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Rakhi 2020 Date: इस रक्षाबंधन देश में मेड इन इंडिया राखियों की धूम है. बॉयकॉट चाइना मुहिम के चलते बाजार से चीनी राखियां नदारद हैं. लिहाजा इस बार रक्षाबंधन के मौके पर होने वाले कारोबार में चीन की हिस्सेदारी न के बराबर होगी. कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) के मुताबिक, कोरोनावायरस महामारी के बावजूद इस बार रक्षाबंधन पर 6000-6500 करोड़ रुपये का कारोबार होने का अनुमान है. कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल का कहना है कि कोविड19 के डर के कारण बाजार में हर साल के मुकाबले लोगों की आवाजाही कम है. लेकिन इसके बावजूद इस बार कारोबार अच्छा रहेगा क्योंकि चीनी राखियों के रहने से होने वाला नुकसान नहीं होगा.
चीन को लगेगा 4000 करोड़ का झटका
उन्होंने यह भी कहा कि रक्षाबंधन पर एक अनुमान के अनुसार देशभर में लगभग 50 करोड़ से ज्यादा राखियां खरीदी जाती हैं. प्रतिवर्ष लगभग 6 हजार करोड़ रुपये का राखी का व्यापार होता है, जिसमें पिछले कई वर्षों से चीन लगभग 4 हजार करोड़ रुपये की राखी अथवा राखी का सामान जैसे फोम, मोती, बूंदें, धागा, सजावटी थाली आदि भारत को निर्यात करता आया है. इस बार कैट की ‘हिन्दुस्तानी राखी’ मुहिम की घोषणा के बाद चीन को 4 हजार करोड़ रुपये के व्यापार का झटका लगना तय है.
खंडेलवाल के मुताबिक, इस बार चीन से एक भी राखी नहीं आई है न ही राखी बनाने वाला कोई सामान. बाजार से भी चीनी राखियां नदारद हैं. लिहाजा इस बार रक्षाबंधन पर हुए कारोबार का पूरा पैसा देश में ही रहेगा, चीन में एक भी पैसा नहीं पहुंचेगा.
मोदी राखी है ट्रेंड में
इस साल देश में जो राखियां बाजार में दिख रही हैं, उनमें मोदी राखी, ‘बीज राखी’, मिट्टी से बनी राखियां, दाल से बनी राखियां, चावल, गेहूं और अनाज के अन्य सामानों से बनी राखियां, मधुबनी पेंटिंग से बनी राखियां, हस्तकला की वस्तुओं से बनी राखियां, आदिवासी वस्तुओं से बनी राखियां आदि शामिल हैं. इसके अलावा कैट ने राफेल राखी और वैदिक राखी भी जारी की है. खंडेलवाल ने कहा कि इस बार बाजार में छोटी राखियां बिक रही हैं, जिनकी कीमत 10 से 50 रुपये तक है. बड़ी राखियां काफी कम हैं.
इन लोगों को मिला रोजगार
चीनी उत्पादों के बहिष्कार के अभियान ने देश भर में भारतीय व्यापार में अनेक नए बड़े अवसर प्रदान किए हैं. राखी के इस त्योहार पर देश के लगभग 250 शहरों में कारीगरों, स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं, घरों व आंगनवाड़ी में काम करने वाली महिलाओं ने बड़े पैमाने पर कैट के सहयोग से राखियां बनाई हैं. इससे उन्हें न केवल रोजगार मिला बल्कि अकुशल महिलाओं को अर्ध-कुशल श्रमिकों में परिवर्तित करके उन्हें अधिक से अधिक सजावटी, सुंदर और नए डिजाइन की राखी बनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया.
खंडेलवाल का कहना है कि इस साल वक्त की कमी थी. लेकिन अगले साल से घर-घर में राखी तैयार करने का काम व्यवस्थित होकर बड़े पैमाने पर पहुंच जाएगा व देश में और ज्यादा मेड इन इंडिया, अलग-अलग सोच व डिजाइन वाली राखियों की बिक्री होगी.