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जीएसटी लागू करते समय केंद्र ने राज्यों को आश्वस्त किया था कि जुलाई 2022 तक केंद्र राज्यों को जीएसटी लागू करने पर टैक्स कलेक्शन में आई गिरावट की भरपाई करेगा.
महाराष्ट्र, तमिलनाडु और दिल्ली के बाद अब पंजाब ने भी केंद्र सरकार द्वारा GST को लेकर सुझाए गए फॉर्मूले के तहत पहले विकल्प की मंजूरी पर हामी भर दी है. चालू वित्त वर्ष 2020-21 में वस्तु एवं सेवा कर (GST) में गिरावट की भरपाई को लेकर केंद्र सरकार ने राज्यों को विकल्प सुझाए थे जिसे लेकर केंद्र और राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के बीच लगातार बातचीत चल रही है. माना जा रहा है कि जिन राज्यों ने अभी तक कोई विकल्प नहीं चुना है, वे आने वाले दिनों में पहला विकल्प चुन सकते हैं. केंद्र सरकार ने इस विकल्प के तहत 2.16 लाख करोड़ का प्रावधान किया है.
पश्चिम बंगाल अभी ने अभी तक स्पष्ट किया रुख
केंद्र सरकार ने राज्यों को जीएसटी कलेक्शन में आई गिरावट को लेकर दो विकल्प सुझाए थे जिसमें से राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को एक चुनने को कहा गया है. अधिकतर राज्य पहले विकल्प के लिए हामी भर चुके हैं. हालांकि अभी तक पश्चिम बंगाल ने इस मसले पर चुप्पी साध रखी है. जीएसटी क्षतिपूर्ति के मसले को लेकर पिछले सोमवार को 42वीं जीएसटी काउंसिल का सत्र बढ़ाया गया था, उसके बाद भी बंगाल ने अभी तक अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है.
पंजाब ने पहले कहा था संविधान विरुद्ध फैसला
पंजाब ने पहले दोनों विकल्पों में से किसी एक को चुनने इनकार कर दिया था. पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने दोनों विकल्पों को स्पष्ट रूप से संवैधानिक उल्लंघन का मामला बताया. उस समय तक केंद्र सरकार द्वारा सुझाए गए विकल्प के मुताबिक जीएसटी क्षतिपूर्ति के लिए कर्ज उठाना था. हालांकि अब इस मामले में केंद्र सरकार ने राज्यों को राहत दी है.
जीएसटी लागू करते समय केंद्र ने राज्यों को आश्वस्त किया था कि जुलाई 2022 तक केंद्र राज्यों को जीएसटी लागू करने पर टैक्स कलेक्शन में आई गिरावट की भरपाई करेगा और इसमें हर साल 14 फीसदी की राजस्व बढ़ोतरी के आधार पर आकलन किया जाएगा. राज्यों की आपत्ति इस बात को लेकर है कि अब केंद्र सरकार जो विकल्प सुझा रही है, उसके तहत स्पेशल विंडो के कर्ज पर लगने वाले ब्याज को जीएसटी कंपेनसेशन सेस से भरपाई हो जाएगी लेकिन बाजार से उठाए गए कर्ज का भार राज्यों को ही वहन करना होगा.
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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राज्यों को लिखा था पत्र
पिछले हफ्ते राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को लिखे पत्र में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि उन्हें पहले विकल्प (स्पेशल विंडो और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की जीडीपी के 0.5 फीसदी के बराबर अतिरिक्त कर्ज) के तहत कुल 2.16 लाख करोड़ रुपये बिना शर्त उपलब्ध कराया जाएगा.
इस विकल्प के तहत केंद्र सरकार केंद्र सरकार ने जीएसटी लागू करने को लेकर सभी राज्यों द्वारा लिए जाने वाले कर्ज की ऊपरी सीमा को 1.1 लाख करोड़ रखा है. इसमें कोरोना महामारी के कारण जीएसटी संग्रह में गिरावट आई और अब यह 2.35 लाख करोड़ का हो गया है. वित्त मंत्री ने अपने पत्र में लिखा है कि 2.35 लाख करोड़ की गिरावट में 1.83 लाख करोड़ का भुगतान इस वित्तीय वर्ष में होगा और शेष अगले वर्ष. इस प्रकार केंद्र सरकार का कहना है कि 2.16 लाख करोड़ का मुआवजा इस वित्तीय वर्ष में राज्यों की जरूरत से भी अधिक हैं.
क्या है केरल की आपत्ति?
केरल चाहता है कि 1.83 लाख करोड़ की जीएसटी क्षतिपूर्ति का पूरा भार केंद्र वहन करे. इसमें 1.1 लाख करोड़ जीएसटी लागू करने और 73 हजार करोड़ कोरोना महामारी के कारण आई गिरावट के कारण है. केरल के वित्त मंत्री का कहना है कि अधिक कर्ज उठाने पर केंद्र की वित्तीय सेहत पर खास प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन राज्यों के लिए भविष्य में उनकी कर्ज क्षमता को सीमित कर सकता है.
इन राज्यों ने चुना है पहला विकल्प
केंद्र सरकार द्वारा सुझाए गए विकल्पों में अधिकतर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने पहला विकल्प चुना है. इसमें आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम , नागालैंड, ओडिसा, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, तमिलनाडु, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर शामिल हैं.
इन राज्यों ने अभी तक नहीं चुना कोई विकल्प
देश के अधिकतर राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों ने केंद्र सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है. हालांकि अभी तक कुछ राज्यों ने अभी तक जीएसटी परिषद के पास आधिकारिक तौर पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है. इसमें झारखंड, केरल, पंजाब, राजस्थान, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ शामिल हैं. इसमें से पंजाब ने आज पहले विकल्प के चयन के लिए हामी भरी है.
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