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एसबीआई की रिसर्च टीम ने पाया कि 2008 की आर्थिक मंदी के चलते लोगों को भरोसा छोटी बचत योजनाओं में बढ़ा है.
पिछले वित्त वर्ष के आखिरी दिन 31 मार्च को केंद्र सरकार ने 1 अप्रैल से पीपीएफ और एनएससी जैसी छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दर को कम करने का फैसला किया था. हालांकि अगले ही दिन 1 अप्रैल को यह फैसला वापस ले लिया गया. अब SBI के इकोनॉमिक रिसर्च डिपार्टमेंट द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट में कोरोना महामारी के चलते अनिश्चितित माहौल में ब्याज दरों को न बदलने के फैसले का स्वागत किया गया है. इसके अलावा इस रिपोर्ट में सरकार को कुछ सुझाव भी दिए हैं जैसे कि सीनियर सिटीजन सेविंग स्कीम पर मिलने वाले ब्याज को टैक्सफ्री किया जाए या कुछ सीमा तक इसे टैक्स के दायरे से बाहर रखा जाए. इसके अलावा पीपीएफ से 15 साल का लॉक-इन पीरियड खत्म कर निवेशकों को अपने पैसे को एक Stipulated Time में अपने पैसे को निकालने की अनुमति दी जाए. हालांकि इसके लिए निवेशकों के इंसेटिव में कटौती भी की जा सकती है. यह रिपोर्ट एसबीआई के ग्रुप चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर डॉ सौम्य कांति घोष ने तैयार किया है.
छोटी बचत योजनाएं 10 साल की अवधि वाली सरकारी प्रतिभूतियों से बेंचमार्क होती हैं. ऐसे में इनकी दरों में बदलाव जरूरी था क्योंकि 10-Year G-Sec के यील्ड में FY20 के Q4 में 6.42 फीसदी की तुलना में वित्त वर्ष 21 की चौथी तिमाही में 37 बीपीएस (0.37 फीसदी) की गिरावट के साथ 6.05 फीसदी रह गई. हालांकि केंद्र सरकार ने कोरोना महामारी के चलते आर्थिक बोझ को कम करने के लिए वित्त वर्ष 2021 की पहली तिमाही से ही इसमें कटौती नहीं किया.
रिपोर्ट में सरकार को दिए गए ये सुझाव
सीनियर सिटीजन सेविंग स्कीम में निवेश पर मिलने वाला ब्याज टैक्सेबल होता है. एसबीआई इकोरैप की रिपोर्ट में सरकार को सुझाव दिया गया है कि इसे टैक्स फ्री कर देना चाहिए या कुछ सीमा तक ब्याज टैक्स के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए. फरवरी 2020 में इन स्कीम्स के तहत आउटस्टैंडिंग अमाउंट 73,725 करोड़ रुपये थी और अगर इस पर सरकार पूरी तरह से या एक थ्रेसहोल्ड लेवल तक टैक्स रीबेट देती है तो इसका सरकार पर नाम मात्र का प्रभाव पड़ेगा.
इसे लेकर विमर्श होना चाहिए कि क्या भारत में डिपॉजिट्स पर ब्याज दरों को उम्र के आधार पर तय किया जाना चाहिए.
छोटी बचत योजनाओं की ब्याज दरें हर तिमाही तय की जाती हैं तो सरकार को आदर्श रूप में पीपीएफ के लिए 15 साल का लॉक इन पीरियड खत्म कर देना चाहिए और निवेशकों को एक तय समय में अपनी पैसे को निकालने का विकल्प मिलना चाहिए. निवेशकों को अपने पैसे की पहले निकासी पर सरकार जरूर इंसेटिव में कुछ कटौती का फैसला कर सकती है.
2008 के बाद छोटी बचत योजनाओं में बढ़ा निवेश
- एसबीआई की रिसर्च टीम ने पाया कि 2008 की आर्थिक मंदी के चलते लोगों को भरोसा छोटी बचत योजनाओं में बढ़ा है और सबसे अधिक पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के लोगों का इसमें निवेश है. रिसर्च टीम ने राज्यवार डेटा (वित्त वर्ष 2018) को एनालाइज कर महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले हैं. इसमें टॉप 5 राज्यों के लोगों की छोटी बचत योजनाओं में 50 फीसदी हिस्सेदारी है.
- जिस राज्य की प्रति व्यक्ति आय अधिक थी, वहां बैंक डिपॉजिट्स का आकर्षण रहा जबकि कम प्रति व्यक्ति आय वाले राज्यों में पोस्ट ऑफिस में डिपॉजिट्स अधिक रहा. यानी कि गरीब लोगों का भरोसा पोस्ट ऑफिस पर है और जब उनकी आय बढ़ती है तो वे बैंक डिपॉजिट्स की तरफ शिफ्ट होते हैं. महाराष्ट्र और दिल्ली में प्रति व्यक्ति बहुत अधिक है और कुल डिपॉजिट्स में पोस्ट ऑफिस डिपॉजिट्स की हिस्सेदारी महज 60 फीसदी है जबकि पश्चिम बंगाल व उत्तर प्रदेश के लिए यह आंकड़ा 86 फीसदी है.
- पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार जैसे कम आय वाले राज्यों में 60 साल से अधिक की उम्र के लोगों का रुझान पोस्ट ऑफिस सेविंग डिपॉजिट्स को लेकर अधिक है.
- 20 साल के डेटा के आधार पर देखा जाए तो 2008-09 के बाद लोगों का छोटी बचत योजनाओं की तरफ रूझान तेजी से बढ़ा है. आर्थिक मंदी से पहले तक लोगों की हिस्सेदारी इन योजनाओं में घट रही थी लेकिन इसके बाद इसमें उछाल आया और पोस्ट ऑफिस सेविंग्स को प्रिफरेंस में भी उछाल आया. यह उछाल न सिर्फ कम प्रति व्यक्ति आय वाले पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों बल्कि अधिक आय वाले महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भी आया.
2041 तक देश में 15.9% हो जाएंगे सीनियर सिटीजंस
भारत में सीनियर सिटीजंस की संख्या तेजी से बढ़ रही है और एक अनुमान के मुताबिक 2011 में 10.4 करोड़ से बढ़कर इनकी संख्या 2021 में 13.4 करोड़ हो जाएगी और 2041 तक 60 साल से अधिक की उम्र के लोगों की संख्या 23.9 करोड़ हो जाएगी. इस प्रकार इकोनॉमिक सर्वे 2018-19 वॉल्यूम 1 के मुताबिक कुल जनसंख्या में सीनियर सिटीजंस की संख्या 2011 में 8.6 फीसदी से बढ़कर 2041 में 15.9 फीसदी होने का अनुमान है. भारत में सीनियर सिटीजंस के लिए डिपॉजिट्स से मिलने वाला ब्याज ही आय का प्रमुख स्रोत होता है. एक अनुमान के मुताबिक भारत में करीब 4.1 करोड़ सीनियर सिटीजंस टर्म डिपॉजिट्स हैं जिसमें 14 लाख करोड़ रुपये जमा हैं.