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GST के दायरे में आया पेट्रोल-डीजल तो 75 रु/ली तक आ सकते हैं भाव, रेवेन्यू भी नहीं होगा कम: SBI रिपोर्ट

Petrol and Diesel Price: पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स केंद्र व राज्यों के लिए राजस्व का प्रमुख स्रोत है, जिसकी वजह से सरकारें इसे जीएसटी के दायरे में लाने से हिचक रही हैं.

Petrol and Diesel Price: पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स केंद्र व राज्यों के लिए राजस्व का प्रमुख स्रोत है, जिसकी वजह से सरकारें इसे जीएसटी के दायरे में लाने से हिचक रही हैं.

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Jeevan Deep Vishawakarma
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अगर पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया जाता है तो देश भर में पेट्रोल 75 रुपये प्रति लीटर और डीजल 68 रुपये प्रति लीटर बिक सकता है.

Petrol and Diesel Price: पेट्रोल और डीजल की महंगाई से आम लोगों की जेब हल्की हो रही है. देश के कई स्थानों पर तो पेट्रोल 100 रुपये प्रति लीटर के स्तर को पार कर गया. ऐसे में इसके भाव कम करने के लिए इसे जीएसटी (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) के दायरे में लाने का सुझाव दिया जा रहा है लेकिन यह केंद्र व राज्यों के लिए राजस्व का प्रमुख स्रोत है, जिसकी वजह से सरकारें इसे जीएसटी के दायरे में लाने से हिचक रही हैं. हालांकि एसबीआई की इकोनॉमिक रिसर्च डिपार्टमेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स को जीएसटी के दायरे में लाया जाए तो केंद्र और राज्यों को राजस्व में जीडीपी के महज 0.4 फीसदी के बराबर करीब 1 लाख करोड़ की कमी आएगी. अगर जीएसटी के दायरे में पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स को लाया गया तो देश भर में पेट्रोल के भाव 75 रुपये और डीजल के भाव 68 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच जाएंगे. इस रिपोर्ट को एसबीआई की ग्रुप चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर डॉ सौम्या कांति घोष ने तैयार किया है.

इस तरह कम हो सकते हैं पेट्रोल और डीजल के भाव

एसबीआई की रिसर्च टीम ने पेट्रोल और डीजल के भाव को कम करने के लिए एक आकलन पेश किया है. एसबीआई ने सरकार को इसे रिकमंड किया है और कहा है कि इससे पेट्रोल के भाव 75 रुपये प्रति लीटर और डीजल के भाव 68 रुपये प्रति लीटर हो सकते हैं. इसके अलावा एसबीआई की रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि अगले वित्त वर्ष में सालाना आधार पर पेट्रोल की खपत 10 फीसदी और डीजल की खपत 15 फीसदी की दर से बढ़ सकती है.

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  • क्रूड प्राइस- 60 डॉलर प्रति बैरल (1 बैरल=159 लीटर)
  • रुपये-डॉलर का एक्सचेंज रेट- 73 रुपये
  • ट्रांसपोर्टेशन चार्ज- डीजल के लिए 7.25 रुपये और पेट्रोल के लिए 3.82 रुपये
  • डीलर कमीशन- 2.53 रुपये डीजल का और 3.67 रुपये पेट्रोल का
  • सेस- डीजल का 20 रुपये और पेट्रोल के लिए 30 रुपये (केंद्र और राज्य की बराबर हिस्सेदारी)
  • जीएसटी रेट- 28 फीसदी (केंद्र को 14 फीसदी और राज्य को 14 फीसदी)

कटौती के बाद खपत बढ़ने से राजस्व की भरपाई

एसबीआई की रिसर्च टीम ने अपने आकलन में पाया कि अगर पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया जाता है तो देश भर में इनके भाव में कमी की जा सकती है. इसके अलावा 75 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल और 68 रुपये प्रति लीटर डीजल के भाव पर गणना करें तो केंद्र और राज्यों को राजस्व में बजट एस्टीमेट्स से सिर्फ 1 लाख करोड़ रुपये की कमी आएगी जो जीडीपी के 0.4 फीसदी के बराबर है. राजस्व में कमी के आकलन में रिसर्च टीम ने कीमतों में कटौती के बाद बढ़ी खपत को भी गणना में लिया है यानी कि अगर कीमतों में गिरावट आती है तो जितनी खपत बढ़ेगी, उससे जीएसटी कटौती से राजस्व में गिरावट की भरपाई होगी.

