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BSE 500: 5 साल में 171 कंपनियों के स्‍टॉक में 100% से ज्‍यादा रिटर्न, कैसे मिलेंगे ऐसे मल्‍टीबैंगर, एक्‍सपर्ट ने सुझाए उपाय

Multibagger Stocks: बकायदा स्‍टडी कर, हर पॉजिटिव और निगेटिव को ध्‍यान में रख‍कर निवेश किया जाए तो इक्विटी मार्केट में हाई रिटर्न की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.

Multibagger Stocks: बकायदा स्‍टडी कर, हर पॉजिटिव और निगेटिव को ध्‍यान में रख‍कर निवेश किया जाए तो इक्विटी मार्केट में हाई रिटर्न की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.

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Sushil Tripathi
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Select Best Stocks: शेयर बाजार में ऐसे स्टॉक की कमी नहीं है जो 1 से 3 साल में आपके पैसे डबल कर सकते हैं. (pixabay)

How to Pick Multibaggers: शेयर बाजार में अच्‍छे शेयरों पर दांव लग जाए तो आपका पैसा 1 साल में भी डबल हो सकता है. जिसके लिए ट्रेडिशनल स्‍माल सेविंग्‍स स्‍कीम में 9 से 10 साल इंतजार करना पड़ता है. हालांकि इक्विटी मार्केट में कुछ भी तय नहीं होता है. लेकिन अगर बकायदा स्‍टडी कर, हर पॉजिटिव और निगेटिव को ध्‍यान में रख‍कर निवेश किया जाए तो इक्विटी मार्केट में हाई रिटर्न की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. वैसे यह इतना भी कठिन काम नहीं है. बीते 5 साल का रिटर्न चार्ट देखें तो ब्रॉडर मार्केट के 171 शेयरों में 100 फीसदी या इससे ज्‍यादा तेजी रही है. Abakkus Asset Manager LLP के फाउंडर सुनील सिंघानियां ने इस बारे में विस्तार से जानकारी दी है कि ऐसे 100 से 200 फीसदी या इससे भी ज्यादा रिटर्न देने वाले स्टॉक कैसे तलाशे जा सकते हैं.

BSE 500: 3 साल में 251 कंपनियों का रिटर्न 100% से ज्‍यादा

ब्रॉडर मार्केट की बात करें तो BSE 500 की 26 कंपनियां ऐसाीहै, जिनके शेयरों ने 1 साल में 100 फीसदी या ज्‍यादा रिटर्न दिया है. वहीं 2 साल का रिटर्न देखें तो 52 कंपनियों के शेयरों ने 100 फीसदी या ज्‍यादा रिटर्न दिए हैं. बीते 3 साल की अवधि में 251 कंपनियों के शेयरों ने 100 फीसदी या इससे ज्‍यादा रिटर्न दिया है. यानी 3 साल में इंडेक्‍स में शामिल आधी कंपनियों के शेयर मल्‍टीबैगर साबित हुए हैं. वहीं 3 साल की अवधि के दौरान 131 कंपनियों का रिटर्न तो 200 फीसदी या इससे भी ज्‍यादा है. जबकि 5 साल की अवधि में 171 कंपनियों के शेयर ऐसा करने में कामयाब रहे हैं.

(Source: Ace Equity, Data As on 16th June 2023)

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म्‍यूचुअल फंड भी होते हैं मल्‍टीबैगर

निप्‍पॉन इंडिया ग्रोथ फंड: 27 का रिटर्न 21.91% सालाना, निवेश हुआ 242 गुना
फ्रेंकलिन इंडिया प्राइमा फंड: 29 साल का रिटर्न 18.94% सालाना, निवेश हुआ 168 गुना
HDFC फ्लेक्‍सी कैप फंड: 28 साल का रिटर्न 18.43% सालाना, निवेश हुआ 123 गुना
फ्रेंकलिन इंडिया फ्लेक्‍सी कैप फंड: 28 साल का रिटर्न 17.63% सालाना, निवेश हुआ 106 गुना
फ्रेंकलिन इंडिया टैक्‍सशील्‍ड: 24 साल का रिटर्न 20.75% सालाना, निवेश हुआ 95 गुना
HDFC टैक्‍ससेवर: 27 साल का रिटर्न 23.13% सालाना, निवेश हुआ 87 गुना
सुंदरम मिडकैप: 20 साल का रिटर्न 23.45% सालाना, निवेश हुआ 80 गुना
HDFC टॉप 100: 26 साल का रिटर्न 18.70% सालाना, निवेश हुआ 80 गुना

(Source: Bloomberg, Data As on 16th June 2023)

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मैनेजमेंट में बदलाव

• मैनेजमेंट सबसे महत्वपूर्ण फैक्‍टर्स में से एक है जो कॉर्पोरेट प्रदर्शन के साथ-साथ परसेप्‍शन (P/E) को भी ड्राइव करता है
एक कंपनी
• एक सक्षम मैनेजमेंट टीम जरूरी है, यह प्रमोटर ड्राइवेन या प्रोफेशनल मैनेजमेंट हो सकता है
• मैनेजमेंट में बदलाव के ऐसे कई उदाहरण हैं, जिससे किसी कंपनी में तेज बदलाव आया है- मसलन घाटे से मुनाफा, तेज ग्रोथ, कठिन निर्णय
• प्रदर्शन में सुधार से मल्‍टीपल की महत्वपूर्ण रीरेटिंग भी होती है, जिससे मल्टी-बैगर की संभावनाएं पैदा होती हैं

