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Investment Strategy: हालिया रिकवरी के बाद भी महंगाई, ब्याज दरें, राजकोषीय घाटे जैसी चुनौतियां बाजार में बनी हुई हैं. (File)
Equity Investment Strategy in Current Market: हाल के दिनों में बाजार में निचले स्तरों से कुछ रिकवरी देखने को मिली है. लेकिन महंगाई, ब्याज दरें, राजकोषीय घाटे जैसी चुनौतियां बाजार में बनी हुई हैं, जिसकी वजह से उतार चढ़ाव बना हुआ है. कमोडिटी की कीमतों में नरमी एक बेहतर संकेत है, लेकिन अभी भी मंदी की आशंका के चलते जोखिम बना हुआ है. ऐसे में निवेशकों के सामने कई सवाल हैं. जैसे बाजार इस साल के अंत तक कहां होगा. मौजूदा रिकवरी के बाद निवेशकों को किस सेक्टर में निवेश करना चाहिए. मिडकैप और स्मालकैप में हालिया करेक्शन के बाद क्या निवेश के अवसर बने हैं. इन सारी बातों का जवाब देने के लिए हमने यहां PGIM India Mutual Fund के हेड-इक्विटी, अनिरुद्ध नाहा से बात की है.
1. हाल के दिनों में बाजार निचले स्तरों से उबरा है. 2022 के अंत तक आप बाजार को किस लेवल पर देख रहे हैं? क्या हमें एक बॉटम मिल गया है या निवेशकों को अभी सतर्क रहने में ही समझदारी है?
विकसित देशों और भारत के आउटलुक में कुछ अंतर दिख रहे हैं. महंगाई अब एक कॉमन थीम बन गया है. वहीं मंदी की आशंका भारत के लिए बहुत ज्यादा परेशान करने वाली नहीं लगती, जितनी कि अमेरिका और यूरोप के मामले में हो सकती है. भले ही महंगाई, ब्याज दरें, फिस्कल डेफिसिट की चुनौतियां हैं, कॉरपोरेट इंडिया को अपने डिमांड आउटलुक, ऑर्डर बुक और मार्जिन की स्थिरता में मजबूती दिख रही है. कमोडिटी की कीमतों में गिरावट मार्जिन के मोर्चे पर राहत देने वाली है. मार्केट कैप के मामले में कंफर्टेबल वैल्युएशन पर होने के चलते भारतीय बाजार आगे अच्छा प्रदर्शन जारी रख सकते हैं. हालांकि कोई बड़ी ग्लोबल मैक्रो चुनौती बाजार के लिए रिस्क बन सगकती है.
2. भारत में महंगाई में नरमी के शुरुआती संकेत दिख रहे हैं, लेकिन अमेरिका में अभी तक यह पीक पर नहीं पहुंचा है. इस डाइवर्जेंस का घरेलू शेयर बाजार के लिए क्या मायने है?
भारत की बात करें तो महंगाई में नरमी है. कमोडिटी की कीमतों के घटने से महंगाई पर काबू पाने में मदद मिलनी चाहिए. कमोडिटी की कम कीमतों का असर अमेरिका में भी दिखना शुरू हो जाना चाहिए. उनकी बॉन्ड यील्ड आने वाले समय में महंगाई में नरमी को दिखाती है. अगर अमेरिकी इनफ्लेशन रेट में बढ़ोतरी जारी रहती है, तो ब्याज दरों में भी बढ़ोतरी जारी रहेगी. इसके चलते एफआईआई भारतीय इक्विटी की बिक्री जारी रख सकते हैं.
3. मौजूदा उतार-चढ़ाव के दौर में बाजार से सबसे ज्यादा मुनाफा पाने के लिए स्ट्रैटेजी क्या होनी चाहिए?
हमारी सलाह है कि निवेशकों को अच्छी क्वालिटी वाले बिजनेस पर फोकस करना चाहिए, जिनके पास मजबूत बैलेंस शीट और मजबूत कैश फ्लो है. रेट हाइक साइकिल और टाइट लिक्विडिटी के दौर में बाजारों को वैल्युएशन का सपोर्ट करने के लिए कैया फ्लो के महत्व का एहसास होगा. बाजार में अपसाइड आने पर इन क्वालिटी बिजनेस में भी उछाल आना चाहिए. घाटे में चल रहीं न्यू एज तकनीकी / प्लेटफॉर्म-आधारित कंपनियों से दूर रहना चाहिए. वैल्यूएशन को लेकर सतर्क रहें और बेहतर वैल्यू वाली कंपनियों में निवेश करें.
4. ब्रॉडर मार्केट में तेज करेक्शन के बाद क्या निवेशकों को मिड और स्मॉल-कैप पर ध्यान देना चाहिए?
मिडकैप और स्मॉलकैप में बाजार के अनुमान के मुताबिक करेक्शन हुआ है. कई मिड और स्मॉल कैप के लिए ग्रोथ का अनुमान अगले 3 से 5 सालों में मजबूत बना हुआ है, क्योंकि वैल्यूएशन काफी वाजिब स्तर पर है. ये अगले 3 से 5 सालों में अच्छा रिटर्न देने की क्षमता रखते हैं. PGIM इंडिया मिडकैप अपॉर्च्युनिटीज फंड का 7 साल का ट्रैक रिकॉर्ड बेहतर रहा है.
5. आप किन सेक्टर पर अंडरवेट और किन पर ओवरवेट हैं?
हम अगले 3 से 5 सालों में भारत पर बेहद पॉजिटिव हैं. खासतौर से डोमेस्टिक थीम पर बेहद पॉजिटिव नजरिया है. लेकिन उन थ्थीम पर सतर्क रुख है, जिनका ग्लोबल लिंक है. कॉरपोरेट, एसएमई और एमएसएमई इंडिया में साफ सुथरी बैलेंस शीट और मजबूत कैपेसिटी यूटिलाइजेशन को देखते हुए, इंडस्ट्रियल, कैपिटल गुड्स और सीमेंट सेक्टर पर पॉजिटिव हैं. ऑटो और ऑटो एंसिलरी भी बेहतर दिख रहे हैं. इनमें अगले 3 से 5 सालों में इसमें मजबूत ग्रोथ देखने को मिलेगा, वह भी बिना बहुत अधिक बाधाओं के. महंगाई के चलते कमोडिटी पर अंडरवेट बने हुए हैं; वैल्यूएशन के नजरिए से कंज्यूमर सेक्टर पर भी हम अंडरवेट हैं.
6. जून तिमाही के नतीजों और अब तक कॉरपोरेट कमेंट्री से आप आगे के लिए क्या देख रहे हैं?
अब तक कंपनियों के परिणाम उत्साह बढ़ाने वाले रहे हैं. डिमांड और लोन ग्रोथ मजबूत बनी हुई है. कुछ इंडस्ट्री में मार्जिन का दबाव मौजूद है, लेकिन यह भी धीरे-धीरे कम होना शुरू हो जाना चाहिए. इंजीनियरिंग कंपनियों की ऑर्डर बुक मजबूत बनी हुई है. कॉरपोरेट कमेंट्री भी सकारात्मक बनी हुई है. आईटी सहित अधिकांश सेक्टर में अभी कोई बड़ा जोखिम नहीं दिख रहा है. कच्चे माल की महंगाई के चलते मार्जिन पर कुछ दबाव को छोड़कर, कॉर्पोरेट इंडिया पर आम तौर पर किसी भी प्रमुख वैश्विक चुनौतियों का प्रभाव नहीं पड़ा है.