क्रूड ऑयल के भाव में उतार-चढ़ाव से इस तरह प्रभाव

एसबीआई की रिसर्च टीम के आकलन के मुताबिक प्रति बैरल क्रूड ऑयल के भाव में अगर 10 डॉलर की कमी होती है तो केंद्र और राज्यों के राजस्व में 18 हजार करोड़ रुपये की बढ़ोतरी होगी, अगर पेट्रोल के भाव 75 रुपये और डीजल के भाव 68 रुपये पर स्थिर रखे जाते हैं यानी कि उपभोक्ताओं को क्रूड ऑयल में गिरावट का फायदा नहीं देने पर सरकार को यह बचत होगी. इसके विपरीत अगर क्रूड ऑयल के भाव 10 डॉलर प्रति बैरल अधिक हो जाते हैं और पेट्रोल-डीजल के भाव नहीं बढ़ाए जाते हैं तो सरकार के राजस्व में सिर्फ 9 हजार करोड़ रुपये की बढ़ोतरी होगी. ऐसे में एसबीआई की रिसर्च टीम ने सुझाव दिया है कि सरकार को एक ऑयल स्टैबिलाइजेशन फंड तैयार करना चाहिए जिसका इस्तेमाल क्रूड ऑयल के भाव बढ़ने पर बिना कंज्यूमर्स पर भार डाले रेवेन्यू लॉस की भरपाई करने में किया जा सकता है.

सबसे अधिक नुकसान महाराष्ट्र, कुछ राज्यों को फायदा

अगर पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया जाता है तो राजस्व का सबसे अधिक नुकसान महाराष्ट्र को हो सकता है. एसबीआई की इकोनॉमिक रिसर्च टीम के आकलन के मुताबिक महाराष्ट्र को 10,424 करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है. इसके अलावा राजस्थान को 6388 करोड़ और मध्य प्रदेश के रेवेन्यू में 5489 करोड़ रुपये की कमी आ सकती है.

वहीं दूसरी तरफ कुछ राज्यों को इससे फायदा भी हो सकता है. उत्तर प्रदेश के रेवेन्यू में 2419 करोड़, हरियाणा के 1832 करोड़ और पश्चिम बंगाल के राजस्व में 1746 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हो सकती है.

हर राज्य का अपना टैक्स स्ट्रक्चर

पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स पर टैक्स के लिए हर राज्य का अपना स्ट्रक्चर है. राज्य अपनी जरूरत के मुताबिक ad valorem tax, सेस, एक्स्ट्रा वैट/सरचार्ज लगाती है. इन सभी टैक्सेज को क्रूड प्राइस, ट्रांसपोर्टेशन चार्ज, डीलर कमीशन और एक्साइज ड्यूटी को जोड़ने के बाद लगाया जाता है. एक्साइज ड्यूटी केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है और इसकी दर देश भर में समान होती है. Ad Valorem Tax टैक्सेशन का एक रूप है जो किसी संपत्ति या ट्रांजैक्शन की वैल्यू के आधार पर तय की जाती है जैसे कि सेल्स टैक्स या रीयल एस्टेट पर प्रॉपर्टी टैक्स. इस प्रकार के कई टैक्सेज के चलते भारत में पेट्रोलियम प्रॉडक्ट की कीमतें दुनिया में सबसे अधिक देशों की श्रेणी में है. दिलचस्प बात यह है कि दुनिया भर में पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स के भाव तय करने के लिए किसी भी देश में पारदर्शी व्यवस्था नहीं है. हालांकि केंद्र और राज्य स्तर पर टैक्सेज का सिस्टम अलग-अलग होने के चलते पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स की कीमतों का आकलन करना बहुत कठिन काम हो जाता है.