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सेबी चीफ अजय त्यागी ने कहा कि बाजार नियामक आईपीओ से जुड़े कई पहलुओं में सुधार की तैयारी में है.
IPO Reforms : बाजार नियामक सेबी (Sebi) आईपीओ नियमों खास कर बुक बिल्डिंग (Book Building) इसके फिक्स्ड प्राइस पहलू और प्राइस बैंड से जुड़े प्रावधानों में सुधार करने की योजना बना रहा है. आईपीओ के अलावा सेबी प्रिफरेंशियल इश्यू के मुद्दे पर भी सुधार करना चाहता है. सेबी के चेयरमैन अजय त्यागी ने फिक्की के एनुअल कैपिटल मार्केट कॉन्फ्रेंस में बाजार नियामक के इन इरादों का खुलासा किया. उन्होंने कहा कि निकट भविष्य में इक्विटी के जरिये फंड जुटाने से जुड़े नियमों की समीक्षा पर जोर बना रहेगा.
सेबी ने कहा, फंड जुटाने के तरीकों की व्यवस्था की समीक्षा हो रही है
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ साल में फंड जुटाने के तरीके में बदलाव आया है. सेबी पिछले कुछ समय से कोष जुटाने के विभिन्न तरीकों की अपनी मौजूदा व्यवस्था की लगातार समीक्षा कर रहा है. पिछले दो साल में कई अहम बदलाव हुए हैं. इनमें मुख्य रूप से राइट इश्यू (Right Issue) प्रिफरेंशियल शेयर से जुड़े मुद्दे शामिल हैं. सेबी प्रमुख ने कहा कि बड़ी कंपनियों के लिए आईपीओ लाने को आसान बनाने के लिए मिनिमम पब्लिक शेयर होल्डिंग नियमों को संशोधित किया है. अभी तक मिनिमम पब्लिक शेयर होल्डिंग (Minimum Public Share Holdings) की जरूरत 25 फीसदी है चाहे वह प्रमोटर कंपनी हो या पब्लिक शेयरहोल्डर वालों की. हम दोनों को जोड़ने या 25 फीसदी मिनिमम शेयर होल्डिंग सीमा बढ़ाने का इरादा नहीं रखते हैं. साथ ही स्टार्टअप को लिस्ट कराने में सक्षम बनाने के लिए आईजीपी (Innovators Growth Platform) ढांचे में और ढील दी गई है.
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कंपनियों के डिस्क्लोजर में कमियां : सेबी चीफ
सेबी चीफ अजय त्यागी ने कहा कि कंपनियों के डिस्क्लोजर के मामले में कमियां दिख रही हैं . उन्होंने कहा कि डिस्क्लोजर को कंपनियां चेक बॉक्स की तरह न लें. सेबी के नियमों के मुताबिक लिस्टेड कंपनियों की ओर से सूचना पेश किए जाने के दो सेट होते हैं. एक निश्चित अवधि के अंतराल पर दी जाने वाली सूचना या खुलासा है जिसके लिए फॉर्मेट सेबी तय करता है. दूसरा ‘अहम’ बात की सूचना के रूप में होता है. इसमें कुछ घटनाओं और बातों को अहम सूचना माना जाता है, जिनकी सार्वजनिक सूचना देना जरूरी होती है. लेकिन इसमें कमी दिखती है. उन्होंने कहा कि लिस्टेड कंपनियों की ओर से अनिवार्य दी जानेवाली सूचनाओं को ‘चेक बॉक्स’ या ऐसी सूचना लिस्ट नहीं समझना चाहिए जिसके आधार पर हां नहीं का फैसला किया जाता है. उन्होंने कहा कि कुछ क्षेत्रों में कई कंपनियों की ओर से दी गई सूचना में कमी रही है.