत के बाजार में जमकर पैसा लगा रहे थे, अचानक बिकवाल बन गए. जून के बाद से अबतक विदेशी निवेशकों ने करीब 450 करोड़ डॉलर बाजार से निकाल लिए हैं. यह 1999 के बाद से 3 महीने के दौरान सबसे बड़ी निकासी है.

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पिछले 6 साल में अंधाधुंध हुआ था निवेश

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार मोदी सरकार से उम्मीदें बढ़ने के चलते पिछले 6 साल में विदेशी निवेशकों ने शेयर बाजार में करीब 4500 करोड़ डॉलर का निवेश किया. लेकि अब हवा बदली लग रही है. पिछले 3 महीने से कुछ ज्यादा समय में ही इसका करीब 10 फीसदी यानी 450 करोड़ डॉलर उन्होंने बाजार से निकाल लिए. लंदन के मुख्य निवेश रणनीतिकार, सलमान अहमद के अनुसार 2014 से पहले मोदी को लेकर निवेशकों में जिस तरह का उत्साह था, अब वह पहले से कमजोर हुआ है.

निवेशकों का क्यों घटा भरोसा

रिपोर्ट के अनुसार देश की जीडीपी ग्रोथ लगातार सुस्त है और जून तिमाही में यह 6 साल के लो 5 फीसदी पर आ गई. देश में कार सेल्स में कई महीनों से गिरावट है और आटो मोबाइल इंडस्ट्री की हालत ठीक नहीं है. देश में नए निवेश में कमी आई है. बेरोजगारी की दर पिछले 45 साल में सबसे ज्यादा है. देश के बैंकिंग सिस्टम पर एनपीए का साया बना हुआ है. निर्यात में कमी आई है. रुपये में भी कमजोरी बनी है.

रिफॉर्म की गति धीमी

हालांकि ऐसा नहीं है कि मोदी सरकार अर्थव्यवस्था के कमजोर होने पर हाथ पर हाथ रखकर बैठी है. लेकिन निवेशकों का कहना है कि कई क्षेत्र में सुधारों की जरूरत है. सरकार के पास रिफॉर्म की लंबी लिस्ट है, लेकिन इस पर धीमी गति से काम होने के चलते अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है. मसलन लेबर रिफॉर्म ला और राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियों में स्टेक सेल. चिंता की बात यह है कि अगर स्लोडाउन बना रहा तो भारत के 2 टिलियल डॉलर यानी 2 लाख करोड़ के शेयर बाजार पर बुरा असर होगा. वहीं, देश में बेरोजगारी और बढ़ सकती है.

बीजेपी लॉमेकर ने ही उठाए थे सवाल

बीजेपी लॉमेकर सुब्रमण्यम स्वामी ने हाल ही में ब्लूमबर्ग को दिए गए इंटरव्यू में भी अर्थव्यवस्था को लेकर बड़ा बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि अगर सरकार इस मसले पर जल्द कुछ नहीं करती है तो अगले 6 महीने के दौरान जनता सरकार से सवाल पूछना शुरू कर देगी. यह चुनौती भरा माहौल होगा.

क्रिटिक्स का क्या है कहना

हालांकि मौजूदा समय में जितनी समस्याएं हैं, उनमें से कई मोदी सरकार के पहले के हैं. लेकिन क्रिटिक्स का कहना है कि मौजूदा सरकार अभी जिस तरह से अर्थव्यवस्था हैंडल कर रही है, वह निराश करने वाला है. 2016 में मोदी सरकार ने नोटबंदी कर दी. वहीं, 2017 में जीएसटी लागू किया गया. इससे अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा. लैंड एंड लेबर रिफॉर्म लॉ भी अबतक निराश करने वाला रहा है.