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The construction and real estate industry saw the maximum hit on investments that fell 95% on-year from Rs 1.7 lakh crore to Rs 10,000 crore in H1 FY20.
देश के रियल एस्टेट सेक्टर में जनवरी से सितंबर के बीच 2,308 मिलियन डॉलर (करीब 17080 करोड़ रुपये) का प्राइवेट इक्विटी निवेश आया है. प्रॉपर्टी कंसल्टेंट कंपनी नाइट फ्रैंक इंडिया ने अपनी ताजा रिपोर्ट में यह जानकारी दी है. रियल एस्टेट में हुए कुल प्राइवेट इक्विटी निवेश में से सबसे ज्यादा हिस्सा ऑफिस सेगमेंट में गया है. ऑफिस सेगमेंट में 1,871 मिलियन डॉलर (करीब 13,845 करोड़ रुपये) का निवेश है जो 81 फीसदी हिस्सेदारी है. इसके बाद 10 फीसदी के साथ वेयरहाउसिंग और 9 फीसदी पर रेजिडेंशियल है. वेयरहाउसिंग में 221 डॉलर और राजिडेंशियल में 216 डॉलर का निवेश आया है.
मुंबई के ऑफिस सेगमेंट में सबसे ज्यादा निवेश
रिपोर्ट के मुताबिक, ऑफिस मार्केट निवेशकों के लिए प्राथमिकता बना रहा है. इसकी वजह भारतीय ऑफिस मार्केट के मजबूत फंडामेंटल हैं. 2011 से सेगमेंट ने 15.4 बिलियन डॉलर का इक्विटी इन्वेस्टमेंट इकट्ठा किया है. इन 10 सालों में मुंबई को ऑफिस इंवेस्टमेंट का सबसे बड़ा हिस्सा मिला है जो 5,015 मिलियन डॉलर का है जिसके बाद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) 2,010 बिलियन डॉलर के साथ आता है. और हैदराबाद में 2,010 मिलियन डॉलर का निवेश है.
वेयरहाउसिंग सेक्टर में निवेश की बात करें, तो इस क्षेत्र में 221 अमेरिकी डॉलर का निवेश आकर्षित किया है. यह सालाना आधार पर पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 86 फीसदी कम है. उस समय यह निवेश 1,538 मिलियन डॉलर पर था. रिपोर्ट में कहा गया है कि इस गिरावट की वजह कैपिटल का काफी हिस्सा जो भारत में वेयरहाउसिंग सेक्टर में लगा है वह पिछले तीन सालों से खर्च होने का इंतजार कर रहा है. हालांकि, वैश्विक निवेशक वेयरहाउसिंग सेक्टर को इस संकट से मजबूती के साथ निकल कर आने की उम्मीद कर रहे हैं क्योंकि लॉकडाउन की वजह से ई-कॉमर्स सेगमेंट से डिमांड बेहतर हुई है. निवेशक वेयरहाउसिंग एसेट्स में पैसा लगा रहे हैं.
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आवासीय क्षेत्र में घटा निवेश
जनवरी से सितंबर 2020 अवधि के दौरान आवासीय सेक्टर में केवल तीन डील हुई हैं जो 216 मिलियन डॉलर की हैं. यह सालाना आधार पर 67 फीसदी कम है. इसके मुकाबले पिछले साल की इसी अवधि में 659 डॉलर का निवेश था. कुछ सालों से आवासीय कीमतें स्थिर रही हैं और कुछ जगहों पर कम भी हुई हैं. हालांकि, डेवलपर्स के लिए इनपुट कॉस्ट उसी स्तर पर कम नहीं हुई हैं और बहुत सी चीजों के लिए बढ़ी हैं जिनमें जमीन की कीमतें, श्रम की लागत, सीमेंट और स्टील की कीमत, निर्माण का चार्ज और अप्रूवल कॉस्ट शामिल है.