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Image: Reuters
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सन् 2004 में शुरू हुआ यस बैंक (Yes Bank) 15 सालों के अंदर भारत का चौथा सबसे बड़ा प्राइवेट सेक्टर बैंक बन गया. लेकिन अब यह बैंक डूबने की कगार पर है. पिछले कई महीनों से यस बैंक को बचाने की कोशिश चल रही थी. बैंक मैनेजमेंट के तय वक्त के अंदर पुनरोद्धार योजना न ढूंढ पाने के चलते गुरुवार को RBI ने बैंक के बोर्ड को भंग कर दिया और SBI के पूर्व CFO प्रशांत कुमार एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त कर 3 अप्रैल तक निकासी की सीमा 50,000 रुपये कर दी.
यस बैंक को औसत से ज्यादा ब्याज दर देने के लिए जाना जाता है. एक वक्त था, जब इसके शेयर आसमान छूते थे. एक वक्त पर इसके शेयर का प्राइस 1400 रुपये पर जा पहुंचा था. लेकिन आज यानी 6 मार्च को इसके शेयर 55 फीसदी टूट चुके हैं. यस बैंक के अर्श से फर्श पर आने की दो प्रमुख वजहें प्रमोटर फैमिली की आपसी कलह और धड़ाधड़ दिए गए लोन रहे. इन लोन का पुनर्भुगतान नहीं होने से बैंक का NPA बढ़ता चला गया और कारोबार कमजोर. आइए जानते हैं इसकी कामयाबी से लेकर बर्बादी तक की कहानी...
2004 में शुरू
यस बैंक की शुरुआत 2004 में राणा कपूर और उनके रिश्तेदार अशोक कपूर ने रैबो बैंक के साथ मिलकर की थी. 2005 में इसका IPO आया, जो 300 करोड़ का रहा. 2005 में राणा कपूर को एंटरप्रेन्योर ऑफ द ईयर और 2009 में बैंक को 30000 करोड़ रुपये की बैलेंस शीट के साथ सबसे तेज ग्रोथ का अवॉर्ड मिला. 2015 में यस बैंक NSE पर लिस्ट हुआ और 2017 में बैंक ने QIP के जरिए 4906.68 करोड़ रुपये जुटाए, जो किसी प्राइवेट सेक्टर बैंक द्वारा जुटाई गई सबसे बड़ी रकम है.
झगड़े की ऐसे हुई शुरुआत
वैसे तो बैंक के शुरू होने के लगभग 4 साल बाद ही प्रमोटर फैमिली में कलह की चिंगारी सुलगने लगी और इसका असर बैंक के कारोबार पर दिखने लगा. लेकिन मुंबई में हुए 26/11 के आतंकी हमले में अशोक कपूर की मौत के बाद इस कलह ने बड़ा रूप ले लिया. अशोक कपूर की पत्नी मधु कपूर और यस बैंक के फाउंडर व सीईओ राणा कपूर के बीच बैंक के मालिकाना हक को लेकर लड़ाई शुरू हो गई. मधु अपनी बेटी के लिए बोर्ड में जगह चाहती थीं. मामला मुंबई की अदालत तक पहुंचा और राणा कपूर को जीत हासिल हुई.
हर लोन को कहां 'Yes'
धीरे-धीरे यस बैंक में कॉर्पोरेट गवर्नेंस से समझौते के मामले सामने आने लगे. साथ ही बैंक पर बड़ा कर्ज हो गया, जिसकी वजह राणा कपूर रहे. राणा कपूर ने कर्ज और उसकी वसूली के लिए तय प्रक्रिया से ज्यादा महत्व निजी संबंधों को दिया. कर्ज को चुकाने के लिए प्रमोटर्स ने धीरे-धीरे बैंक में अपनी हिस्सेदारी बेचनी शुरू की. अक्टूबर 2019 में नौबत यहां तक पहुंच गई कि राणा कपूर तक को अपने शेयर बेचने पड़े और यस बैंक में उनके ग्रुप की हिस्सेदारी घटकर 4.72 रह गई. बैंक की सीनियर पोस्ट्स पर मौजूद लोगों में से भी कई ने यस बैंक का साथ छोड़ा, जिनमें सीनियर ग्रुप प्रसेडिंट रजत मोंगा भी शामिल रहे.
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कॉर्पोरेट ग्राहकों ने डुबोया
यस बैंक के ग्राहकों की लिस्ट में रिटेल से ज्यादा कॉरपोरेट ग्राहक हैं. यस बैंक का हर लोन को हां कहना उस पर भारी पड़ गया. बैंक ने जिन कंपनियों को लोन दिया, उनमें से अधिकतर घाटे में हैं. बैंक के कर्जदारों में आरकॉम के मालिक अनिल अंबानी, एस्सेल ग्रुप, एस्सार पावर, वरदराज सीमेंट, रेडियस डेवलपर्स, IL&FS, दीवान हाउसिंग, जेट एयरवेज, कॉक्स एंड किंग्स, CG पावर, कैफे कॉफी डे, Altico आदि प्रमुख हैं. जब कई कर्जदार कंपनियां दिवालिया होने लगीं और लोन वापस नहीं मिला तो तो बैंक की हालत भी खस्ता होती चली गई.
जनवरी 2019 में राणा कपूर ने छोड़ा पद
सितंबर 2018 में RBI ने राणा कपूर के कार्यकाल विस्तार पर रोक लगाते हुए उन्हें जनवरी 2019 तक सीईओ का पद छोड़ने और बैंक को नया MD और CEO ढूंढने को कहा. राणा कपूर को कार्यकाल विस्तार न दिए जाने की वजह रही कि RBI का कहना था कि वह बैंक की बैलेंस शीट की सही जानकारी नहीं दे रहे थे. RBI के आदेश के बाद राणा कपूर का कार्यकाल 31 जनवरी को खत्म हो गया. उसके बाद यस बैंक के नए सीईओ रवनीत गिल बने, जो इससे पहले दाइचे बैंक में थे. रवनीत गिल ने एक साल में यस बैंक को फिर से खड़ा करने की काफी जद्दोजहद की लेकिन वह सफल नहीं हो सके.
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एक के बाद एक लगे झटके
राणा कपूर के हटने के बाद RBI ने बैंक पर 1 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया. आरोप था कि बैंक लेनदेन के लिए इस्तेमाल होने वाले मेसेजिंग सॉफ्टवेयर स्विफ्ट के नियमों का पालन नहीं कर रहा. अगस्त 2019 में मूडीज ने यस बैंक की रेटिंग घटा दी, जिससे बैंक की हालत और खराब हो गई और बाजार में नेगेटिव संकेत पहुंचे.
लिस्ट होने के बाद दिया था 33 गुना तक रिटर्न
यस बैंक ने कई साल निवेशकों को लगातार बेहतर रिटर्न दिया. शेयर बाजार में जुलाई 2005 में लिस्ट होने के बाद शेयर का भाव 12.37 रुपये से बढ़कर 20 अगस्त 2018 को 404 रुपये हो गया, यानी इस दौरान करीब 3100 फीसदी यानी 33 गुना रिटर्न दिया.