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जनरल इलेक्शन का स्टॉक मार्केट पर असर, प्री और पोस्ट इलेक्शन कैसा रहा है रिटर्न चार्ट, किन सेक्टर पर कर सकते हैं फोकस

Stock Market During Election: आम चुनाव देश में उन सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है, जो सीधे तौर पर शेयर बाजार पर असर डालते हैं.

Stock Market During Election: आम चुनाव देश में उन सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है, जो सीधे तौर पर शेयर बाजार पर असर डालते हैं.

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Sushil Tripathi
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Stock Market: आम चुनावों के पहले निवेशकों या बाजार को यह नहीं क्‍लीयर होता कि कौन सी सरकार आएगी. (pixabay)

General Election And Stock Market: भारत में आम चुनाव देश में उन सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है, जो सीधे तौर पर शेयर बाजार पर असर डालते हैं. असल में आम चुनाव के जरिए जहां पॉलिटिकली स्थिरता या अस्थिरता के संकेत मिलते हैं, वहीं यह भी तय होता है कि कौन सी सरकार अब देश पर शासन करेगी. उसकी पॉलिसीज का सीधा असर अर्थव्यवस्था पर होता है, वहीं शेयर बाजार का रिटर्न भी इससे जुड़ा होता है. सरकार में बदलाव से सेक्टोरल लेवल पर भी कैश फ्लो पर असर पड़ सकता है. हो सगकता है कि कोई सरकार एग्री सेक्टर पर फोकस करे तो कोई इंफ्रा पर. ऐसे में जब 2023 प्रीइलेक्शन ईयर है, जानते हें कि इसका बाजार पर किस तरह असर हो सकता है.

प्रीइलेक्‍शन ईयर में स्‍टॉक मार्केट

पिछले 10 आम चुनाव की बात करें तो प्रीइलेक्‍शन ईयर स्‍टॉक मार्केट के लिए बेहतर रहा है. 10 में से 7 बार बाजार ने पॉजिटिव रिटर्न दिया. जिन 3 साल में निगेटिव रिटर्न मिला, उनमें 2 तो 1995 और 1998 के दौरान थे, जब भारत में अस्थिर पॉलिटिकल सिनेरियो था, जबकि तीसरा साल 2008 में ग्‍लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस था.

साल/बाजार का रिटर्न

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1983: 7%
1988: 51%
1990: 35%
1995: -21%
1997: 19%
1998: -16%
2003: 73%
2008: -52%
2013: 9%
2018: 6%

(सोर्स: आईसीआईसीआई सिक्‍योरिटीज)

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पोस्‍ट इलेक्‍शन ईयर में स्‍टॉक मार्केट

1999: -13.1%
2004: 23.3%
2009: 31.9%
2014: 20.6%
2019: -2.8%

दशक का तीसरा साल रहता है पॉजिटिव

पिछले कुछ दशक में शेयर बाजार रिटर्न चार्ट पर नजर डालें तो हर दशक का तीसरा साल बाजार के लिहाज से पॉजिटिव रहा है.

1983: 7 फीसदी रिटर्न
1993: 28 फीसदी रिटर्न
2003: 73 फीसदी रिटर्न
2013: 9 फीसदी रिटर्न
2023: 18 फीसदी अनुमानित

(सोर्स: आईसीआईसीआई सिक्‍योरिटीज)

इलेक्‍शन के पहले क्‍यों होता है असर

असल में आम चुनावों के पहले निवेशकों या बाजार को यह नहीं क्‍लीयर होता कि कौन सी सरकार आएगी. वहीं समय समय पर सर्वे आते रहते हैं, जिससे सेंटीमेंट बनते या बिगड़ते हैं. पॉलिटिकल स्थिरता का संकेत मिलने पर बाजार में तेजी बन सकती है. वहीं हर पार्टी या सरकार के रिफॉर्म का तरीका या एजेंडा भी अलग हो सकता है. इसी वजह से बाजार में पॉजिटिव या निगेटिव वोलेटिलिटी होती है.

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इलेक्‍शन के बाद क्‍यों होता है असर

इलेक्‍शन के तुरंत बाद चुनी हुई सरकार तेजी से अपने रिफॉर्म के बारे में एलान करती है. सरकार बनने के बाद जनता के भरोसे को पूरा करने के लिए कई तरह की योजनाओं का एलान किया जाता है. यहां भी कुछ सेक्‍टर के लिए बड़े तो कुछ सेक्‍टर के लिए कम एलान हो सकते हैं. इससे सेक्‍टोरल कैश फ्लो में अंतर देखने को मिलता है. वैसें आम तौर पर ज्‍यादातर सरकारें इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर, एग्री सेक्‍टर, कंजम्पशन, फार्मा, अन्‍य रूरल सेक्‍टर को लेकर ज्‍यादा फोकस रहती हैं. वहीं अभी डिफेंस सेक्‍टर पर भी फोकस बढ़ रहा है. इसके अलावा बैंकिंग और फाइनेंशियल सेक्‍टर भी फोकस में रहते हैं.

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