लगातार मुनाफे में ग्रोथ

• कुछ कंपनियां हिस्‍टोरिक कारणों से बाजार द्वारा नजरअंदाज कर दी जाती हैं और कम मल्‍टील पर ट्रेड करती हैं
• हालांकि, ग्रोथ और प्रॉफिटेबल ग्रोथ में निरंतरता को मान्यता दी गई है
• मार्केट प्राइस = EPS (अर्निंग) * PE (परसेप्‍शन)
• लगातार ग्रोथ को निवेशकों द्वारा सराहा जाता है क्योंकि यह ग्रोथ आउटलुक प्रदान करता है, जिससे हायर मल्‍टीपल मिलते हैं. यह मल्टी-बैगर के लिए एक अचूक नुस्खा है
• कंपाउंडिंग का कंसेप्‍ट भी समय के साथ सामने आता है.

कंपनी के कारोबार में बंटवारा

• कुछ कंपनियों के पास एक ही लिस्‍टेड एंटिटी में कई अनरिलेटेड बिजनेस होते हैं
• एक चुनौतीपूर्ण बिजनेस ग्रुप के दूसरे अच्छे बिजनेस द्वारा कमाए गए मुनाफे को खा जाता है
• कम रिपोर्ट किए गए मुनाफे की ओर जाता है और साथ ही मल्टीपल को नुकसान पहुंचाता है
• कंपनी को अलग-अलग संस्थाओं में विभाजित करने से, प्रत्येक को एक बिजनेस वर्टिकल में एंगेज करने से हमेशा वैल्‍युएशन और मल्‍टीपल में सुधार हुआ है
• रिपोर्ट किए गए मुनाफे में ग्रोथ हुई है और PE में भी सुधार हुआ है

असाधारण या वन-ऑफ राइट ऑफ्स

• कुछ कंपनियां देखती हैं कि कुछ वन-ऑफ खर्च या राइट ऑफ्स उनके एक या कुछ साल के मुनाफे पर असर पड़ता है
• हालांकि यह बहुत स्पष्ट है, बाजार रिपोर्ट किए गए मुनाफे को देखते हैं, जिससे उनका मार्केट कैप कम हो जाता है
• एक बार जब ये वन-ऑफ बंद हो जाते हैं, तो रिपोर्ट किए गए मुनाफे में बड़ा उछाल देखने को मिलता है
• मल्‍टीपल में भी ग्रोथ होती है जिससे स्टॉक से अनुपातहीन रिटर्न मिलता है
• इसी तरह के उदाहरण घाटे में चल रहे बिजनेस को बेचने या बैंकों के मामले में पिछले सालों में दिए गए एडवांस पर लोन लॉस प्रोविजंस के रूप में हो सकते हैं

नेट लॉस या लो नेट प्रॉफिट लेकिन कैश प्रॉफिट

• जल्दी बदलाव का पता लगाना एक बहुत ही फायदेमंद एनालिसिस रहा है.
• जिन कंपनियों को कठिन अतीत का सामना करना पड़ा है, लेकिन वे इससे बाहर निकल रही हैं. उनकी अगर जल्दी पहचान कर ली जाएं तो वे निवेशकों को हमेशा बहुत अधिक रिटर्न देती हैं.
• टर्न-अराउंड का पहला संकेत नेट लॉस या लो नेट प्रॉफिट है, लेकिन स्थायी हायर कैश प्रॉफिट है
• कई बार यह नेट लॉस के बावजूद कर्ज में कमी के साथ होता है क्योंकि इसमें महत्वपूर्ण कैश प्रॉफिट और ऑपरेटिंग कैश फ्लो होता है
• आखिरकार कंपनी अच्छा नेट प्रॉफिट दर्ज करना शुरू कर देती है और कर्ज में कमी के कारण कम ब्याज से भी लाभ उठाती है.

नई थीम

• बुनियादी बातें ठीक हैं लेकिन थीम हर बार चर्चा का विषय बनी रहती है
• गतिशील दुनिया और इसलिए नए थीम सामने आते रहते हैं
• वैल्‍यू के प्रति जागरूक खिलाड़ियों के लिए मुश्किल है लेकिन रिटर्न तेज और हाई होता है
• बहुत कम कंपनियां आम तौर पर इन-फैशन थीम में लिस्‍ट होती हैं, जिससे निवेश के लिए होड़ मच जाती है
• जब कोई सही होता है तो अच्छा काम करता है लेकिन इन-थीम के कारण कई अन्य कंपनियां उसी स्थान पर लिस्‍ट होने का विकल्प चुनती हैं.

वैल्यूएशन, लैगिंग ट्रिगर्स के हिसाब से सस्ता

• कभी चलता ही नहीं है, कोई विकास नहीं, कोई ट्रिगर नहीं, कुछ अन्य कारण
• ऐसी कंपनियां आमतौर पर कम पी/ई गुणकों पर ट्रेड करती हैं लेकिन उनका परिचालन और बिजनेस ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा होता है
• हिस्‍टोरिक पैरामीटर में कोई भी सकारात्मक बदलाव त्वरित और महत्वपूर्ण रीरेटिंग की ओर ले जाता है।
• कई बार बाजार बदलावों के कंफर्म होने का इंतजार करते हैं और इससे मौका मिल जाता है
• जब रीरेटिंग होती है, तो शेयर बहुत तेजी से ऊपर की ओर जाता है.

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