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Farmers' Protest: दिल्ली और दिल्ली के आस-पास चल रहे किसान आंदोलन की वजह से लगभग 5000 करोड़ रुपये का व्यापार प्रभावित हुआ है. यह बात कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में सामने आई है. कैट ने किसान आंदोलन के कारण अर्थव्यवस्था के विभिन्न वर्गों को होने वाली संभावित असुविधाओं के मद्देनजर नई दिल्ली में किसान कानूनों से सम्बन्ध रखने वाले विभिन्न वर्गों के प्रमुख संगठनों का एक सम्मेलन आयोजित किया. इसमें शामिल सभी लोगों ने सर्वसम्मति से आंदोलन के नेताओं से आग्रह किया है कि वे सरकार से चल रही बातचीत के जरिये अपने मुद्दों को सुलझायें.
सरकार से भी यह आग्रह किया गया है कि खुले विचारों से किसान वर्ग की बातों को सुना जाए और बातचीत के द्वारा उनकी वाजिब मांगों को स्वीकार करते हुए शीघ्र ही इसका हल निकाला जाए. सम्मेलन में विभिन्न नेताओं ने कहा कि वे किसानों की वाजिब मांगों से सहानुभूति रखते हैं. आजादी के बाद अब तक देश में किसान घाटे की खेती करता आया है, इसलिए निश्चित रूप से किसान की घाटे की खेती को लाभ की खेती में बदलना बेहद जरूरी हो गया है ताकि देश के आम किसान को खेती करने के लिए ही प्रोत्साहित किया जा सके.
एक मोटे अनुमान के अनुसार दिल्ली आने वाले माल में से लगभग 30 से 40 फीसदी माल की आवाजाही किसान आंदोलन से प्रभावित हुई है. इसक विपरीत असर दिल्ली और पड़ोसी राज्यों के व्यापार पर पड़ रहा है. पिछले बीस दिनों में दिल्ली और आस पास के राज्यों में लगभग 5000 हजार करोड़ रुपये का व्यापार प्रभावित हुआ है.
केवल किसानों तक ही सीमित नहीं हैं कृषि कानून
सम्मेलन में शामिल सभी नेताओं ने कहा की कृषि कानूनों को केवल किसानों से ही सम्बंधित कहना बिलकुल गलत है. इन कानूनों से केवल किसान ही नहीं बल्कि उपभोक्ता सहित कृषि खाद्यान्नों का व्यापार करने वाले व्यापारी, फूड प्रोसेसिंग में लगे उद्योग एवं व्यापार, बीज एवं कीटनाशक बनाने वाले उद्योग, खाद एवं अन्य उपजाऊ उत्पाद बनाने वाले लोग, थोक एवं खुदरा विक्रेता, आढ़ती और कृषि से सम्बंधित बड़े उद्योग सहित अनेक वर्गों के लोग प्रभावित होंगे. इसलिए इन कानूनों से सारे स्टेकहोल्डर्स के हितों को संरक्षित करने की आवश्यकता है.
सम्मेलन में हुआ यह फैसला
सम्मेलन में कहा गया कि किसान आंदोलन से उपजे वर्तमान हालात को देखते हुए और इस आंदोलन का आर्थिक गतिविधियों पर संभावित प्रभाव देखते हुए जल्द ही किसान नेताओं एवं कृषि से अन्य सम्बंधित अन्य सभी वर्गों की एक मीटिंग बुलाई जाए. इसमें किसान की घाटे की खेती को लाभ की खेती में परिवर्तित करने के लिए आपसी समन्वय के आधार पर कोई फॉर्मूला निकाला जाए. इसके लिए सभी वर्गों के प्रमुख नेताओं की एक कमेटी का गठन किया गया जिसका संयोजक देश के वरिष्ठ किसान नेता नरेश सिरोही को बनाया गया. यह कमेटी आंदोलन कर रहे किसान नेताओं से बातचीत कर जल्द ही एक मीटिंग आयोजित करेगी.
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जल्द समाधान क्यों जरूरी
सम्मेलन में कहा गया कि देश के सभी लोग किसानों के आंदोलन करने के लोकतांत्रिक अधिंकार का सम्मान करते हैं और किसानों को अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है. लेकिन किसान आंदोलन का असर यदि अन्य लोगों के अधिकार पर असर डालता है तो वह बिल्कुल उचित नहीं है. यदि ऐसा ही चलता रहा तो निकट भविष्य में दिल्ली के व्यापारियों, ट्रांसपोर्टरों एवं अन्य वर्ग के लोगों को व्यापार का बड़ा नुकसान होगा. कोरोना के कारण पहले से ही व्यापार एवं अन्य गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हुई हैं.
इंडस्ट्री बॉडीज क्या कह रहीं?
इस बीच उद्योग मंडल एसोचैम ने कहा है कि किसानों के आंदोलन की वजह से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था को बड़ी चोट पहुंच रही है. एसोचैम ने केंद्र और किसान संगठनों से नए कृषि कानूनों को लेकर जारी गतिरोध को जल्द दूर करने का आग्रह किया है. एसोचैम के मोटे-मोटे अनुमान के अनुसार किसानों के आंदोलन की वजह से क्षेत्र की वैल्यू चेन और परिवहन प्रभावित हुआ है, जिससे रोजाना 3,000-3,500 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है.
किसानों के विरोध-प्रदर्शन, सड़क, टोल प्लाजा और रेल सेवाएं बंद होने से आर्थिक गतिविधियां ठहर गई हैं. इससे पहले भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने कहा था कि किसान आंदोलन की वजह से आपूर्ति श्रृंखला बाधित हुई. आगामी दिनों में अर्थव्यवस्था पर इसका असर दिखेगा. इससे अर्थव्यवस्था का रिवाइवल भी प्रभावित हो सकता है.