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क्रूड में ऐतिहासिक गिरावट के बाद भी एक्सपर्ट भारत को क्यों ज्यादा फायदा होता नहीं देख रहे हैं.
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Historic Fall In Crude Oil: कच्चे तेल की कीमतों में ऐतिहासिक गिरावट दर्ज हुई है. सोमवार को अमेरिकी क्रूड ऑयल पहली बार माइनस में आ गया और इसके भाव माइनस 37 डॉलर प्रति बैरल पर आ गए. एक तरह से तेल बेचने वाली कंपनियों ने खरीदने के बदले भुगतान किया. ऐसा एक तो कोरोना वायरस की वजह से दुनियाभर में घटती डिमांड से हुआ. वहीं स्टोरेज क्षमता खत्म हो जाने के बाद भंडारण को लेकर अनिश्चितता से हुआ. एक्सपायरी से पहले तेल कंपनियों ने स्टॉक खाली किया. अब एक सवाल उठता है कि भारत की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक क्रूड पर निर्भर करती है. भारत को अपनी जरूरतों का 82 फीसदी क्रूड इंपोर्ट करना पड़ता है. ऐसे में भारत को इसका फायदा होगा. लेकिन एक्सपर्ट के नजरिए से देखें तो भारत को ज्यादा फायदा होता नहीं दिख रहा है.
भारत ब्रेंट क्रूड खरीदता है
केडिया एडवाइजरी के डायरेक्टर अजय केडिया का कहना है कि सबसे पहले तो यह समझना होगा कि अमेरिकी क्रूड में गिरावट टेक्निकल मामला है. एक्सपायरी के पहले मई वायदा के लिए तेल कंपनियां स्टॉक खाली करना चाह रही हैं क्यों कि उनकी स्टोरेज कैपेसिटी फुल है. फ्रेश क्रूड रखने की जगह नहीं है. दूसरी ओर बॉयर्स के पास भी स्टोरेज बहुत ज्यादा है और वे पहले की बुकिंग भी लेने की स्थिति में नहीं हैं. इस वजह से स्टॉक खाली करने के लिए अमेरिकी तेल कंपनियों ने इतनी बड़ी छूट दी.
दूसरा प्वॉइंट यह समझना होगा कि भारत अपने कच्चे तेल का ज्यादातर आयात ओपेक देशों से ब्रेंट क्रूड के रूप में करता है. ब्रेंट क्रूड तो 25 से 26 डॉलर की रेंज में कारोबार कर रहा है. वहां माइनस में गिरावट का फायदा भारत को बहुत कम मिलेगा. हालांकि ब्रेंट भी अब इस साल 60 फीसदी तक सस्ता हो गया है तो यह सवाल उठना लाजिमी है कि इसका फायदा भारत को कितना मिलेगा.
तेल सस्ता लेकिन डिमांड कम
रेलिगेयर ब्रोकिंग की VP-मेटल, एनर्जी एंड करंसी रिसर्च, सुगंधा सचदेवा का कहना है कि एक तो दुनिया इस समय कोरोना वायरस महामारी से जूझ रही है, जिससे दुनियाभर में लॉकडाउन की स्थिति है. इस वजह से क्रूड की ग्लोबल डिमांड बहुत नीचे आ गई है. स्टोरेज को लेकर अनिश्चितता है.
लॉकडाउन की वजह से भारत में भी औद्योगिक गतिविधियां बंद हैं. कई इंडस्ट्री हैं, जहां क्रूउ का इस्तेमाल होता है. लेकिन लॉकडाउन से यह डिमांड बहुत कम हो गई है. यहां सस्ते तेल का फायदा कम हो गया. वहीं इन दिनों लॉकडाउन के ही चलते देश में पेट्रोल-डीजल की डिमांड एक तिहीाई रह गई है. ऐसे में रिफाइनिंग कंपनियों को भी अपने इनवेंट्री लॉस से निपटने के लिए प्रोडक्शन घटाना पड़ रहा है. वहीं पेट्रोल डीजल की मांग कम होने के नाते कंज्यूमर को भी इस समय राहत देने का मतलब नहीं बैठता. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि 2020 में भारत का सालाना फ्यूल कंजम्प्शन 5.6 फीसदी घटेगा.
तेल कंपनियों की बुकिंग 2 महीना पहले
एक और ध्यान देने वाली बात है कि ज्यादातर तेल कंपनियां 2 महीना पहले क्रूड खरीदती हैं. ऐसे में ज्यादातर बुकिंग पहले के रेट पर हुई है. अजय केडिया का कहना है कि मिडिल ईस्ट को तेल का खेल बिगड़ने से अपनी इकोनॉमी के बैठने का डर है तो आगे प्रोडक्शन कट पक्का दिख रहा है. क्योंकि अभी ओपेक और अन्य देश 0 मिलियन कट पर राजी हुए हैं लेकिन 30 मिलियन क्रूड अभी भी रोज मार्केट में बच रहा है. यानी ओवरसप्लाई की सिथति बनी हुई है. ऐसे में आगे प्रोडक्शन कट होने के पूरे आसार हैं, जिससे कीमतें बढ़ सकती हैं. . इसलिए कट पक्का है.
ट्रेड डेफिसिट और करंसी के लिहाज से मिला बेनेफिट
केडिया का कहना है कि कच्चे तेल में बड़ी गिरावट का फायदा भारत को अपनी करंसी में स्थिरता लाने में मदद मिली है. जिसे हिसाब से रुपये में गिरावट आ रही थी, अगर कच्चा तेल निचले सतरों पर नहीं आता तो यह 80 प्रति डॉलर पार कर जाता. लेकिन अभी करंसी स्टेबल हुई है. दूसरा भारत को ट्रेड डेफिसिट बहुत ज्यादा बए़ गया था. इसलिए क्रूड में मिले फायदा को कंज्यूमर पर पास आन करने की बजाए सरकार इस घाटे को कम करने में लगी है. कंज्यूमर को भी लॉकडाउन की वजह से पेट्रोल डीजल पर नुकसान नहीं हो रहा है. इसलिए सरकार को यह मौका मिल गया है.